Monday, November 16, 2015

सहिष्णु या असहिष्णु : बनारसी परिपेक्ष्य मे

सरजू काका हमेशा की तरह शाम के अपने तय रूटीन के हिसाब से केशव की दुकान पर पान खाने पहुंचे ही थे की देखा वहां तो बड़ी भाषणबाजी चल रही थी। सोचे की तनिक दूर से ही समझा जाए की कौने बात पर झाम फंस गया आज, कुछ देर तक सबकी सुनी तो समझ आया की आखिर मजरा क्या है। खैर जब सबकी दुकान केशव के दुकान से उठ गई तो आ धमके सरजू काका केशव के हाथों का बना कत्था, किमाम , गुलकंद, सुपारी मिश्रित पान दबाने।
केशव ने देखते ही अभिवादन किया और कहा "गुरु , तनिक दुई मिनट पहिले आते तो मज़ा आता।"
सरजू काका ने कहा "पहिले पान तो खिलाओ केशव फिर मज़ा दिलाते हैं, सूखे सूखे मजा कहाँ आई ई मौसम मे।"
खैर केशव ने हमेशा की तरह बड़े ही प्यार से सरजू काका के फोर्मूले का पान लगाया और बढ़ा दिया उनकी ओर , काका ने भी पान लिया और रख दिया अपने जीभ पर और मुह बंद कर के लगे पान का लुत्फ उठाने। फिर तनिक चुना और दुई सुपारी लेते हुये बोले , "हाँ भैया केशव कहो का मज़ा की बात कर रहे थे?"
केशव कहिन "गुरु मज़ा की बेमज़ा ऊ त तुहे बुझा, हमके बस इतना बता द की आज कल ई जऊन 'सहिस्डु' और 'असहिस्डु' के बवाल मचल बा बजारे मे , ओकर का मतलब ब। अबहीन दू मिनट पहिले पूरा बाज़ार गरम करे रहलन भैया लोग।"
सरजू काका अपने पान की पीक से काशी स्वच्छ करते हुये बोले , "देखो गुरु ई जो तुम पान लगावत हो , सबे जनी खूब मज़ा ले के खावत है , और खावे के बाद जऊन पीक है ओसे काशी के स्वच्छ भी करत है।"
केशव कहे , "हाँ गुरु, सही बात है।"
तब सरजू काका कहेन  "त फिर ई जो पान खा के पीक मारे और ऊ पीक जऊन है अगर कौनों राह चलत आदमी पर पड़ जाए और ऊ आदमी कुछ न कहे , चुप चाप चल जाए त ऊ भयल 'सहिस्डु' और अगर बदले मे तोहके दू-चार गो निमनका बनारसी गाली मे से सुना दे, त ऊ भयल 'असहिस्डु'। समझ गयीले न , बस सब पान के पीक के फेरा बाटे। तू ज्यादा टेंशन मत ले।" कहते हुये सरजू काका केशव की दुकान से जाने लगे।
जाते हुये सरजू काका को पीछे से आवाज़ देते हुये केशव ने कहा "और गुरु अगर सामने वाला पान के पीक पड़े के बाद तोहके भी अपन पीक से लाल कर दे तब"
"तब  ऊ भयल 'पक्का बनारसी' ", कह कर मुस्कराते हुये सरजू काका आगे बढ़ चले।





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