Monday, July 22, 2013

खाद्य सुरक्षा के बहाने कॉंग्रेस की वोट सुरक्षा की साजिश

केंद्र की यूपीए सरकार ने आनन फानन मे अध्यादेश लाकर खाद्य सुरक्षा गारंटी की योजना देश के सामने रखी है। सरकार की मंशा  है की इस अध्यादेश को मॉनसून सत्र मे संसद की दोनों सभाओ से पास करा कर कानून की शक्ल दे दी जाएगी। सरकार के मंत्रियों का दावा है कि इस अध्यादेश के कानून बन जाने के बाद देश मे 82 करोड़ जनता इससे लाभान्वित होगी और उन्हे कम दामों मे सरकार द्वारा अन्न प्रदान किया जाएगा। देखने सुनने मे ये योजना काफी लोक लुभावन लगती है किन्तु इस अध्यादेश के लाने के समयकाल से सरकार की मंशा और योजना साफ नज़र आ रही है।
याद होगा कि 2004 मे यूपीए प्रथम के शासन काल मे भी सरकार के तरफ से खाद्य सुरक्षा कानून की बात हुई थी परंतु फिर इसे ठंडे बस्ते मे डाल दिया गया और अब फिर सरकार ने भोजन सुरक्षा गारंटी का अध्यादेश लाकर स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले लोक सभा चुनावों मे यही भोजन की सुरक्षा की गारंटी का कानून ही इसके लिए वोट की सुरक्षा का ब्रह्मास्त्र बनेगा। सरकार को अंदेशा है की इस कानून का प्रचार कर के ही सरकार आने वाले चुनावों मे गरीब भारतीयों के मन मे एक आस जागा कर पुनः सरकार बनाने मे सफल हो जाएगी, परंतु सरकार के पिछले कई सारे योजनाओ मे हुये भ्रस्टाचार और व्याप्त खामियों के उजागर होने से इस योजना के क्रियान्वयन की शंकाए अभी से लोगो के दिमाग मे घर कर चुकी हैं।
पिछले 9 वर्षों के यूपीए सरकार के कार्यकाल मे सरकार ने ऐसा कोई काम देश की जनता के लिए किया ही नहीं जिसके दम पर वो आने वाले चुनाव मे जनता के बीच जा कर अपने लिए एक और कार्यकाल की मांग करे, इसके उलट सरकार विभिन्न आंतरिक, आर्थिक, विदेशी एवं सुरक्षा के मोर्चो पर बुरी तरह नाकाम सिद्ध हुई है। सरकार के मंत्रियो और मंत्रियो के परिजनो के ऊपर भ्रस्टाचार के अनगिनत मामले उजागर हुये हैं। यहा तक कि कोयला घोटाले की आग ने तो साफ छवि माने जाने वाले प्रधानमंत्री के कार्यालय तक अपनी लपट पहुचा दी थी और विपक्ष ने विभिन्न मौको पर इन घोटालों के कारण सरकार को घेरने मे सफलता पायी है। भ्रस्टाचार के आरोपों से चौतरफा घिर चुकी सरकार के पास भोजन सुरक्षा की गारंटी के अलावा और कोई अस्त्र ही नहीं है जिसे ले कर वो चुनाव मैदान मे उतरेगी।
आज़ादी के बाद 55 सालों मे देश पर राज कर चुकी कांग्रेस ने ऐसा कोई कानून क्यू नहीं बनाया जिससे गरीबों को सस्ते दर पर अनाज मिल सके? अब तक तो सिर्फ  "गांधी छद्मनाम" के बल पर चुनाव जीतती आ रही सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी को ये पता लग चुका है कि जनता को अब और इस नाम के बल पर छलना मुश्किल है। इसलिए भोले भले गरीबों को छलने का नया अस्त्र है ये भोजन सुरक्षा कि गारंटी । अगर सरकार को गरीबों के भोजन की इतनी ही चिंता है , तो इस चिंता को सामने आने मे 9 साल क्यू लग गए?  जिस जल्दबाज़ी मे कैबिनेट ने मॉनसून सत्र से पहले ही अध्यादेश जारी कर दिया , ऐसी सक्रियता तब कहा गई थी जब 2011 मे सूप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि खाद्य निगम के गोदामों मे सड़ रहे अनाज को मुफ्त मे गरीबों के बीच बाँट दिया जाये ? सरकार के मंत्रियों ने तब उस आदेश का पालन नहीं किया और उसकी धज्जियां उड़ा दी थी। सच्चाई तो ये है कि कई भाजपा शासित राज्य अभी भी अपने स्तर पर गरीबों को सस्ते मे अनाज उपलब्ध करने कि योजनाए चला रहे हैं और बखूबी सफलतापूर्वक इसका संचालन कर रहे हैं। परंतु कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को आने वाले चुनाव प्रचार मे जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिए ऐसे योजनाओं कि आवश्यकता है और उसकी मंशा इन्ही लोकलुभावन योजनाओ द्वारा सरकार बना कर आने वाले समय मे लूट खसोट मचाने की है। लेकिन जनता को भ्रस्टाचार की पूरक बन चुकी कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार को आने वाले चुनावों मे करारा जवाब देना होगा और ऐसे लोकलुभावन योजनाओ के जाल से बच कर एक स्वच्छ एवं प्रगतिशील छवि की सरकार चुनने मे सहयोग देना होगा।