
श्री केजरीवाल ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और इस क्षेत्र मे कुछ करने से पूर्व राजस्व सेवा की ओर भागे, वहाँ पर भी योगदान नगण्य रहा और कुछ ही दिनो मे अपना एनजीओ खोल कर उसके कार्य मे भाग गए, कुछ दिनो बाद वहाँ से भी भागे और अन्ना के साथ आंदोलन करने लगे, आंदोलन पूरा भी नहीं हुआ था कि अन्ना का साथ छोड़ कर भागे और राजनीति मे आ गए।सफलता भी मिली और दिल्ली के मुख्यमंत्री बन गए लेकिन 49 दिनो मे ही ये छोड़ कर भी भाग गए। पूरे जीवनकाल को देखा जाए तो केजरीवाल जी पहले दर्जे के भगोड़े हैं। तथ्यों से बात साफ प्रतीत होती है। अगर आप इनके अंधभक्तों से बात करेंगे तो वो ऐसे बात करेंगे जैसे इनहोने दिल्ली मे पता नहीं कितना काम कर दिया है, परंतु सच्चाई ये है कि अपने पूरे मुख्यमंत्रित्व काल मे इनहोने और इनकी मंत्रिमंडल ने झूठी दिलसाओ के अलावा कुछ नहीं किया। जो इनके अधिकार क्षेत्र के मुद्दे थी उन पर काम करने के बजाए संघीय क्षेत्रो के मुद्दों पर बहसबाजी कर के इनहोने सिर्फ समय बिताया। 49 दिनो मे काम करने के लिए एक रोडमैप तक नहीं बना पाये। लेकिन एक काम है जिसमे श्री केजरीवाल अव्वल हैं,और वो है झूठ बोलना और गाल बजाना। भाजपा नेता हर्षवर्धन जी ने बिलकुल सही कहा कि केजरीवाल जी जब तक दिन मे 4 झूठ नहीं बोलते और 10 लोगों पर भ्रष्टाचार का निराधार आरोप न लगा दे तब तक इनका खाना नहीं पचता।
केजरीवाल जी अगर चाहते तो उपराज्यपाल और केंद्र से बात कर के लोकपाल विधेयक को पास कराने मे आ रही कानूनी अडचनों को दूर कर के इसे विधानसभा मे पेश कर सकते थे लेकिन इनकी जल्दी देख कर लगता है की ये लोकपाल से ज्यादा लोकसभा के प्रति वफादार हैं। इन्हे दिल्ली के लोगो की समस्याओं को हल करने से ज्यादा लोकसभा मे पहुचने की जल्दी है।लेकिन इतिहास गवाह है की अति महत्वाकांक्षा किसी भी देश और उसकी जनता के लिए कभी लाभदायक नहीं रही है, चाहे वो मत्वाकांक्षा हिटलर की हो, या गद्दाफ़ी की। देश की जनता के सामने इनका पोल खुल चुका है और आने वाले लोकसभा चुनाव मे जनता इनके ढोंग का उत्तर ज़रूर देगी।