सीन 1 - क्लर्क पद की सरकारी नौकरी के 280 पदों
के लिए देश भर से 12 लाख लोगों ने किया आवेदन
सीन 2 - भूख की वजह से बंगाल के एक गाँव में
मरे 13 बच्चे
सीन 3 - देश में 4 करोड़ लोग अभी भी फूटपाथ पर
सोने को मजबूर
सीन 4 - राशन की लाइन में लगे लगे सुबह से हो
गयी शाम , फिर भी महिलाओं को राशन नहीं मिला
सीन 5 - 24 सालों से ज़मीन का मुकदमा लड़ रहे
बुजुर्ग की अदालत परिसर में ही हृदयाघात से हुई मौत
सीन 6 - देश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल AIIMS
में इलाज के लिए इन्तजार की लाइन में ही बजुर्ग की हुई मौत
सीन 7 - दीवाली और छठ पर दिल्ली-मुंबई से UP , बिहार
की ट्रेनें हुईं हाउसफूल
सीन 8 - गुडगाँव से दिल्ली की महज 20 किलोमीटर
की दुरी तय करने में लग रहा 2 घंटे का समय

ये महज कुछ घटनाओं की बानगी भर है I देश भर में जहाँ भी जाना होता है ऐसी ही घटनाओं से आम जान रूबरू होते रहते है I इस तरह की घटनाएँ अब तो हमारी आम जिंदगी का एक हिस्सा बन कर रह गयी हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा है की आखिर हमारे देश में ऐसी घटनाएँ आम क्यों होते जा रही हैं ? अगर आप चिंतन करें तो आपको महसूस होगा की इन सभी घटनाओं के पीछे जो मूल कारण है, वो ये है की देश की जनसंख्या लगातार बेलगाम रूप से बढ़ते बढ़ते अब उस स्तर पर पहुँच चुकी है जो हमारे देश और यहाँ के देशवासियों के लिए एक अलार्मिंग सिचुएशन बन गयी है I देश की किसी भी बड़ी समस्या का नाम लीजिये , वो कही न कहीं इस विशाल जनसँख्या की ही उपज है I वो चाहे , बेरोजगारी हो , भुखमरी हो , देशवासियों के लिए रहने के मकानों की कमी हो, राशन की अनुपलब्धता हो, अदालतों में बढ़ता हुआ मुकदमो का बोझ हो , सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की बिगड़ी हुई हालत हो, ट्रेनों में सीटों की उपलब्धता हो या फिर सडकों पर निरंतर बेतहाशा बढती गाड़ियों की वजह से लगातार बढ़ती जाम की समस्या हो I सरकार चाहे कितने भी उपाय कर ले , लेकिन जब तब इन सभी समस्याओं के मूल कारण , देश की इस बढती हुई जनसँख्या की तरफ अपना ध्यान नहीं लगाएगी , ये समस्याएं यूँ ही बढती चली जाएँगी I वो किसी एक समस्या का समाधान की विफल कोशिश करेंगे तो दूसरी समस्या विकराल रूप ले कर सामने आ जाएगी I
आज देश की बढती जनसंख्या और इससे जुड़े समस्याओं की वजह से देश
के सभी वर्गों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है I समय की मांग यही है की समाज के
सभी वर्गों को जाती, समाज और धर्म की मान्यताओं और बाध्यताओं से ऊपर उठ कर इस
विकराल रूप लेती हुई जनसंख्या की समस्या का समाधान करने के लिए स्वेच्छा
से सहयोग देना चाहिए I मध्यम वर्ग तो काफी हद तक स्वयं के परिवारों को सीमित करने
में सफल हुआ है लेकिन निम्न वर्ग और कुछ संप्रदाय विशेष ने अभी तक इस समस्या की
तरफ से अपनी नज़रें फेर रखी हैं I इस वजह से उनके वोट की ताकत दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रही
है और किसी भी सरकार के लिए इस अति महत्वपूर्ण मुद्दे को छूना उनके वोट बैंक की राजनीती के लिए खतरे से खाली नहीं है
I लेकिन क्या एक समाज और राष्ट्र के रूप में हम असफलता की तरफ अग्रसारित हुए नहीं
जा रहे हैं ?
देश के उपजाऊ भूमि की अन्न उत्पादन की क्षमता
भी दिन प्रतिदिन इस बढती जनसंख्या के बोझ को उठाने में असमर्थ होती जा रही है
और प्राकृतिक संसाधनों की अनुपलब्धता की वजह से आने वाली पीढ़ियों के लिए शुद्ध
पीने योग्य जल की उपलब्धता भी एक बहुत बड़ी समस्या हो सकती है I आज भी देश में ऐसे
कई ब्लॉक्स पैदा हो गए हैं जहाँ पीने योग्य पानी के लिए लोगों को मीलों सफ़र करके
जाना होता है I 1951 के 36 करोड़ की जनसंख्या से हम आज 2018 में करीब 132 करोड़ के
देश बन चुके हैं और हर साल हम एक नीदरलैंड देश के बराबर की जनसँख्या देश में बढाते जा रहे हैं I
आज़ादी के बाद से आज तक सभी सरकारों ने देश की
स्थिति के हिसाब से कम अपने वोट बैंक के स्थिति के हिसाब से ही निर्णय लिए हैं ,
लेकिन अब समय आ गया है की सभी राजनीतिक पार्टियों को वोट बैंक और साम्रदायिक
राजनीती से ऊपर उठ कर देश की भविष्य को ध्यान में रखते हुए ही जनसंख्या नियंत्रण
के कठोर प्रावधानों की नीव रखनी चाहिए I कठोर जनसँख्या नियंत्रण के कानून और इसके
कठोरता से अनुपालन करके ही देश और देशवासियों को अपने उज्जवल भविष्य की उम्मीद
रखनी चाहिए I