Wednesday, May 20, 2020

बड़े और छोटे अध्यक्ष जी की आपसी खींचतान में पिसता अधिवक्ता वर्ग

जब से वकीलों की सर्वोच्च संस्था ने विधि स्नातकों को विधि व्यवसाय करने के काबिल प्रमाणित करने के लिए आल इंडिया बार एग्जामिनेशन की प्रथा की शुरुआत की कमोबेश तभी से प्रयागराज के विधि महाविद्यालयों में इस एग्जाम के लिए परीक्षा केंद्र बनने लग गए थे I शुरुआत की परीक्षाओं में सफल छात्रों का प्रतिशत कम होने की वजह से जुगाड़ू विद्यार्थियों और एग्जाम मैनेजर्स का ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ और तभी से शुरू हुआ इस परीक्षा में नक़ल का खेल I परीक्षार्थियों से नक़ल करा कर पास करवाने के नाम पर हजारों रुपये केंद्र संचालकों द्वारा वसूल किये जाने लगे I एग्जाम दर एग्जाम प्रयागराज के परीक्षा केन्द्रों पर दूर दूर से परीक्षा देने आने वालों की भीड़ जुटने लगी और तब माननीय बड़े अध्यक्ष जी का ध्यान प्रयागराज के केन्द्रों की तरफ आकृष्ट हुआ I दुरी का आंकलन इसी बात से किया जा सकता है कि केरल तक के जिज्ञासू अपने गृह जिले से हजारो किलोमीटर दूर आ कर इस एग्जाम में पास होने लगे I
जब बिहार से चुने गए बड़े अध्यक्ष जी की नज़र प्रयागराज के परीक्षा केन्द्रों से सफलता के प्रतिशत पर पड़ी तो बड़े अध्यक्ष जी को इसमें असीमित कमाई की सम्भावना दिखी I फिर क्या था साल में 2 बार होने वाले इस एग्जाम का केंद्र बनाने के लिए मुंहमांगी कीमत परीक्षा केन्द्रों द्वारा दी जाने लगी I एक सूत्र तो यहाँ तक बताते हैं कि बड़े अध्यक्ष जी के आशीर्वाद प्राप्त सदस्यों ने तो केंद्र निर्धारण के लिए खुली बोली की प्रक्रिया भी शरू कर दी थी I और बड़े अध्यक्ष जी तो स्वयं परीक्षा के दिन प्रयागराज के परीक्षा केन्द्रों पर घूमते हुए उगाही करते नज़र आने लगे I एक बार नहीं वरण बार बार बड़े अध्यक्ष जी परीक्षा के दिन प्रयागराज में ही मिलते थे I बड़े अध्यक्ष जी ने देश के बाकि ३२ परीक्षा केन्द्रों पर कभी जाना उचित नहीं समझा , क्योंकि शायद देश के बाकि उन परीक्षा केन्द्रों पर परीक्षा पास करवाने का ठेका लेने का वो खेल नहीं हो रहा था जो प्रयागराज के परीक्षा केन्द्रों पर हो रहा था I
इसी बीच उत्तर प्रदेश की संस्था के लिए चुनाव हुए और प्रदेश के अध्यक्ष पद की कुर्सी बड़े अध्यक्ष जी के आशीर्वाद प्राप्त सदस्यों के हाथ से फिसल गयी I खैर आशीर्वाद प्राप्त सदस्य को बड़े अध्यक्ष ने बड़ी संस्था में सेट कर लिया ताकि खेल बदस्तूर ज़ारी रहेI लेकिन छोटे अध्यक्ष भी छोटे खिलाडी नहीं थे ,पूर्व के कार्यकाल में बतौर सदस्य उन्होंने भी सारा खेल समझ लिया था और बड़े अध्यक्ष और उनके आशीर्वाद प्राप्त सदस्य की दाल छोटे अध्यक्ष जी के सामने नहीं गल रही थी I इसी बीच फिर से परीक्षा हुए और प्रयागराज के केन्द्रों पर बड़े अध्यक्ष और छोटे अध्यक्ष की खींचातानी की वजह से प्रयागराज केंद्र का परीक्षा परिणाम मोनिटरिंग कमिटी ने रोक दिया I ऐसा इसलिए किया गया ताकि छोटे अध्यक्ष जी की पकड़ युवा अधिवक्ताओं में ढीली पड़े और बड़े अध्यक्ष जी के आशीर्वाद प्राप्त सदस्य को इसका फायदा मिल सके I खैर आपसी खीचतान की नौबत इस साल यहाँ तक आ गयी की बड़े अध्यक्ष जी ने छोटे अध्यक्ष जी को पदच्युत कर अपने खेमे के सदस्य को अध्यक्ष नामित कर दिया गया I ऐसा करने का अधिकार बड़े अध्यक्ष जी को है या नहीं ये तो समय बता ही देगा लेकिन बड़े अध्यक्ष जी के आशीर्वाद प्राप्त सदस्य तो इस पुरे प्रकरण के बाद से जीत का सेहरा बांधे घूम रहे हैं I
जितना राजनीतिक दांव पेंच इस पुरे प्रकरण में बड़े अध्यक्ष जी और उनके आशीर्वाद प्राप्त सदस्य महोदय ने लगाया है अगर उसका एक चौथाई भी कोरोना के संकट के इस दौर में आर्थिक परेशानी से जूझ रहे युवा अधिवक्ताओं के हित में किया गया होता तो अधिवक्ता वर्ग को इसका फायदा मिला होता I लेकिन यहाँ तो ये साबित हो रहा है की इन संस्थाओं के हुक्मरानों ने संस्थाओं को अधिवक्ता हित के बजाय स्वयं के हित का जरिया बना रखा है I युवा अधिवक्ता भी ये सोचें कि इन मठाधीशों की बंधुआ मजदूरी करनी है या स्वयं के लिए ऐसा नेतृत्व तलाशना है जो सर्व अधिवक्ता समाज के हित में कार्य करे न कि सिर्फ अपने और अपने आने वाली पीढ़ियों के हित में I

Saturday, August 11, 2018

जनसंख्या विस्फोट की स्थिति की तरफ बढ़ता भारत वर्ष ?


सीन 1 - क्लर्क पद की सरकारी नौकरी के 280 पदों के लिए देश भर से 12 लाख लोगों ने किया आवेदन
सीन 2 - भूख की वजह से बंगाल के एक गाँव में मरे 13 बच्चे
सीन 3 - देश में 4 करोड़ लोग अभी भी फूटपाथ पर सोने को मजबूर
सीन 4 - राशन की लाइन में लगे लगे सुबह से हो गयी शाम , फिर भी महिलाओं को राशन नहीं मिला
सीन 5 - 24 सालों से ज़मीन का मुकदमा लड़ रहे बुजुर्ग की अदालत परिसर में ही हृदयाघात से हुई मौत
सीन 6 - देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल AIIMS में इलाज के लिए इन्तजार की लाइन में ही बजुर्ग की हुई मौत
सीन 7 - दीवाली और छठ पर दिल्ली-मुंबई से UP , बिहार की ट्रेनें हुईं हाउसफूल
सीन 8 - गुडगाँव से दिल्ली की महज 20 किलोमीटर की दुरी तय करने में लग रहा 2 घंटे का समय


ये महज कुछ घटनाओं की बानगी भर है I देश भर में जहाँ भी जाना होता है ऐसी ही घटनाओं से आम जान रूबरू होते रहते है I इस तरह की घटनाएँ अब तो हमारी आम जिंदगी का एक हिस्सा बन कर रह गयी हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा है की आखिर हमारे देश में ऐसी घटनाएँ आम क्यों होते जा रही हैं ? अगर आप चिंतन करें तो आपको महसूस होगा की इन सभी घटनाओं के पीछे जो मूल कारण है, वो ये है की देश की जनसंख्या लगातार बेलगाम रूप से बढ़ते बढ़ते अब उस स्तर पर पहुँच चुकी है जो हमारे देश और यहाँ के देशवासियों के लिए एक अलार्मिंग सिचुएशन बन गयी है I देश की किसी भी बड़ी समस्या का नाम लीजिये , वो कही न कहीं इस विशाल जनसँख्या की ही उपज है I वो चाहे , बेरोजगारी हो , भुखमरी हो , देशवासियों के लिए रहने के मकानों की कमी हो, राशन की अनुपलब्धता हो, अदालतों  में बढ़ता हुआ मुकदमो का बोझ हो , सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की बिगड़ी हुई हालत हो, ट्रेनों में सीटों की उपलब्धता हो या फिर सडकों पर निरंतर बेतहाशा बढती गाड़ियों की वजह से लगातार बढ़ती जाम की समस्या हो I सरकार चाहे कितने भी उपाय कर ले , लेकिन जब तब इन सभी समस्याओं के मूल कारण , देश की इस बढती हुई जनसँख्या की तरफ अपना ध्यान नहीं लगाएगी , ये समस्याएं यूँ ही बढती चली जाएँगी I वो किसी एक समस्या का समाधान की विफल कोशिश करेंगे तो दूसरी समस्या विकराल रूप ले कर सामने आ जाएगी I
आज देश की बढती  जनसंख्या और इससे जुड़े समस्याओं की वजह से देश के सभी वर्गों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है I समय की मांग यही है की समाज के सभी वर्गों को जाती, समाज और धर्म की मान्यताओं और बाध्यताओं से ऊपर उठ कर इस विकराल रूप लेती हुई जनसंख्या की समस्या का समाधान करने के लिए स्वेच्छा से सहयोग देना चाहिए I मध्यम वर्ग तो काफी हद तक स्वयं के परिवारों को सीमित करने में सफल हुआ है लेकिन निम्न वर्ग और कुछ संप्रदाय विशेष ने अभी तक इस समस्या की तरफ से अपनी नज़रें फेर रखी हैं I इस वजह से उनके वोट की ताकत दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रही है और किसी भी सरकार के लिए इस अति महत्वपूर्ण मुद्दे को छूना उनके वोट बैंक की राजनीती के लिए खतरे से खाली नहीं है I लेकिन क्या एक समाज और राष्ट्र के रूप में हम असफलता की तरफ अग्रसारित हुए नहीं जा रहे हैं ?  
देश के उपजाऊ भूमि की अन्न उत्पादन की क्षमता भी दिन प्रतिदिन इस बढती जनसंख्या के बोझ को उठाने में असमर्थ होती जा रही है और प्राकृतिक संसाधनों की अनुपलब्धता की वजह से आने वाली पीढ़ियों के लिए शुद्ध पीने योग्य जल की उपलब्धता भी एक बहुत बड़ी समस्या हो सकती है I आज भी देश में ऐसे कई ब्लॉक्स पैदा हो गए हैं जहाँ पीने योग्य पानी के लिए लोगों को मीलों सफ़र करके जाना होता है I 1951 के 36 करोड़ की जनसंख्या से हम आज 2018 में करीब 132 करोड़ के देश बन चुके हैं  और हर साल हम एक नीदरलैंड देश के बराबर की जनसँख्या देश में बढाते जा रहे हैं I

आज़ादी के बाद से आज तक सभी सरकारों ने देश की स्थिति के हिसाब से कम अपने वोट बैंक के स्थिति के हिसाब से ही निर्णय लिए हैं , लेकिन अब समय आ गया है की सभी राजनीतिक पार्टियों को वोट बैंक और साम्रदायिक राजनीती से ऊपर उठ कर देश की भविष्य को ध्यान में रखते हुए ही जनसंख्या नियंत्रण के कठोर प्रावधानों की नीव रखनी चाहिए I कठोर जनसँख्या नियंत्रण के कानून और इसके कठोरता से अनुपालन करके ही देश और देशवासियों को अपने उज्जवल भविष्य की उम्मीद रखनी चाहिए I

Monday, September 25, 2017

क्या सच में है #UnsafeBHU ?

एक हफ्ते से बनारस हिन्दू विश्विद्यालय यानि की हमारा BHU का नाम काफी सुर्ख़ियों में  रहा है। "सर्वविद्या की राजधानी" और "महामना की बगिया" सरोखे विशेषणों से जाना जाने वाला BHU का कुछ गलत कारणों से प्रचारित होना मेरे जैसे पूर्व छात्र के लिए ह्रदय विदारक और मर्मस्पर्शी रहा। जिस विश्वविद्यालय के प्रांगण में जीवन  के स्वर्णिम ३ साल गुज़ारने  मौका मिला , जहाँ ३ सालों में जिंदगी के अधिकतर आयामों को समझने और जीने  का मौका मिला, उसके बारे में मीडिया में ऐसी बातें सुनने, पढ़ने और देखने को मिली की मन व्यथित हो गया।
कुछ लड़के एक लड़की को छात्रावास के ओर जाते वक़्त छेड़ते हैं  और जब वो लड़की विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मियों से इसकी शिकायत करती है तो वो उसमें टालमटोल का रवैया अपनाते हुए चुप रहने का दबाव बनाते हैं। जब विश्वविद्यालय प्रशासन से इस बारे में शिकायत की जाती है तो विश्वविद्यालय प्रशाशन भी सारे घटनाक्रम पर मौन धारण कर के छात्राओं के आक्रोश को बढ़ने देता है।  यहाँ तक की कुलपति भी प्रशासनिक कार्यों में इतना व्यस्त थे की छात्राओं  की बात सुनने की जहमत नहीं उठाई।  कुलपति होने के नाते आप विश्वविद्यालय के समस्त समस्त छात्र छात्राओं के अभिभावक हैं , यदि आप अपने छात्र छात्राओं से मिल कर उनकी समस्याएं सुनकर उसके समाधान की व्यवस्था नही करेंगे तो कौन करेगा ? यह पद आपको लाल बत्ती चमका के सुरक्षाकर्मियों के बीच घूमते हुए जूते चप्पल के शोरूम के उदघाटन करने के लिए नहीं मिला है महाशय , कृपया अपने नियुक्ति पत्र पर उल्लेखित कुलपति से अपेक्षित कार्यों का अध्ययन करने की जहमत उठाने का कष्ट करें। आपके प्रशासनिक अक्षमता ने पिछले २ सालों में विश्वविद्यालय को कई दफा जलने पर मजबूर किया है।
विश्वविद्यालय प्रशासन के गैरजिम्मेदारी पूर्ण रवैये ने एजेंडा पत्रकारिता और बाहर से आये वामपंथी संगठनों को , जो  पिछले ३ सालों से BHU में अपना एजेंडा लागू करने  लालायित हैं, उनको बिल से बाहर आकर शांतिपूर्ण प्रदर्शन में शामिल हो कर  घटनाक्रम को राजनैतिक रंग देना शुरू कर दिया।  राहुल गाँधी के NSUI के कांग्रेसी , आपियों और वामियों ने इस पुरे घटनाक्रम को नरेंद्र मोदी विरोध का एक मंच बनाकर इस छात्र प्रदर्शन को राजनितिक महत्वाकांक्षा की बलि चढ़ने पर मजबूर कर दिया। देश के विभिन्न भागों से #UnsafeBHU सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर ट्रेंड कराया जाने लगा जिसमे युथ कांग्रेस और AAP के IT Cell ने वामियों का साथ दे कर अपने मीडिया के मित्रों के सहयोग से इसे नेशनल मीडिया तक में BHU के बारे में दुष्प्रचार किया। जिन हॉस्टलों के छात्र ज्यादातर लड़की छेड़ने और राह चलते उन पर फब्तियां कसने के लिए मशहूर हैं, उन्ही छात्रों को प्रदर्शन का मंच दिया गया और उन्होंने इस शांतिपूर्ण प्रदर्शन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और इसे हिंसक रूप देने में इनका पूर्ण सहयोग रहा। इस पुरे घटनाक्रम में छात्राओं ने जो सुरक्षा का मुद्दा उठाया था वो असली मुद्दा तो धूमिल ही हो गया और कुछ अतिमहत्वाकांक्षी संगठनों और लोगो की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की बलि चढ़ गया। पूरा मुद्दा ही भटकाकर इन लोगों ने काफी हद तक अपने इरादों में सफलता भी पा ली।
 एक मित्र ने साल 2015 में बातों बातों में ये आशंका जताई थी की मोदी जी के बनारस सांसद होने के वजह से सारे विपक्षी दलों का फोकस काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को अशांत बनाकर राष्ट्रीय पटल पर इसका दुष्प्रचार करने में जोर रहने की पूरी उम्मीद है और आज उनकी आशंका सही भी होती दिखाई दे रही है।  2014 के चुनावों के समय लाल सलाम के वामियों, टोपी धारी आपियों और कांगियों को कैंपस के छात्रों का बराबर विरोध झेलना पड़ा था , उसी समय से इन्होने BHU को अपने एजेंडा का हिस्सा बनाया और तब से लगातार कुछ ख़ास मीडिया हाउस के पत्रकारों ने समय समय पर BHU के बारे में अनर्गल प्रचार करना शुरू किया।
फेसबुक पर कुछ पूर्व छात्रों ने जिनका झुकाव वामपंथ के तरफ रहा है उन्होंने भी इस पुरे घटनाक्रम का गलत चित्रण और दुष्प्रचार  शुरू दिया और #UnsafeBHU को को लेकर धड़ाधड़ कई पोस्ट किये गए। इनमे से एक  हैं जो अपने छात्र जीवन में संस्थान की लाइब्रेरी में अपने से जूनियर एक छात्रा के साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे वो भी झंडा उठाये हुए हैं,  एक हैं जो अपने महिला मित्र के साथ मधुबन में बिताये अपने नितांत ही एकांत पलों के बारे में हॉस्टल में अपने किस्सों को बड़े ही उत्साह और गर्व की अनुभूति के साथ बताते थे , एक महाशय ने तो हॉस्टल के महाराज के सहयोग से महिला छात्रावास में अपने प्रवेश का चित्रण अपनी किताब में भी  किया है, वो भी विश्वविद्यालय के असुरक्षित होने का प्रचार जोर शोर से कर रहे हैं। एक कामरेड हैं जो आज कल मुंबई में हैं उन्होंने तो आग लगाने की जल्दबाज़ी में BHU  के अलावा पुरे देश से फ़र्ज़ी फोटो लगा लगा कर पोस्ट्स की बाढ़ लगा दी।
इन पूर्व छात्रों से मेरा निवेदन है की समस्या के समाधान की तरफ अगर अपना कुछ सहयोग कर सकते हैं तो अवश्य करें, लेकिन कुछ लोगों के प्रभाव में आ कर अपने ही संस्थान की छवि धूमिल करने का प्रयास न करें।हर संस्थान के तरह BHU में भी कुछ समस्याएं हैं और  समस्याओं का समाधान संवाद के जरिये ही मुमकिन है।  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आपका अपना परिवार है , क्या अपने परिवार की समस्याओं के समाधान के लिए आप बाहरी लोगों के पास जाते हैं या उसका सार्वजानिक रूप से उपहास करते हैं ? नहीं, आप मिल बैठ कर समस्या की जड़ तक जाने का प्रयत्न करते हैं और उसके समाधान की व्यवस्था करते है। चंद घटनाओं से पूरा संस्थान असुरक्षित नहीं हो जाता , जो भी घटनाएं हुई हैं उनका विरोध करने के साथ साथ उसके समाधान पर भी ध्यान देना चाहिए और इन अनैतिक घटनाओं को अंजाम भी तो कुछ वर्तमान छात्र ही दे रहे हैं।
जिन लाल सलाम वाले लोगों के बहकावे में आकर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों ने अपने ही संस्थान में आग लगा दिया हैं उन लाल कच्छाधारी कामरेडों के कुकृत्य भी देखिये और नारी के प्रति इनके मन में कितना सम्मान है ये भी समझने की कोशिश कीजिये और फ़र्ज़ी  'चे ग्वेरा ऐटिट्यूड' से उपर उठिये।


चूंकि इस महान संस्थान का नाम बनारस "हिन्दू" विश्विद्यालय है, इसलिए वामियों और कांगियों ने अपने मीडिया के साथियों के साथ मिलकर इस ऐतिहासिक संस्थान की छवि को धूमिल करने की साज़िश रची और काफी हद तक वो इसमे सफल भी हुए हैं। अपनी एजेंडा आधारित पत्रकारिता के कारण मशहूर चैनेल ने भरपूर कोशिश की और वो भी काफी हद तक सफल भी हुआ। और इस तरह छात्र हित के मुद्दों से जुड़ा एक आंदोलन कुछ लोगों और और संगठनों की राजनीतिक अतिमहत्वाकांक्षाओं की बलि चढ़ कर गलत दिशा में चला गया। विश्वविद्यालय के वर्तमान छात्र छात्राओं से निवेदन है की ऐसे मुद्दों को स्वयं हल करने की कोशिश करें और बाहरी राजनैतिक संगठनों के हाथों की कठपुतली न बनकर परिवार के सदस्य के रूप में व्यवहार करें।
पूर्व छात्रों को तो #UnsafeBHU जैसे ट्रेंड्स का अंधसमर्थन करने के बजाय एक बड़े भाई के तौर पे #How to Make BHU Safe again ?" पर संवाद कर समस्या का समाधान पर अपने बहुमूल्य विचार प्रस्तुत करके परिवार के अग्रज सदस्य होने की भूमिका  निर्वहन करना चाहिए था।  


Wednesday, May 17, 2017

Why Presstitutes Opposed Bahubali ?

India is a Nation which is known for making and watching loads of movies. The Box Office Collection of our film Industry is larger than GDPs of many Nations because we Indian loves to watch Movies. We often hear that Films are the mirror to the society to an extent and it affects as well as reflects the Society and the citizen of the Nation.
From last one year on the Social Media there was a question doing rounds after the release of Bahubali Movie and the question was “Why Katappa Killed Bahubali?” This very question found the answer when the part 2 of the Bahubali movie was released a few days back. But after the tremendous opening of the Movie making  around 100 crores on its opening day , I found few Presstitutes writing blogs, articles, write ups asking the viewers not to watch the Movie.  
When I watched the Bahubali movie few days back, some scenes in the movie forced me to think about those blogs and article and I found various connects with contemporary politics and society.  I am trying to explain those instances which forced the Gang members of Lutyens Media to write Anti Bahubali Articles.
The movie shows how a Kingdom gets screwed when a Mother tries to make her dumb and arrogant son a King. Masses connected this with Sonia Gandhi making her dumb son the Prime Minister of the Nation and the Lutyens Media Gang couldn’t see their master being attacked.
The Movie is solely based on the culture and tradition of Ancient India, when only Hinduism was prevailing in the Nation and even in the world, So few of the Ultra Secular Presstitutes tried to portray the movie as Anti Muslims to please their political bosses who are running their political shop only on the idea of Muslim appeasement.
The lead characters of the movie Bahubali have been named as Mahendra and Amarendra Bahubali which resembles with the name of  the Prime Minister Narendra Modi as all three names have “Indra” in their names.  The gang members of Lutyens Media doesn’t want the masses to see it as this.
The Movie Bahubali Conclusion has broken all the previous records of the Box Office Collections on its opening day only. The previous biggest hits of the Bollywood has the Khans in it and the Bahubali have Hindu actors in lead roles. The rise of Hindu stars that too exponentially high than the Khans has also rattled the Presstitutes.
So these are the main reasons which rattled the Presstitutes of Lutyens Gang Media and they are dancing on the tunes of their Political bosses and opposing the Bahubali Movie.


Friday, December 30, 2016

यादव परी-war या भविष्य के लिए हो रहे तैयार

राजनीती असल में रणनीतियों की लड़ाई है। सभी अपनी अपनी रणनीतियों के दम पर जीतने का दम्भ भरते हैं, लेकिन जीत किसी एक की ही होती है जिसकी रणनीति तात्कालिक, सामाजिक व्यावहारिक और आर्थिक परिस्थितियों पर खरा उतरती है। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक घमासान  के इस चरण में सत्तारूढ़ यादव परिवार के बीच तथाकथित राजनीतिक दंगल का क्या परिणाम  होगा वो तो समय के साथ साबित हो ही जायेगा लेकिन यहाँ ये जानना काफी जरुरी है कि क्या ये दंगल वैसा ही है जैसा टेलीविज़न स्क्रीन और अखबार के पन्नों पर दिख रहा है या परदे के पीछे कोई और खेल चल रहा है।
मेरी तरह जो लोग उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं या उत्तर प्रदेश की राजनीती पर पैनी नज़र रखते हैं वो ये अच्छी तरह से जानते हैं की समाजवादी पार्टी की जमीनी सच्चाई  क्या है और जनता के बीच इसकी छवि गुंडे बदमाशों , भ्रष्टाचारियों और अतिजातिवादी पार्टी की है। जब जब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार आयी है गुंडई, भ्रष्टाचार, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध, सरकारी नौकरियों एवं सरकारी ठेकों में जाति विशेष का बोलबाला और लचर कानून व्यवस्था सौगात में ले कर आयी है। 2012 में अखिलेश यादव के नेतृत्व में बनी समाजवादी सरकार भी इन सारे मानकों पर पिछले साढ़े चार सालों में उम्मीद पर बिलकुल खरी उतरी और असामाजिक तत्वों ने वो सारे खेल खेले जिसकी उम्मीद इस सरकार से थी और मुख्यमंत्री जी ने रणनीतिक रूप से अपनी मौन सहमति उनको दे रखी थी। ऐसी कोई सरकारी भर्ती नहीं गुज़री पिछले साढ़े चार सालों में जिसमे अनियमितता और भ्रष्टाचार न हुआ हो। जाती विशेष के अभ्यर्थियों का सरकारी नौकरियों  में बोलबाला , सरकारी ठेकों में सत्ता समर्थित अपराधियों की धौंस , वो सब हुआ जो समाजवादी पार्टी की पहचान रही है।  फिर ऐसा क्या हुआ की सत्ता में साढ़े चार साल इन्ही सबों के बीच अपना हिस्सा बखूबी पाते रहे मुख्यमंत्री जी को दिव्य ज्ञान बोध हुआ और आनन फानन में कई मंत्रियों को उनके पद से ये कह के हटा दिया गया की उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। और तो और शिवपाल यादव के मंत्रालयों में भी कमी की गयी जिससे खिन्न हो कर उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफ़ा देना ज्यादा उचित समझा।
तो पिछले साढ़े चार सालों में होते रहे पापों का ज्ञान बोध आखिरी के 6 महीने में ही क्यों हुआ। इसके पीछे भी कारण है और वो कारण ये है कि 2016 के पूर्वार्द्ध में अखिलेश यादव ने एक सर्वे कराया जिसमे ये संकेत मिले की जनता के बीच उनकी छवि समाजवादी पार्टी के गुंडई वाली छवि से इतर नहीं है और आने वाले चुनावों में उनके जीतने की संभावनाएं क्षीण हैं। अगर चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करना है तो इस छवि से निजात पाना ही होगा और उसी समय ये पटकथा लिखी गयी की  गुंडई वाली छवि से खुद को अलग करना होगा लेकिन पार्टी के आत्मा तक घुस चुके इस छवि से निजात पाना इतना आसान भी नहीं था।  कुछ विश्वस्त नेताओं और इमेज मेकओवर कंपनी के साथ गहन मंथन हुआ और निष्कर्ष ये निकला की धीरे धीरे अखिलेश यादव को स्वच्छ बेदाग़ और विकासवादी छवि देनी होगी। लेकिन सिर्फ इतने से काम नहीं बनता तो इस छवि के साथ कुछ संवेदनाएं और कुछ तकरारों का मिश्रण भी ज़रूरी था ताकि जनता के बीच सहानुभूति का छौंक भी मिले। मुलायम को इस पुरे ड्रामे के पटकथा में साथ लिया गया और उत्तराधिकार की पूरी पटकथा लिखी गयी। विरासत में किसको क्या देना है इस पर ध्यानपूर्वक विचार करने के बाद मुलायम को केंद्र में रखते हुए इस पटकथा का निष्पादन करने पर सहमति हुई।
विमर्शपूर्वक और सोच समझ काफी एहतियात से ये निर्णय हुआ की मुलायम के समाजवाद के उत्तराधिकार में से गुंडई और भ्रष्टाचार वाली छवि को सावधानीपूर्वक पृथक कर शिवपाल के खेमे में जाने दिया जाए और बाकि बचे उत्तराधिकार में थोड़े स्वच्छ और बेदाग़ छवि के साथ विकासवादी सोच को मिश्रित कर अखिलेश को भविष्य की एक सुदृढ़ नींव दी जाये।  ड्रामा शुरू हुआ अक्टूबर में ही लेकिन प्रधानमंत्री जी द्वारा विमुद्रीकरण के प्रस्ताव के कारण लगभग एक महीने तक ड्रामे में अल्प विराम लगा रहा जो अब पुनः अपने अंतिम मोड़ पर आ चूका है और जल्द ही कुछ निर्णायक रंग लेगा।


Tuesday, September 27, 2016

दिल्ली के मुख्यमंत्री को खुला पत्र

आदरणीय दिल्ली के मुख्यमंत्री जी
पिछले दिनों खबरों  आपकी बढ़ी हुई जीभ के इलाज हेतु बंगलुरु जाने का समाचार प्राप्त हुआ। जीभ के इलाज के बाद जल्द स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाये और उम्मीद है अब इलाज के बाद आपकी बदजुबानी में भी पहले से कमी आएगी।
केजरीवाल जी आप जब से मुख्यमंत्री बने हैं तब से कई मर्तबा आपने अपने खुद के इलाज के लिए बंगलुरु का रूख किया है और इस पर लाखों रुपये सरकारी खजाने से खर्च भी किये हैं। चलिए आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख रहे हैं जान कर काफी तसल्ली होती है क्योंकि भारतीय राजनीती में आप जैसे झूठों की भी आवश्यकता वैसी ही है जैसे खाने में मिर्च की होती है। वैसे तो आपने दिल्ली की सरकार में कोई भी औपचारिक मंत्रालय तो संभाला नहीं हुआ है , लेकिन आपने ट्विटर और बाकि राज्यों में पार्टी के प्रचार की कमान बखूबी संभाल रखी है। खैर आप तो स्वघोषित ईमानदार हैं और आपने अपने पार्टी के लीडरान को भी आपने बखूबी अपने द्वारा प्रमाणित प्रमाण पात्र दे रखे हैं, ऐसा करने वाले भी आप एकलौते राजनीतिज्ञ हैं।
मुख्यमंत्री जी, आप अपने इलाज के लिए जब सरकारी खर्चे पर बंगलुरु तक चले जाते हैं, तो क्या आपको इस बात का तनिक भी इल्म होता है आपकी दिल्ली की लाखों जनता डेंगू और चिकुनगुनिया जैसे बीमारियों से जान गांव रही है, क्योंकि दिल्ली सरकार के स्वामित्व वाले अस्पतालों में उनके इलाज की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गयी है क्योंकि आपके स्वास्थ्य मंत्री तो गोवा में आगामी चुनावों के प्रचार की कमान संभाले हुए थे।
मुख्यमंत्री जी आप अन्य राज्यों में बखूबी प्रचार करिये और अपनी पार्टी का विस्तार भी करिये लेकिन ये विस्तार और प्रचार कम से कम उस राज्य के गरीब जनता के स्वास्थ्य के कीमत पर तो मत ही कीजिये जिसने आप लोगो को फर्श से उठा कर अर्श पर डाल दिया है।  अमीर लोग तो अपना इलाज प्राइवेट अस्पतालों में करा लेते हैं लेकिन वो निरीह गरीब जनता आप और आपके मंत्रियों को कैसे और कहाँ कहाँ खोजे जो सरकारी अस्पतालों में अपना इलाज करवाते हैं।
और अंत में ये ही लिखना चाहूंगा की "आधा छोर जो पूरी धावे , आधी मिले ने पूरी पावे।"  उम्म्मीद है आप इसका मतलब समझ जायेंगे और दिल्ली की जनता पर थोड़ा रहम और करम फरमाएंगे जिसने आपके झूठे वादों पर उम्मीद कर के आपको सत्ता सौंप दी ताकि आप सरकारी खर्चे पर अपना इलाज करा सकें और आप और आपके मंत्री दूसरे राज्यों में पार्टी का प्रचार कर सके।

धन्यवाद
भारत का एक साधारण नागरिक


चित्र - साभार मनोज कुरील जी



Monday, November 16, 2015

सहिष्णु या असहिष्णु : बनारसी परिपेक्ष्य मे

सरजू काका हमेशा की तरह शाम के अपने तय रूटीन के हिसाब से केशव की दुकान पर पान खाने पहुंचे ही थे की देखा वहां तो बड़ी भाषणबाजी चल रही थी। सोचे की तनिक दूर से ही समझा जाए की कौने बात पर झाम फंस गया आज, कुछ देर तक सबकी सुनी तो समझ आया की आखिर मजरा क्या है। खैर जब सबकी दुकान केशव के दुकान से उठ गई तो आ धमके सरजू काका केशव के हाथों का बना कत्था, किमाम , गुलकंद, सुपारी मिश्रित पान दबाने।
केशव ने देखते ही अभिवादन किया और कहा "गुरु , तनिक दुई मिनट पहिले आते तो मज़ा आता।"
सरजू काका ने कहा "पहिले पान तो खिलाओ केशव फिर मज़ा दिलाते हैं, सूखे सूखे मजा कहाँ आई ई मौसम मे।"
खैर केशव ने हमेशा की तरह बड़े ही प्यार से सरजू काका के फोर्मूले का पान लगाया और बढ़ा दिया उनकी ओर , काका ने भी पान लिया और रख दिया अपने जीभ पर और मुह बंद कर के लगे पान का लुत्फ उठाने। फिर तनिक चुना और दुई सुपारी लेते हुये बोले , "हाँ भैया केशव कहो का मज़ा की बात कर रहे थे?"
केशव कहिन "गुरु मज़ा की बेमज़ा ऊ त तुहे बुझा, हमके बस इतना बता द की आज कल ई जऊन 'सहिस्डु' और 'असहिस्डु' के बवाल मचल बा बजारे मे , ओकर का मतलब ब। अबहीन दू मिनट पहिले पूरा बाज़ार गरम करे रहलन भैया लोग।"
सरजू काका अपने पान की पीक से काशी स्वच्छ करते हुये बोले , "देखो गुरु ई जो तुम पान लगावत हो , सबे जनी खूब मज़ा ले के खावत है , और खावे के बाद जऊन पीक है ओसे काशी के स्वच्छ भी करत है।"
केशव कहे , "हाँ गुरु, सही बात है।"
तब सरजू काका कहेन  "त फिर ई जो पान खा के पीक मारे और ऊ पीक जऊन है अगर कौनों राह चलत आदमी पर पड़ जाए और ऊ आदमी कुछ न कहे , चुप चाप चल जाए त ऊ भयल 'सहिस्डु' और अगर बदले मे तोहके दू-चार गो निमनका बनारसी गाली मे से सुना दे, त ऊ भयल 'असहिस्डु'। समझ गयीले न , बस सब पान के पीक के फेरा बाटे। तू ज्यादा टेंशन मत ले।" कहते हुये सरजू काका केशव की दुकान से जाने लगे।
जाते हुये सरजू काका को पीछे से आवाज़ देते हुये केशव ने कहा "और गुरु अगर सामने वाला पान के पीक पड़े के बाद तोहके भी अपन पीक से लाल कर दे तब"
"तब  ऊ भयल 'पक्का बनारसी' ", कह कर मुस्कराते हुये सरजू काका आगे बढ़ चले।





Saturday, August 8, 2015

नितीश कुमार के नाम खुला पत्र

आदरणीय नितीश जी,
आम आदमी पार्टी के समर्थकों द्वारा ट्विटर पर ट्रेंड की गई आपकी प्रधानमंत्री जी के नाम चिट्ठी पढ़ी, आपने आपके DNA पर किए गए टिप्पणी को जिस तरह सम्पूर्ण बिहार के DNA से जोड़ कर ओछी राजनीति करने की कोशिश की है , आपसे वैसी ही राजनीति की उम्मीद थी। परंतु अपने DNA को बिहार के DNA से जोड़ने से पहले तनिक बिहार के स्वर्णिम इतिहास का तो ख्याल करते। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है की आज कल आम आदमी पार्टी वालों से राजनीतिक आदान प्रदान कुछ ज्यादा ही होने के कारण आप ने चिट्ठी भी उनके ज्ञान से प्रभावीत हो कर ही लिख दी है।
महाशय जी बिहार की धरती का स्वर्णिम इतिहास आपकी सोच से भी प्राचीन है। बिहार की धरती महाराज जनक की धरती रही है जिनके न्याय और धर्म के ज्ञान का सानी रामायण काल मे भी सर्वव्यापी था।  बिहार की पावन धरती महात्मा बुद्ध की धरती रही है , जिन्होने विश्व शांति और सद्भाव का उत्तम ज्ञान दुनिया को दिया। जैन धर्म की संस्थापना महावीर जैन ने बिहार की इसी पावन धरा से किया। बिहार की ये पवित्र धरती महागुरु चाणक्य की कर्म स्थली रही है , जिनहोने अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र मे अपने उत्कृष्ट ज्ञान से दुनिया भर मे अपना लोहा मनवाया और बिहार के साथ साथ सम्पूर्ण भारतवर्ष  का नाम रोशन किया। बिहार हजारों वर्ष पहले से ही शिक्षा और संस्कृति का केंद्र रहा है और नालंदा का प्राचीन विश्वविद्यालय इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।बिहार की धरती पर महागुरु चाणक्य के सनिध्य मे उपज कर मौर्य वंश ने अपने वीर शाषकों के परक्रम  के बदौलत अपने साम्राज्य की सीमाए सभी दिशाओं मे सुदूर स्थानों तक फैलाई थी और पाटलीपुत्र की धरती से सकुशल इसका संचालन भी किया। बिहार की धरती पर ही विश्व की प्राचीनतम ज्ञात गणतन्त्र की नीव वैशाली गणराज्य मे रखी गई थी और सफलतापूर्वक गणतन्त्र का संचालन जनता के चुने प्रतिनिधियों द्वारा किए जाने के प्रमाण उपलब्ध हैं। आज़ादी की पहली लड़ाई मे सन 1857 मे बिहार की धरती से ही वीर कुँवर सिंह ने विद्रोह का कुशल नेतृत्व किया और अंग्रेज़ी सेनाओं से लोहा लिया था और उनको नाको चने चबवाये थे। और आज़ादी के बाद बिहार की धरती के लाल बाबू राजेंद्र प्रसाद जी स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बन कर बिहार का नाम और रौशन किया।
अतः आपसे विनम्र निवेदन है की ओछी राजनीति से ऊपर उठें और बिहार के अपने 10 वर्षों के शासनकाल मे किए गए विकास को ले कर जनता के बीच जाएँ और इस तरह की ओछी राजनीति से बाज आयें। आपका DNA सम्पूर्ण बिहार का DNA न कभी था और न कभी हो सकता है। बिहार के स्वर्णिम इतिहास के बराबर स्वयं को बनाने का जो आप निरर्थक प्रयास कर रहे हैं उससे आपकी सोच पर हसी भी आ रही है और आपके वैचारिक दिवालियेपन पर रोना भी आ रहा है। असल मे किसी भी व्यक्ति  के वैचारिक ज्ञान का स्तर उसके संगति के ऊपर काफी हद तक निर्भर करता है और आप तो आज कल चारा चोरों से ले कर नृशंश अपराधियों और धूर्त ढ़ोगियों के संगत मे हैं, अतः आपके वैचारिक ज्ञान के इस गिरे हुये स्तर का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
काफी पहले कांग्रेस पार्टी की इन्दिरा गांधी को ये गुमान हो गया था की India is Indira and Indira is India और उनका अंजाम आपको पता ही होगा, जेल तक जाना पड़ा था। और आज कल आपको भी उसी तर्ज पर  ऐसा लग रहा है की Nitish Kumar is Bihar , इसलिए नितीश बाबू, तनिक गुमान कम करिए नहीं तो ये जनता जो है न जब उठा के पटकती है, तो बुझाता नहीं की कहा फेंका गए। आगे से कृपया अपने राजनीति के स्तर को तनिक ऊपर उठाने का प्रयास करें, अन्यथा बिहार की जनता सब समझती है और आपको उठा कर कहा फेकेगी आप इसका अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते।




Friday, July 31, 2015

72 हूरों की ख्वाइश मे वो तो मरने के लिए मर रहा था

वो तो उसके वकील ही उसे फांसी के तख्ते पर लटकने से बचाना चाह रहे थे , उसकी इच्छा तो न जाने कब से थी की वो लटक जाए। पहले तो भारतीय न्याय पद्धति की लेट लतीफी से दिये जाने वाले फैसलों ने उसके चाह पर विराम लगाई और जब फांसी मुकर्रर हुई तब कुछ दानव अधिकार के ठेकेदारों को उसकी फांसी टलवाने की सूझी। इसके पहले दया याचिका और सुधार याचिका जैसे तमाम उपचार की कोशिश करी जा चुकी थी, लेकिन कोई उससे उसकी मन की तो जान लेता।
महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल से ले कर माननीय मुख्य न्यायाधीश तक सभी ने अपना फैसला दे दिया था की उसे तो फांसी पर लटकना ही होगा, लेकिन फिर भी कुछ लोगों को चैन नहीं था। इन वकीलों को तो उसे मिलने वाली खुशी का एहसास मात्र ही उसे ज़िंदा रखने की कोशिश करने पर विवश कर रहा था। खैर तमाम लेट लतीफी और पिछले 22 सालों मे देखे उतार चढ़ाव के बाद कल सुबह उसे उसकी ख्वाबों की दुनिया नसीब होने वाली थी , जिसकी चाह मे उसने ऐसी नृशंस आतंकवादी वारदात देने मे तनिक भी नहीं सोचा।
सुबह जब बंदी रक्षक ने उसे नहाने को कहा और पहनने को नए कपड़े दिये वो तब उसने सोचा आज उसकी वर्षों की मुराद पूरी होगी , जन्नत मे उसके लिए 72 हूरों का उम्दा इंतजाम किया जा चुका होगा जो जन्नत के द्वार पर उसके लिए पलके बिछाए इंतज़ार मे खड़ी होंगी। खैर फांसी के फंदे को देख उसने अपनी आंखे बंद की और झूल गया उस फंदे पर। कुछ मिनटों की दर्द ने उसे उन 257 लोगों के दर्द का एहसास कराया या नहीं इसके बारे मे कुछ भी कहा नहीं जा सकता, और फिर ये क्या,ये तो चारो तरफ तो घुप्प अंधेरा पसरा पड़ा है। और ये कहा भेजा जा रहा है इसे विद्युत सी तीव्र गति से, कुछ एक पलों के इस सफर के बाद आंखों पर जब रोशनी पड़ी तो ये क्या ये कौन सी फौज खड़ी है सामने। उन्होने तो कहा था 72 हूरें पलक पावड़े बिछाए खड़ी होंगी और फिर ताउम्र बस उनही के बीच आराम से गुज़रेगी। लेकिन ये तो सामने कुछ और ही नज़ारा है। सामने से कुछ जाने पहचाने चेहरे उसके सामने आते हैं और उसे सारी बातें समझ मे आने लगती हैं। उसे अहसास हुआ अपनी बेवकूफी का, गलती का हुआ या नहीं इसके बारे मे कहा नहीं जा सकता। लेकिन अब तो इनके बीच ही बीतनी है , फिर आँखें बंद कर उसने सोचा, ये ही था तो वहाँ क्यू हँगामा फैला है यहाँ आने के लिए? यही सोच रहा होगा शायद कि काश वापस जा के बता पाता कि धोखा किसी और ने नहीं उसके अपनों ने ही किया है।

चित्र- साभार श्री मनोज कुरील


Monday, July 20, 2015

'आप' तो बड़े बेशर्म निकले

2011 के अन्ना आंदोलन के गर्भ से पैदा हुई आम आदमी पार्टी खुद के बारे मे कहती थी की वो देश को वैकल्पिक राजनीति देने आए हैं, परंतु  जिस तरीके से बाकी सारी पार्टियों पर आम आदमी पार्टी चोर, बेईमान कहती थी और भ्रस्टाचार तथा भाई भतीजावाद फैलाने का आरोप लगती थी, आज ठीक उसी ढर्रे पर चलने लगी है। महज ढाई सालों पहले जब अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी की स्थापना की थी तो जिन जिन मुद्दों पर इन्होने खुद के बाकी राजनैतिक दलों से अलग होने का दावा किया था वो सारे दावे आज पार्टी मे कहीं दिखाई नहीं दे रहे। पार्टी का नारा था "एक नया विकल्प" , लेकिन महज ढाई सालों मे इस विकल्प मे वो सारे ऐब दिखाई देने लगे जिससे अलग होने का दावा और वादा इन्होने देश की आवाम से किया था ।
दिल्ली मे सरकार बनाने के बाद आप की सरकार को वो VVIP कल्चर अपनाने मे चंद घंटे भी नहीं लगे जिसकी ये घोर विरोधी रही थी। आज इनके VVIP कल्चर का आलम ये है की मुख्यमंत्री एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते समय साफ साफ कह दिया की ये एक मुख्यमंत्री का इंटरव्यू है किसी ऐरे गैरे का नहीं। चुनाव के पहले तो आपने कहा था चाहे मुख्यन्त्री बन जाऊ चाहे प्रधानमंत्री ,मैं तो आम आदमी की तरह ही रहूँगा जी।
भ्रस्टाचार मे अपने कदम आगे बढ़ाते हुये आज आम आदमी  पार्टी ने अपने कई पार्टी वोल्यूनटियर्स को दिल्ली सचिवालय मे ऊंचे वेतनमान पर रखा है, जिनमे कइयों के वेतन तो वरिष्ठ IAS अफसरों से भी ज्यादा है। आपने चुनाव के पहले ऐसा तो नहीं कहा था केजरीवाल जी। 
केजरीवाल जी अपने खुद के  प्रचार के लिए दिल्ली सरकार के बजट मे 526 करोड़ रुपयों का प्रावधान रखा है, जो पिछली सरकारों से 2000 प्रतिशत से भी ज्यादा है। आपने चुनाव के पहले ऐसा तो नहीं कहा था केजरीवाल जी। 
केजरीवाल जी ने तमाम ठेके अपने चहेते ठेकेदारों एवं अपने रिशतेदारों मे बांटने शुरू कर दिये और इन ठेकों के देने के बदले मे अच्छी ख़ासी सुविधा शुल्क भी वसूली जा रही है। आपने चुनावों मे इन चीजों का विरोध कर के ही तो वोट मांगे थे केजरीवाल जी। फिर किस हिसाब से आपने देश को नया विकल्प देने की बात कही थी। 
केजरीवाल जी ने अपनी पुरानी मित्र एवं पार्टी के हरियाणा नेता नवीन जयहिंद की पत्नी को महिला आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर के रही सही कसर भी पूरी कर दी। भाई भतीजावाद से इतर एक नया विकल्प देने का वादा करके आप भी तो वही करने लगे जिसका आरोप आप दूसरी पार्टियों पर लगाते रहे हैं।  
इस तरह के जन आंदोलन के गर्भ से निकलने  वाली राजनीतिक पार्टियों का इतिहास देश की जनता को हमेशा से कड़वा अनुभव देने वाला ही रहा है, चाहे वो समाजवादी आंदोलन हो या जनता आंदोलन और आपने इसी बात को अपने आम आदमी पार्टी द्वारा  एक बार फिर साबित कर दिया। अगर इसी स्वराज का सपना आपने दिखाया था , तो मुझे गर्व है की मैंने आपका विरोध किया और आगे भी करता रहूँगा। संक्षेप मे तो बस इतना ही कहना चाहूँगा- 'आप' तो बड़े बेशर्म निकले। 

चित्र - साभार श्री मनोज कुरील