भारत के स्वधिनता संग्राम के एक मजबूत स्तम्भ राम मनोहर लोहिया ने समाजवाद की परिकल्पना इस उद्देश्य से करी थी की समाज के आखिरी छोर तक खड़े गरीबों , दलितों को समाजिक विकास की अगली पंक्ति मे ला कर सभी वर्गों के साथ कंधे से कंधे मिला कर चलने योग्य बनाया जाएगा। लेकिन लोहिया के चेलों ने जाने लोहिआ से समाजवाद की कौन सी शिक्षा ली थी जो आज के उत्तर प्रदेश मे परिलक्षित हो रही है। ये लोहिया के शिक्षा की विफलता तो बिलकुल ही नहीं हो सकती, वरन ये उनके शिष्यों के समाजवाद के समझ की ही विफलता है। समाजवाद की जो परिकल्पना लोहिया जी ने की थी वो तो उनके साथ ही इस दुनिया से चला गया और मुलायम जैसे लोग उस समाजवाद की आत्मा को तड़पा भर ही रहे हैं। आज हमारे उत्तर प्रदेश मे गरीबों, दलितों और महिलाओं पर हो रहा अत्याचार समाजवाद की परिभाषा मे तो नहीं आता। ये लोहिया का समाजवाद नहीं, परंतु उनके चेलों का सीखा हुआ असमाजवाद ही हो सकता है।
लोहिया से शुरू हुई समाजवाद की परिकल्पना आज समाजवाद के स्व्घोषित पुरोधा मुलायम के परिवार की दहलीज पर दम तोड़ चुका है। मुलायम ने आज समाजवाद को पारिवारिक जामा पहना कर महज एक परिवारवाद बना दिया है। लोहिया जी ने समाजवाद की परिकल्पना समाज के अंतिम छोर तक मौजूद लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने की थी, परंतु उनही राम मनोहर लोहिया के शिष्य मुलायम सिंह यादव ने उनके समाजवाद के दिव्य स्वपन को अपने द्वारा बनाए हुये परिवारवाद के पैरों कुचल दिया है।
लोहिया तो राजनीति की गंदी गली में भी शुद्ध आचरण की बात करते थे। लेकिन आज का मुलायम का समाजवाद तो उनके इस विचार से कोसों दूर दिखाई पड़ता है। शुद्ध आचरण की बात ही आज की समाजवाद मे बेमानी है। आज उत्तर प्रदेश का कोना कोना मुलायम के असमाजवाद के जहर को घुट घुट के पी रहा है। आज उत्तर प्रदेश की निरंकुश सरकार को जनता की परेशानियों से कोई मतलब नहीं है। इनहोने जनता की लाश कुचल कर परिवारवाद को आगे बढ़ाया है।इस असमाजवाद के बर्बर और निरंकुश रूप को देख कर कहीं न कहीं लोहिया की आत्मा भी अवश्य ही रोज़ तड़प उठती होगी। आज इस असमाजवाद से इस प्रदेश को सिर्फ राष्ट्रवाद ही बचा सकता है। सभी राष्ट्रवादियों को मिल कर इस असमाजवाद को उखाड़ फेकना ही होगा।
लोहिया से शुरू हुई समाजवाद की परिकल्पना आज समाजवाद के स्व्घोषित पुरोधा मुलायम के परिवार की दहलीज पर दम तोड़ चुका है। मुलायम ने आज समाजवाद को पारिवारिक जामा पहना कर महज एक परिवारवाद बना दिया है। लोहिया जी ने समाजवाद की परिकल्पना समाज के अंतिम छोर तक मौजूद लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने की थी, परंतु उनही राम मनोहर लोहिया के शिष्य मुलायम सिंह यादव ने उनके समाजवाद के दिव्य स्वपन को अपने द्वारा बनाए हुये परिवारवाद के पैरों कुचल दिया है।
लोहिया तो राजनीति की गंदी गली में भी शुद्ध आचरण की बात करते थे। लेकिन आज का मुलायम का समाजवाद तो उनके इस विचार से कोसों दूर दिखाई पड़ता है। शुद्ध आचरण की बात ही आज की समाजवाद मे बेमानी है। आज उत्तर प्रदेश का कोना कोना मुलायम के असमाजवाद के जहर को घुट घुट के पी रहा है। आज उत्तर प्रदेश की निरंकुश सरकार को जनता की परेशानियों से कोई मतलब नहीं है। इनहोने जनता की लाश कुचल कर परिवारवाद को आगे बढ़ाया है।इस असमाजवाद के बर्बर और निरंकुश रूप को देख कर कहीं न कहीं लोहिया की आत्मा भी अवश्य ही रोज़ तड़प उठती होगी। आज इस असमाजवाद से इस प्रदेश को सिर्फ राष्ट्रवाद ही बचा सकता है। सभी राष्ट्रवादियों को मिल कर इस असमाजवाद को उखाड़ फेकना ही होगा।