Friday, December 7, 2012

देश के सभी मर्जो की एक ही दवा है - खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

आज कल पुरे देश में एक ही बात की चर्चा चल रही है , खुदरा बाज़ार में प्रत्यक्ष  विदेशी निवेश या सीधे शब्दों में कहे तो FDI की। सरकार और इसके कुछ साथी पार्टियाँ इसके पक्ष में तो बाकि विपक्ष इसके इरोध में बाते कर रहे हैं। लेकिन सरकार ने भी ये ठान लिया है की देश में खुदरा बाज़ार में FDI ला कर ही मानेंगे। सरकार के एक मंत्री साहब ने तो ये भी कह दिया की भले हमे अपना सर कटाना पड़ जाये लेकिन हम देश का खुदरा बाज़ार विदेशी कंपनियों के लिए खोल कर ही रहेंगे। अब इनका सर है हम क्या बोल सकते हैं , जहाँ मन जाये और कटा के आ जाएँ लेकिन कम से कम देश के गरीबों का ख्याल तो कर लें। सरकार और उसके मंत्री FDI के पक्ष में जो दलीले देते हैं उसे सुन कर तो यही लगता है की सिर्फ ये एक FDI  अगर लागु कर दिया जाये तो ये देश के सारे कष्ट हर लेगा। एक मंत्रीगण को सुना तो कहते हैं की FDI आ गयी तो देश के किसानों को उनके उत्पाद का सही दाम मिलेगा , एक कहते हैं की देश में FDI आ जाने से सप्लाई चेन  की समस्या का समाधान हो जायेगा , एक कहते हैं की कोल्ड स्टोरेज की समस्या का समाधान हो जायेगा , एक नए नवेले सांसद साहब ने तो हद्द ही कर दी ये कह कर की FDI आ गयी तो देश का किसान भी इम्पोर्टेड गाड़ियों में घुमा करेगा। लगता है ये साहब ने अपने पिताजी , जो की काफी जाने माने राजनीतिक हैं , के गलत तरीको से कमाए गए पैसों पे आधी से ज्यादा ज़िन्दगी विदेशों में ही गुजारी है और वहां के रहन सहन से इतना ज्यादा प्रभावित हैं की उन्होंने कभी देश की गाँवों की तरफ रूख करना ज़रूरी ही नहीं समझा। जिस किसान को सुबह का खाना खाने के बाद ये पता नहीं होता की वो शाम का 2 रोटी खा पायेगा की नहीं उसकी गरीबी का मज़ाक ये ऐसे उड़ा रहे हैं। जो किसान अपने खेतों की जुताई करने के लिए अभी भी 2 जोड़ी बैलों के ऊपर ही निर्भर हैं उसे ये इम्पोर्टेड गाड़ियों का ख्वाब दिखा रहे हैं।
सरकार का कहना है की देश में किसान को उसके उत्पाद का केवल 16 % भाव ही मिल पाता है और शेष बिचौलियों के पास चला जाता है और अगर FDI आ गयी तो किसानों को उनके हक का पूरा पैसा मिलेगा। लगता है सरकार के पढ़े लिखे मंत्री जो विदेशों की यात्राए करने में तो बड़े ही आगे रहते हैं , लेकिन वहाँ जाकर अपने 5 सितारा होटल से बाहर निकल के वहां के किसानो का हाल पूछने की कोशिश नही करते। अमेरिका में भी किसान इन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के जाल में फसे हुए और उन्हें भी अपने उत्पाद का बहुत अच्छा मोल नहीं मिल पाता। वहां के किसान एक तरीके से इन कंपनियों के बंधुआ मजदूर ही बने हुए हैं और खेती उनके इशारो पर ही कर पाते हैं। वो ही उत्पाद उगा पाते हैं जिनको उगाने का आदेश वो कंपनिया देती हैं।और अगर किसानो द्वारा उगाई गए उत्पाद उनके मापदंडो के अनुरूप नहीं हैं तो पूरा का पूरा खेती ये कंपनिया लेने से इंकार कर देती हैं। और फिर वो उस उत्पाद को कही और बेच भी नहीं सकते , इस तरह से पूरी की पूरी खेती और उस पर किया गया खर्चा बर्बाद।
और अगर सरकार के नुमाईंदे इस बात से वाकिफ हैं की किसान को यहाँ उसके उत्पाद का सही मोल नहीं मिल पता तो आज़ादी के पिछले 65 सालों में इन्होने किया क्या किसानो के लिए? क्यों नहीं इन्होने ऐसी साफ़ सुथरी सरकारी प्रणाली बनाई की किसान आराम से अपने उत्पाद आ कर बेच सके और उसे अपने उत्पाद का सही मोल मिल सके। तो इसका जवाब भी सुनिए सरकार चाहती है की सारा काम स्वयं से ही हो जाये और ये बस घोटाले पर घोटाले कर के देश के गरीबो का खून चूसते रहे। अगर 65 सालो में ,जिसमे से ज्यादातर समय तक देश पर कांग्रेस का शाषण था, देश के किसानो , यहाँ के बेरोजगारों और गरीबों का उद्धार सरकारे नहीं कर पायी तो FDI  ले कर आने वाली इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पास कौन सा अल्लाद्दीन का चिराग है की बस उसे घुमाते भर से ही देश की सारी समस्याओ का समाधान हो जायेगा। ये सिर्फ देश और देशवासियों को गुमराह करने की बात है जिसमे शायद देश की गरीब जनता गुमराह हो भी जाये , परन्तु इसके दुष्परिणाम जल्दी ही देशवासियों को समझ में आने लगेंगे। ये बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ कोई चैरिटी करने तो इस देश में आ नहीं रही हैं , वो यहाँ से पैसा कमाने आ रही हैं और कमा के वापस ले जाने ही आ रही हैं।
सबसे मज़े की बात तो ये है की देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश की नुमाईंदगी करने वाली दो सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टियाँ जो वैसे तो FDI  की मुकल्फत करते हैं परन्तु जब देश की संसद के भीतर इतने गंभीर प्रश्न पर वोटिंग का मौका आता है तो वो संसद से बहिर्गमन का रास्ता अख्तियार करते हैं। मेरा सवाल हैं उन पार्टियों से की अरे वापस जाकर क्या बताओगे अपने प्रदेश के गरीब किसानो को की यु तो हमे पता है की इससे तुम्हारा भला नहीं होने वाला लेकिन इससे पहले  की हमारे धोती खुले हमने तुम्हारी लंगोटी तक बेच दी। ये वो ही पार्टियाँ हैं जो समाजवाद , दलितों और पिछड़े वर्गों के लोगो की बाते कर कर के संसद तक तो पहुच जाते हैं लेकिन यही आ कर उन्हें ही बेच देते हैं। खैर अब तो सरकार ने FDI को इजाज़त दे ही दी हैं जल्दी ही विदेशी कंपनियों के स्टोर्स खुलेंगे , देखता हूँ कब तक देश की समस्या का समाधान हो जाता है।




3 comments:

  1. Nice One Dear....Lagta hai aab toh saara India China market me convert ho jayegaa.....FDI la ke yeh log aapne aap ko gaali de rhe ho aur kuch nhi......Bechare log...:(

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  2. hmmm i just read somewhere that some people also oppose the use of computer saying that this will take away crores of the jobs of people who works by hand as it is much efficient then people and one computer can do work of many people....but if those opposing people get success then now today unforunately u arenot writing this blog here...haan chitthi jarur likh sakte the....

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  3. sale sab chor hai apna apna fayada dekh rahe hai....
    is se accha to angrejo ka saasan tha ..yeh sale log to garibo ki jaan le kar hi maanege..waise hi apne desh me kisano ki haalat acchi nahi hai ...

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