
जब बिहार से चुने गए बड़े अध्यक्ष जी की नज़र प्रयागराज के परीक्षा केन्द्रों से सफलता के प्रतिशत पर पड़ी तो बड़े अध्यक्ष जी को इसमें असीमित कमाई की सम्भावना दिखी I फिर क्या था साल में 2 बार होने वाले इस एग्जाम का केंद्र बनाने के लिए मुंहमांगी कीमत परीक्षा केन्द्रों द्वारा दी जाने लगी I एक सूत्र तो यहाँ तक बताते हैं कि बड़े अध्यक्ष जी के आशीर्वाद प्राप्त सदस्यों ने तो केंद्र निर्धारण के लिए खुली बोली की प्रक्रिया भी शरू कर दी थी I और बड़े अध्यक्ष जी तो स्वयं परीक्षा के दिन प्रयागराज के परीक्षा केन्द्रों पर घूमते हुए उगाही करते नज़र आने लगे I एक बार नहीं वरण बार बार बड़े अध्यक्ष जी परीक्षा के दिन प्रयागराज में ही मिलते थे I बड़े अध्यक्ष जी ने देश के बाकि ३२ परीक्षा केन्द्रों पर कभी जाना उचित नहीं समझा , क्योंकि शायद देश के बाकि उन परीक्षा केन्द्रों पर परीक्षा पास करवाने का ठेका लेने का वो खेल नहीं हो रहा था जो प्रयागराज के परीक्षा केन्द्रों पर हो रहा था I
इसी बीच उत्तर प्रदेश की संस्था के लिए चुनाव हुए और प्रदेश के अध्यक्ष पद की कुर्सी बड़े अध्यक्ष जी के आशीर्वाद प्राप्त सदस्यों के हाथ से फिसल गयी I खैर आशीर्वाद प्राप्त सदस्य को बड़े अध्यक्ष ने बड़ी संस्था में सेट कर लिया ताकि खेल बदस्तूर ज़ारी रहेI लेकिन छोटे अध्यक्ष भी छोटे खिलाडी नहीं थे ,पूर्व के कार्यकाल में बतौर सदस्य उन्होंने भी सारा खेल समझ लिया था और बड़े अध्यक्ष और उनके आशीर्वाद प्राप्त सदस्य की दाल छोटे अध्यक्ष जी के सामने नहीं गल रही थी I इसी बीच फिर से परीक्षा हुए और प्रयागराज के केन्द्रों पर बड़े अध्यक्ष और छोटे अध्यक्ष की खींचातानी की वजह से प्रयागराज केंद्र का परीक्षा परिणाम मोनिटरिंग कमिटी ने रोक दिया I ऐसा इसलिए किया गया ताकि छोटे अध्यक्ष जी की पकड़ युवा अधिवक्ताओं में ढीली पड़े और बड़े अध्यक्ष जी के आशीर्वाद प्राप्त सदस्य को इसका फायदा मिल सके I खैर आपसी खीचतान की नौबत इस साल यहाँ तक आ गयी की बड़े अध्यक्ष जी ने छोटे अध्यक्ष जी को पदच्युत कर अपने खेमे के सदस्य को अध्यक्ष नामित कर दिया गया I ऐसा करने का अधिकार बड़े अध्यक्ष जी को है या नहीं ये तो समय बता ही देगा लेकिन बड़े अध्यक्ष जी के आशीर्वाद प्राप्त सदस्य तो इस पुरे प्रकरण के बाद से जीत का सेहरा बांधे घूम रहे हैं I
जितना राजनीतिक दांव पेंच इस पुरे प्रकरण में बड़े अध्यक्ष जी और उनके आशीर्वाद प्राप्त सदस्य महोदय ने लगाया है अगर उसका एक चौथाई भी कोरोना के संकट के इस दौर में आर्थिक परेशानी से जूझ रहे युवा अधिवक्ताओं के हित में किया गया होता तो अधिवक्ता वर्ग को इसका फायदा मिला होता I लेकिन यहाँ तो ये साबित हो रहा है की इन संस्थाओं के हुक्मरानों ने संस्थाओं को अधिवक्ता हित के बजाय स्वयं के हित का जरिया बना रखा है I युवा अधिवक्ता भी ये सोचें कि इन मठाधीशों की बंधुआ मजदूरी करनी है या स्वयं के लिए ऐसा नेतृत्व तलाशना है जो सर्व अधिवक्ता समाज के हित में कार्य करे न कि सिर्फ अपने और अपने आने वाली पीढ़ियों के हित में I
After a Long time , I read such a good Hindi , I liked the Last paragraph a lot
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