
महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल से ले कर माननीय मुख्य न्यायाधीश तक सभी ने अपना फैसला दे दिया था की उसे तो फांसी पर लटकना ही होगा, लेकिन फिर भी कुछ लोगों को चैन नहीं था। इन वकीलों को तो उसे मिलने वाली खुशी का एहसास मात्र ही उसे ज़िंदा रखने की कोशिश करने पर विवश कर रहा था। खैर तमाम लेट लतीफी और पिछले 22 सालों मे देखे उतार चढ़ाव के बाद कल सुबह उसे उसकी ख्वाबों की दुनिया नसीब होने वाली थी , जिसकी चाह मे उसने ऐसी नृशंस आतंकवादी वारदात देने मे तनिक भी नहीं सोचा।
सुबह जब बंदी रक्षक ने उसे नहाने को कहा और पहनने को नए कपड़े दिये वो तब उसने सोचा आज उसकी वर्षों की मुराद पूरी होगी , जन्नत मे उसके लिए 72 हूरों का उम्दा इंतजाम किया जा चुका होगा जो जन्नत के द्वार पर उसके लिए पलके बिछाए इंतज़ार मे खड़ी होंगी। खैर फांसी के फंदे को देख उसने अपनी आंखे बंद की और झूल गया उस फंदे पर। कुछ मिनटों की दर्द ने उसे उन 257 लोगों के दर्द का एहसास कराया या नहीं इसके बारे मे कुछ भी कहा नहीं जा सकता, और फिर ये क्या,ये तो चारो तरफ तो घुप्प अंधेरा पसरा पड़ा है। और ये कहा भेजा जा रहा है इसे विद्युत सी तीव्र गति से, कुछ एक पलों के इस सफर के बाद आंखों पर जब रोशनी पड़ी तो ये क्या ये कौन सी फौज खड़ी है सामने। उन्होने तो कहा था 72 हूरें पलक पावड़े बिछाए खड़ी होंगी और फिर ताउम्र बस उनही के बीच आराम से गुज़रेगी। लेकिन ये तो सामने कुछ और ही नज़ारा है। सामने से कुछ जाने पहचाने चेहरे उसके सामने आते हैं और उसे सारी बातें समझ मे आने लगती हैं। उसे अहसास हुआ अपनी बेवकूफी का, गलती का हुआ या नहीं इसके बारे मे कहा नहीं जा सकता। लेकिन अब तो इनके बीच ही बीतनी है , फिर आँखें बंद कर उसने सोचा, ये ही था तो वहाँ क्यू हँगामा फैला है यहाँ आने के लिए? यही सोच रहा होगा शायद कि काश वापस जा के बता पाता कि धोखा किसी और ने नहीं उसके अपनों ने ही किया है।
चित्र- साभार श्री मनोज कुरील
No comments:
Post a Comment