
हद तो तब हो गई जब किसी विद्यालय में एक शिक्षक ने एक बालक से पूछा की कुछ जानवरों के नाम बताओ। बालक बोलने लग गया शेर, चीता, हाथी और शांत हो गया। शिक्षक ने बोला "और बता" , इससे उसका तात्पर्य था की बालक और कुछ जानवरों के नाम बताये। लेकिन बालक का जवाब था "सब बढ़िया सर ,आप बताओ। "
दिन भर की आपाधापी में ये "और बता सिंड्रोम" हमारे ऊपर काफी ज्यादा हावी हो चुका है। मैं खुद इस बीमारी से ग्रसित भी हूँ और भुक्तभोगी भी। अक्सर मित्रों से बात करते हुए अनायास ही मैं भी अक्सर ही बोल जाता हु की भाई और बता और अक्सर सामने बैठे मेरे मित्र मुझसे बोल जाते हैं और बता भाई। अब मेरे समझ नहीं आता की मैं बताऊ तो क्या बताऊ क्यूंकि अगर हिम्मत कर के मैंने एक बार और कुछ बता दिया तो हो सकता है ये और बता वाला हथियार अगले कुछ क्षणों में दुबारा से ही मेरे तरफ दाग दिया जायेगा। मैंने बड़ा गौर किया तो ये समझ में आया की हम सब आपस में एस.एम.एस.,चैट इत्यादि द्वारा सारी बात कर लेते हैं और जब प्रत्यक्ष या फ़ोन के द्वारा बात कर रहे होते हैं तो हमारे पास बात करने के लिए ज्यादा कन्टेन्ट बचता ही नहीं है।
मैं तो स्वयं इस बीमारी से काफी ज्यादा परेशान हो गया हूँ और अब मुझे इस बीमारी से चिढ सी होने लगी है इसलिए मैंने तो "और बता सिंड्रोम" से निजात पाने की ठान ली है। लेकिन ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा की मुझे इसमें सफलता कितनी मिलती है।अगर हो सके तो आप लोग भी कोशिश कर के देखे, शायद आप भी इस बीमारी से ग्रसित होंगे और अगर नहीं हैं तो इसके भुक्तभोगी तो अवश्य ही होंगे।
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