Sunday, February 16, 2014

एएपी और केजरीवाल की असफल सत्ता का अंत

अंततः दिल्ली के सियासी माहौल मे चल रहा केजरीवाल का ड्रामा उनके इस्तीफे के साथ समाप्त हो ही गया। उन्होने इस्तीफा देने के साथ भाजपा और कांग्रेस पर मुकेश अंबानी के इशारे पर उनकी सरकार को गिराने का षड्यंत्र करने का इल्जाम भी लगा दिया। वैसे जहा तक ज्ञात है कांग्रेस ने तो श्री केजरीवाल जी सेसमर्थन वापस लिया नहीं था, उन्होने खुद से ही अपनी किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए और अपने मुख्यमंत्रित्व काल के असफलताओ को छिपाने के लिए इस्तीफा दिया है। वैसे यहा पर ये जान लेना आवश्यक है की दिल्ली अन्य राज्यों की तरह एक पूर्ण राज्य नहीं है और यहा पर कई विधेयकों को विधानसभा मे प्रस्तुत करने से पूर्व उपराज्यपाल से अनुमति लेना आवश्यक है, और केजरीवाल सरकार का जन लोकपाल विधेयक उनही मे से एक है। उपराज्यपाल ने विधानसभा के स्पीकर को चिट्ठी लिख कर इस विधेयक को पेश न करने की सलाह दी थी और जिन्हे विधायी कार्यप्रणाली की जानकारी होगी वो ये जानते हैं की उपराज्यपाल की चिट्ठी एक आदेश की तरह होती है। श्री केजरीवाल जी सदन मे संविधान की प्रति दिखा कर ये दावा कर रहे थे कि संविधान मे ऐसा कही नहीं लिखा है, तो मैं ये कहना चाहूँगा कि सिर्फ आप ही संविधान के एकलौते समझदार नहीं हैं। संविधान ने अपनी व्याख्या का अधिकार उच्चतम न्यायालय को दे रखा है और उच्चतम न्यायालय का फैसला अंतिम और बाध्य होता है। सिर्फ संविधान के अनुच्छेद पढ़ लेने मात्र से आप उसके जानकार नहीं बन जाते वरन आपको उसके साथ विभिन्न न्यायिक फैसलों को भी पढना होगा, तब जाके आप उन अनुच्छेद के प्रावधानों को समझ पाएंगे। विधानसभाओ और संसद मे कार्य करने की एक प्रणाली और व्यवस्था बनी हुई है, कोई भी उन प्रावधानों से ऊपर जाकर अपनी मंकर्जी से काम नहीं कर सकता। लेकिन केजरीवाल और उनके अंध भक्तो ने उनको संविधान के एकलौते जानकार की उपाधि देने मे तनिक देर नहीं लगाई ठीक वैसे ही जैसे उन्हे देश का इकलौता ईमानदार घोषित कर रखा है।
श्री केजरीवाल ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और इस क्षेत्र मे कुछ करने से पूर्व राजस्व सेवा की ओर भागे, वहाँ पर भी योगदान नगण्य रहा और कुछ ही दिनो मे अपना एनजीओ खोल कर उसके कार्य मे भाग गए, कुछ दिनो बाद वहाँ से भी भागे और अन्ना के साथ आंदोलन करने लगे, आंदोलन पूरा भी नहीं हुआ था कि अन्ना का साथ छोड़ कर भागे और राजनीति मे आ गए।सफलता भी मिली और दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए लेकिन 49 दिनो मे ही ये छोड़ कर भी भाग गए। पूरे जीवनकाल को देखा जाए तो केजरीवाल जी पहले दर्जे के भगोड़े हैं। तथ्यों से बात साफ प्रतीत होती है। अगर आप इनके अंधभक्तों से बात करेंगे तो वो ऐसे बात करेंगे जैसे इनहोने दिल्ली मे पता नहीं कितना काम कर दिया है, परंतु सच्चाई ये है कि अपने पूरे मुख्यमंत्रित्व काल मे इनहोने और इनकी मंत्रिमंडल ने झूठी दिलसाओ के अलावा कुछ नहीं किया। जो इनके अधिकार क्षेत्र के मुद्दे  थी उन पर काम करने के बजाए संघीय क्षेत्रो के मुद्दों पर बहसबाजी कर के इनहोने सिर्फ समय बिताया। 49 दिनो मे काम करने के लिए एक रोडमैप तक नहीं बना पाये। लेकिन एक काम है जिसमे श्री केजरीवाल अव्वल हैं,और वो है झूठ बोलना और गाल बजाना। भाजपा नेता हर्षवर्धन जी ने बिलकुल सही कहा कि केजरीवाल जी जब तक दिन मे 4 झूठ नहीं बोलते और 10 लोगों पर भ्रष्टाचार का निराधार आरोप न लगा दे तब तक इनका खाना नहीं पचता।
केजरीवाल जी अगर चाहते तो उपराज्यपाल और केंद्र से बात कर के लोकपाल विधेयक को पास कराने मे आ रही कानूनी अडचनों को दूर कर के इसे विधानसभा मे पेश कर सकते थे लेकिन इनकी जल्दी देख कर लगता है की ये लोकपाल से ज्यादा लोकसभा के प्रति वफादार हैं। इन्हे दिल्ली के लोगो की समस्याओं को हल करने  से ज्यादा लोकसभा मे पहुचने की जल्दी है।लेकिन इतिहास गवाह है की अति महत्वाकांक्षा किसी भी देश और उसकी जनता के लिए कभी लाभदायक नहीं रही है, चाहे वो मत्वाकांक्षा हिटलर की हो, या गद्दाफ़ी की। देश की जनता के सामने इनका पोल खुल चुका है और आने वाले लोकसभा चुनाव मे जनता इनके ढोंग का उत्तर ज़रूर देगी।


Saturday, February 8, 2014

भ्रष्टाचार और अरविंद केजरीवाल

पिछले कुछ सालों से भारतवर्ष मे स्वयं स्थापित एकलौते सच्चे व्यक्ति श्री अरविंद केजरीवाल ने स्वयं और अपनी आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओ के अलावा अन्य सभी लोगो को झूठा , भ्रष्टाचारी और बेईमान घोषित कर रखा है। जो भी व्यक्ति इनके बातों से सहमत वो ईमानदार अन्यथा उसे बेईमान घोषित कर दिया जाता है। भ्रष्टाचार की परिभाषा इनके स्वयं के द्वारा स्थापित की गई है और समय समय पर अपनी ज़रूरत के हिसाब से उसमे आवश्यक परिवर्तन के द्वारा भ्रष्टाचार की परिभाषा बदल दी जाती है। फलसफा ये कि ईमानदारी का प्रमाणपत्र देने की संस्था स्वयंभू ईमानदार श्री अरविंद केजरीवाल ही हैं। जो इनसे तकल्लुफ रखे उसे ही ये ईमानदार घोषित करते हैं अन्यथा झूठा और बेईमान घोषित करने मे ज्यादा समय नहीं लगाते।
लेकिन मेरा मानना है की भ्रष्टाचार का मतलब सिर्फ रुपये पैसे का भ्रष्टाचार ही नहीं , वरन चरित्र का, जिम्मेदारियों का और व्यवहार का गलत आचरण भी भ्रष्टाचार की परिधि मे आता है। श्री केजरीवाल ने खुद को और अपनी पार्टी नेताओ को तथा इनसे जुड़े लोगो को ईमानदार किन तथ्यों के आधार पर घोषित कर रखा है ये सिर्फ इन्हे ही पता है। श्री केजरीवाल वो पारस पत्थर हैं जिनके संसर्ग मे आते ही भ्रस्टाचार रूपी कोयला भी ईमानदारी रूपी सोना मे बदल जाता है।
कुछ आवश्यक बाते हैं जिनकी तरफ मैं ध्यान आकर्षित करना चाहता हु। श्री केजरीवाल और इनकी पत्नी अपने राजस्व सेवा के कार्यकाल मे शायद ही कभी दिल्ली के कार्य क्षेत्र से बाहर रहे हैं। क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है? श्री केजरीवाल के समर्थक कहते हैं इन्होने राजस्व सेवा मे रहते हुये कभी काला धन नहीं कमाया, अगर चाहते तो करोड़ो कमा लेते। चलो मान लेते हैं , परंतु इनहोने कितने नेताओ और व्यापारियों के काले धन को जब्त किया? अगर कुछ कमाया नहीं तो देश के राजस्व मे कुछ योगदान भी नहीं दिया। क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है? अपने सरकार के विधि मंत्री के कुकृत्य का इनहोने जम कर बचाव किया और उनके कृत्यों को सही भी ठहराते रहे। क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है? श्री केजरीवाल की पत्नी सरकारी सेवा मे रहते हुये केजरीवाल जी की धरणा प्रदर्शन मे हिस्सा लेती हैं।एक सरकारी अफसर का नौकरी मे रहते हुये किसी राजनीतिक मंच को साझा करना, क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है? श्री केजरीवाल की किताब स्वराज के ऊपर अजयपाल नागर नाम के शिक्षक ने किताब का संदर्भ चुराने का इल्जाम लगाया है। क्या ये भ्रष्टाचार नहीं है? परंतु श्री केजरीवाल तो स्वघोषित ईमानदार हैं, ईमानदारी की स्वघोषित परिभाषा मे ये फिट बैठते हैं। इसलिए ये जो कहे वो ही सच और बाकी सब झूठ। लेकिन ये सोचने का विषय है। अंध भक्ति मे इंसान सोचने समझने की क्षमता खो बैठता है और ये ही केजरीवाल जी के अंध भक्तों का हाल है।लेकिन उम्मीद करता हु कि आँख के ऊपर कि पट्टी हटेगी और सच्चाई देख और समझ पाएंगे केजरिभक्त।