Friday, July 31, 2015

72 हूरों की ख्वाइश मे वो तो मरने के लिए मर रहा था

वो तो उसके वकील ही उसे फांसी के तख्ते पर लटकने से बचाना चाह रहे थे , उसकी इच्छा तो न जाने कब से थी की वो लटक जाए। पहले तो भारतीय न्याय पद्धति की लेट लतीफी से दिये जाने वाले फैसलों ने उसके चाह पर विराम लगाई और जब फांसी मुकर्रर हुई तब कुछ दानव अधिकार के ठेकेदारों को उसकी फांसी टलवाने की सूझी। इसके पहले दया याचिका और सुधार याचिका जैसे तमाम उपचार की कोशिश करी जा चुकी थी, लेकिन कोई उससे उसकी मन की तो जान लेता।
महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल से ले कर माननीय मुख्य न्यायाधीश तक सभी ने अपना फैसला दे दिया था की उसे तो फांसी पर लटकना ही होगा, लेकिन फिर भी कुछ लोगों को चैन नहीं था। इन वकीलों को तो उसे मिलने वाली खुशी का एहसास मात्र ही उसे ज़िंदा रखने की कोशिश करने पर विवश कर रहा था। खैर तमाम लेट लतीफी और पिछले 22 सालों मे देखे उतार चढ़ाव के बाद कल सुबह उसे उसकी ख्वाबों की दुनिया नसीब होने वाली थी , जिसकी चाह मे उसने ऐसी नृशंस आतंकवादी वारदात देने मे तनिक भी नहीं सोचा।
सुबह जब बंदी रक्षक ने उसे नहाने को कहा और पहनने को नए कपड़े दिये वो तब उसने सोचा आज उसकी वर्षों की मुराद पूरी होगी , जन्नत मे उसके लिए 72 हूरों का उम्दा इंतजाम किया जा चुका होगा जो जन्नत के द्वार पर उसके लिए पलके बिछाए इंतज़ार मे खड़ी होंगी। खैर फांसी के फंदे को देख उसने अपनी आंखे बंद की और झूल गया उस फंदे पर। कुछ मिनटों की दर्द ने उसे उन 257 लोगों के दर्द का एहसास कराया या नहीं इसके बारे मे कुछ भी कहा नहीं जा सकता, और फिर ये क्या,ये तो चारो तरफ तो घुप्प अंधेरा पसरा पड़ा है। और ये कहा भेजा जा रहा है इसे विद्युत सी तीव्र गति से, कुछ एक पलों के इस सफर के बाद आंखों पर जब रोशनी पड़ी तो ये क्या ये कौन सी फौज खड़ी है सामने। उन्होने तो कहा था 72 हूरें पलक पावड़े बिछाए खड़ी होंगी और फिर ताउम्र बस उनही के बीच आराम से गुज़रेगी। लेकिन ये तो सामने कुछ और ही नज़ारा है। सामने से कुछ जाने पहचाने चेहरे उसके सामने आते हैं और उसे सारी बातें समझ मे आने लगती हैं। उसे अहसास हुआ अपनी बेवकूफी का, गलती का हुआ या नहीं इसके बारे मे कहा नहीं जा सकता। लेकिन अब तो इनके बीच ही बीतनी है , फिर आँखें बंद कर उसने सोचा, ये ही था तो वहाँ क्यू हँगामा फैला है यहाँ आने के लिए? यही सोच रहा होगा शायद कि काश वापस जा के बता पाता कि धोखा किसी और ने नहीं उसके अपनों ने ही किया है।

चित्र- साभार श्री मनोज कुरील


Monday, July 20, 2015

'आप' तो बड़े बेशर्म निकले

2011 के अन्ना आंदोलन के गर्भ से पैदा हुई आम आदमी पार्टी खुद के बारे मे कहती थी की वो देश को वैकल्पिक राजनीति देने आए हैं, परंतु  जिस तरीके से बाकी सारी पार्टियों पर आम आदमी पार्टी चोर, बेईमान कहती थी और भ्रस्टाचार तथा भाई भतीजावाद फैलाने का आरोप लगती थी, आज ठीक उसी ढर्रे पर चलने लगी है। महज ढाई सालों पहले जब अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी की स्थापना की थी तो जिन जिन मुद्दों पर इन्होने खुद के बाकी राजनैतिक दलों से अलग होने का दावा किया था वो सारे दावे आज पार्टी मे कहीं दिखाई नहीं दे रहे। पार्टी का नारा था "एक नया विकल्प" , लेकिन महज ढाई सालों मे इस विकल्प मे वो सारे ऐब दिखाई देने लगे जिससे अलग होने का दावा और वादा इन्होने देश की आवाम से किया था ।
दिल्ली मे सरकार बनाने के बाद आप की सरकार को वो VVIP कल्चर अपनाने मे चंद घंटे भी नहीं लगे जिसकी ये घोर विरोधी रही थी। आज इनके VVIP कल्चर का आलम ये है की मुख्यमंत्री एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते समय साफ साफ कह दिया की ये एक मुख्यमंत्री का इंटरव्यू है किसी ऐरे गैरे का नहीं। चुनाव के पहले तो आपने कहा था चाहे मुख्यन्त्री बन जाऊ चाहे प्रधानमंत्री ,मैं तो आम आदमी की तरह ही रहूँगा जी।
भ्रस्टाचार मे अपने कदम आगे बढ़ाते हुये आज आम आदमी  पार्टी ने अपने कई पार्टी वोल्यूनटियर्स को दिल्ली सचिवालय मे ऊंचे वेतनमान पर रखा है, जिनमे कइयों के वेतन तो वरिष्ठ IAS अफसरों से भी ज्यादा है। आपने चुनाव के पहले ऐसा तो नहीं कहा था केजरीवाल जी। 
केजरीवाल जी अपने खुद के  प्रचार के लिए दिल्ली सरकार के बजट मे 526 करोड़ रुपयों का प्रावधान रखा है, जो पिछली सरकारों से 2000 प्रतिशत से भी ज्यादा है। आपने चुनाव के पहले ऐसा तो नहीं कहा था केजरीवाल जी। 
केजरीवाल जी ने तमाम ठेके अपने चहेते ठेकेदारों एवं अपने रिशतेदारों मे बांटने शुरू कर दिये और इन ठेकों के देने के बदले मे अच्छी ख़ासी सुविधा शुल्क भी वसूली जा रही है। आपने चुनावों मे इन चीजों का विरोध कर के ही तो वोट मांगे थे केजरीवाल जी। फिर किस हिसाब से आपने देश को नया विकल्प देने की बात कही थी। 
केजरीवाल जी ने अपनी पुरानी मित्र एवं पार्टी के हरियाणा नेता नवीन जयहिंद की पत्नी को महिला आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर के रही सही कसर भी पूरी कर दी। भाई भतीजावाद से इतर एक नया विकल्प देने का वादा करके आप भी तो वही करने लगे जिसका आरोप आप दूसरी पार्टियों पर लगाते रहे हैं।  
इस तरह के जन आंदोलन के गर्भ से निकलने  वाली राजनीतिक पार्टियों का इतिहास देश की जनता को हमेशा से कड़वा अनुभव देने वाला ही रहा है, चाहे वो समाजवादी आंदोलन हो या जनता आंदोलन और आपने इसी बात को अपने आम आदमी पार्टी द्वारा  एक बार फिर साबित कर दिया। अगर इसी स्वराज का सपना आपने दिखाया था , तो मुझे गर्व है की मैंने आपका विरोध किया और आगे भी करता रहूँगा। संक्षेप मे तो बस इतना ही कहना चाहूँगा- 'आप' तो बड़े बेशर्म निकले। 

चित्र - साभार श्री मनोज कुरील

Monday, July 13, 2015

'महान साहित्यकार' चेतन भगत को खुला पत्र

चेतन भगत,
आपका हिन्दी समाचार पत्र मे लिखा लेख सोशल मीडिया मे भक्तों की प्रजाति पढ़ा। ज्यादा ऊल जलूल बातों मे जाने से बेहतर होगा की सीधे आपके लिखे लेख के मुख्य बिन्दुओं के बारे मे ही आपसे बात करूँ। आपने भक्तों की तथाकथित प्रजाति का गहन विश्लेषण करने के पश्चात एक भक्त की 4 प्रमुख विशेषताओं के ईद गिर्द अपना लेख लिखा है। आपके अनुसार एक भक्त की 4 विशेषताए परिलक्षित होती हैं और जो की निमन्वत हैं:-
1- सारे भक्त पुरुष हैं,
2-उनके संवाद का कौशल अग्रेज़ी मे कमजोर है
3-भक्तों को महिलाओं से बात करने का सलीका नहीं है और वो यौन स्तर पर कुंठित हैं 
4-भक्तों को हिंदी बोलने और हिन्दू होने की कुंठा है।

आपकी पहली बात की सारे भक्त पुरुष हैं , किसी हद तक मानने योग्य है। आप जैसे व्यक्ति, जिसकी हरकतें हमने हाल फिलहाल मे प्रसारित हो रहे एक रिऐलिटि शो मे देखी है, का पुरुषो के प्रति ऐसी कुंठा रखना स्वाभाविक ही है। अगर आप के आंतरिक संरचना के कारण बाहर परिलक्षित हो रहे गुणों मे पुरुषो वाली हरकते कम हैं तो इसमें आपके जीन संरचना का दोष है न की बाकी पुरुषों का जिनकी जीन संरचना वैज्ञानिक रूप से ठीक है।

आपने भक्तों का विश्लेषण करते हुये आगे लिखा है की उनका संवाद का कौशल विशेषकर अग्रेज़ी मे कमजोर है। आपकी ये बात भी सत्य हो सकती है और क्यूंकी हमारी मातृभाषा हिन्दी है और अँग्रेजी हमारे लिए एक विदेशी भाषा है और रहेगी। वैसे मैंने आपकी कूछ एक किताबें भी पढ़ी है और विदेशी साहित्यकारों द्वारा अँग्रेजी मे लिखी किताबें भी पढ़ी है।विदेशी साहित्यकारों से आपकी किताबों का तुलना करने पर आपकी किताबें औसत से भी निम्न दर्जे के प्रतीत होती हैं। अतः आपका अँग्रेजी का संवाद कौशल भी एक सामान्य भारतीय की तरह औसत कोटी का ही है। और तो और आपकी तो हिन्दी भी औसत दर्जे से नीचे की है। आपको अपनी दोनों भाषाओं मे सुधार की आवश्यकता है।

आपके अनुसार एक भक्त की तीसरी विशेषता है की वो यौन स्तर पर कुंठित हैं और उन्हे महिलाओं से बात करने के सलीका नहीं है। रही बात महिलाओं से बात करने के सलीका तो वो मैंने आपके और ट्विंकल खन्ना के बीच हुये ट्विटर के वार्तालाप से आपके सलीका का अध्ययन कर लिया है। इसलिए इस विषय पर कम से कम आप तो ज्ञान ना दें। ऐसा अक्सर होता है की व्यक्ति आवेश मे कभी कभार कुछ ऐसा लिख जाता है जो उसे नहीं लिखना चाहिए और जब आपके जैसा 'जैंट्लमैन' (भद्रपुरुष) इस आवेश मे बह गया तो हो सकता है ट्विटर पर मौजूद सामान्य भक्त भी कभी कभी आवेश मे ऐसा कुछ लिख जाते होंगे जो सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य ना हों।लेकिन ऐसे उदाहरण नग्न के बराबर ही हैं आप उसे एक सामान्य बात नहीं कह सकते।
और यौन स्तर पर कुंठा वाली बात कम से कम आप तो न हीं कहे, आपके ज़्यादातर किताबों के चरित्र स्वयं मे यौन कुंठित नज़र आते हैं और जैसा की सभी जानते हैं एक लेखक की रचना मे उस लेखक का सामान्य  व्यवहार अवश्य ही परिलक्षित होता है तो इस हिसाब से आपका अधिकतम जीवन भी यौन कुंठा मे ही बीता हुआ मालूम पड़ता है।

विश्लेषण की अंतिम पड़ाव मे आपके अनुसार भक्तों को हिन्दी बोलने और हिदु होने की कुंठा होती है। महानुभाव जी आपके अंदर ये भावना होगी किन्तु मुझमे या किसी और भक्त के अंदर कम से कम इस बात को लेकर कुंठा होने की बात आप जैसा बेवकूफ और त्वरित प्रसिद्धि की आस रखने वाला कोई लेखक ही लिख सकता है। मेरे ख्याल से आपको विश्लेषण के विज्ञान की तनिक और जानकारी लेने की आवश्यकता है। 4-5 औसत स्तर की किताबें लिख देने से और कुछ एक रिऐलिटि शो मे जज बन जाने से शायद आप स्वयं को सोशल मीडिया का जज समझने लगे हैं तो आपको आत्म विश्लेषण की आवश्यकता ज्यादा है। योगा करें, इससे शायद आपको मन और शरीर के बीच समंजस्य स्थापित करने मे थोड़ी सफलता अवश्य मिलेगी।


एक स्वाभिमानी भक्त