Monday, November 16, 2015

सहिष्णु या असहिष्णु : बनारसी परिपेक्ष्य मे

सरजू काका हमेशा की तरह शाम के अपने तय रूटीन के हिसाब से केशव की दुकान पर पान खाने पहुंचे ही थे की देखा वहां तो बड़ी भाषणबाजी चल रही थी। सोचे की तनिक दूर से ही समझा जाए की कौने बात पर झाम फंस गया आज, कुछ देर तक सबकी सुनी तो समझ आया की आखिर मजरा क्या है। खैर जब सबकी दुकान केशव के दुकान से उठ गई तो आ धमके सरजू काका केशव के हाथों का बना कत्था, किमाम , गुलकंद, सुपारी मिश्रित पान दबाने।
केशव ने देखते ही अभिवादन किया और कहा "गुरु , तनिक दुई मिनट पहिले आते तो मज़ा आता।"
सरजू काका ने कहा "पहिले पान तो खिलाओ केशव फिर मज़ा दिलाते हैं, सूखे सूखे मजा कहाँ आई ई मौसम मे।"
खैर केशव ने हमेशा की तरह बड़े ही प्यार से सरजू काका के फोर्मूले का पान लगाया और बढ़ा दिया उनकी ओर , काका ने भी पान लिया और रख दिया अपने जीभ पर और मुह बंद कर के लगे पान का लुत्फ उठाने। फिर तनिक चुना और दुई सुपारी लेते हुये बोले , "हाँ भैया केशव कहो का मज़ा की बात कर रहे थे?"
केशव कहिन "गुरु मज़ा की बेमज़ा ऊ त तुहे बुझा, हमके बस इतना बता द की आज कल ई जऊन 'सहिस्डु' और 'असहिस्डु' के बवाल मचल बा बजारे मे , ओकर का मतलब ब। अबहीन दू मिनट पहिले पूरा बाज़ार गरम करे रहलन भैया लोग।"
सरजू काका अपने पान की पीक से काशी स्वच्छ करते हुये बोले , "देखो गुरु ई जो तुम पान लगावत हो , सबे जनी खूब मज़ा ले के खावत है , और खावे के बाद जऊन पीक है ओसे काशी के स्वच्छ भी करत है।"
केशव कहे , "हाँ गुरु, सही बात है।"
तब सरजू काका कहेन  "त फिर ई जो पान खा के पीक मारे और ऊ पीक जऊन है अगर कौनों राह चलत आदमी पर पड़ जाए और ऊ आदमी कुछ न कहे , चुप चाप चल जाए त ऊ भयल 'सहिस्डु' और अगर बदले मे तोहके दू-चार गो निमनका बनारसी गाली मे से सुना दे, त ऊ भयल 'असहिस्डु'। समझ गयीले न , बस सब पान के पीक के फेरा बाटे। तू ज्यादा टेंशन मत ले।" कहते हुये सरजू काका केशव की दुकान से जाने लगे।
जाते हुये सरजू काका को पीछे से आवाज़ देते हुये केशव ने कहा "और गुरु अगर सामने वाला पान के पीक पड़े के बाद तोहके भी अपन पीक से लाल कर दे तब"
"तब  ऊ भयल 'पक्का बनारसी' ", कह कर मुस्कराते हुये सरजू काका आगे बढ़ चले।





Saturday, August 8, 2015

नितीश कुमार के नाम खुला पत्र

आदरणीय नितीश जी,
आम आदमी पार्टी के समर्थकों द्वारा ट्विटर पर ट्रेंड की गई आपकी प्रधानमंत्री जी के नाम चिट्ठी पढ़ी, आपने आपके DNA पर किए गए टिप्पणी को जिस तरह सम्पूर्ण बिहार के DNA से जोड़ कर ओछी राजनीति करने की कोशिश की है , आपसे वैसी ही राजनीति की उम्मीद थी। परंतु अपने DNA को बिहार के DNA से जोड़ने से पहले तनिक बिहार के स्वर्णिम इतिहास का तो ख्याल करते। किन्तु ऐसा प्रतीत होता है की आज कल आम आदमी पार्टी वालों से राजनीतिक आदान प्रदान कुछ ज्यादा ही होने के कारण आप ने चिट्ठी भी उनके ज्ञान से प्रभावीत हो कर ही लिख दी है।
महाशय जी बिहार की धरती का स्वर्णिम इतिहास आपकी सोच से भी प्राचीन है। बिहार की धरती महाराज जनक की धरती रही है जिनके न्याय और धर्म के ज्ञान का सानी रामायण काल मे भी सर्वव्यापी था।  बिहार की पावन धरती महात्मा बुद्ध की धरती रही है , जिन्होने विश्व शांति और सद्भाव का उत्तम ज्ञान दुनिया को दिया। जैन धर्म की संस्थापना महावीर जैन ने बिहार की इसी पावन धरा से किया। बिहार की ये पवित्र धरती महागुरु चाणक्य की कर्म स्थली रही है , जिनहोने अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र मे अपने उत्कृष्ट ज्ञान से दुनिया भर मे अपना लोहा मनवाया और बिहार के साथ साथ सम्पूर्ण भारतवर्ष  का नाम रोशन किया। बिहार हजारों वर्ष पहले से ही शिक्षा और संस्कृति का केंद्र रहा है और नालंदा का प्राचीन विश्वविद्यालय इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।बिहार की धरती पर महागुरु चाणक्य के सनिध्य मे उपज कर मौर्य वंश ने अपने वीर शाषकों के परक्रम  के बदौलत अपने साम्राज्य की सीमाए सभी दिशाओं मे सुदूर स्थानों तक फैलाई थी और पाटलीपुत्र की धरती से सकुशल इसका संचालन भी किया। बिहार की धरती पर ही विश्व की प्राचीनतम ज्ञात गणतन्त्र की नीव वैशाली गणराज्य मे रखी गई थी और सफलतापूर्वक गणतन्त्र का संचालन जनता के चुने प्रतिनिधियों द्वारा किए जाने के प्रमाण उपलब्ध हैं। आज़ादी की पहली लड़ाई मे सन 1857 मे बिहार की धरती से ही वीर कुँवर सिंह ने विद्रोह का कुशल नेतृत्व किया और अंग्रेज़ी सेनाओं से लोहा लिया था और उनको नाको चने चबवाये थे। और आज़ादी के बाद बिहार की धरती के लाल बाबू राजेंद्र प्रसाद जी स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बन कर बिहार का नाम और रौशन किया।
अतः आपसे विनम्र निवेदन है की ओछी राजनीति से ऊपर उठें और बिहार के अपने 10 वर्षों के शासनकाल मे किए गए विकास को ले कर जनता के बीच जाएँ और इस तरह की ओछी राजनीति से बाज आयें। आपका DNA सम्पूर्ण बिहार का DNA न कभी था और न कभी हो सकता है। बिहार के स्वर्णिम इतिहास के बराबर स्वयं को बनाने का जो आप निरर्थक प्रयास कर रहे हैं उससे आपकी सोच पर हसी भी आ रही है और आपके वैचारिक दिवालियेपन पर रोना भी आ रहा है। असल मे किसी भी व्यक्ति  के वैचारिक ज्ञान का स्तर उसके संगति के ऊपर काफी हद तक निर्भर करता है और आप तो आज कल चारा चोरों से ले कर नृशंश अपराधियों और धूर्त ढ़ोगियों के संगत मे हैं, अतः आपके वैचारिक ज्ञान के इस गिरे हुये स्तर का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
काफी पहले कांग्रेस पार्टी की इन्दिरा गांधी को ये गुमान हो गया था की India is Indira and Indira is India और उनका अंजाम आपको पता ही होगा, जेल तक जाना पड़ा था। और आज कल आपको भी उसी तर्ज पर  ऐसा लग रहा है की Nitish Kumar is Bihar , इसलिए नितीश बाबू, तनिक गुमान कम करिए नहीं तो ये जनता जो है न जब उठा के पटकती है, तो बुझाता नहीं की कहा फेंका गए। आगे से कृपया अपने राजनीति के स्तर को तनिक ऊपर उठाने का प्रयास करें, अन्यथा बिहार की जनता सब समझती है और आपको उठा कर कहा फेकेगी आप इसका अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते।




Friday, July 31, 2015

72 हूरों की ख्वाइश मे वो तो मरने के लिए मर रहा था

वो तो उसके वकील ही उसे फांसी के तख्ते पर लटकने से बचाना चाह रहे थे , उसकी इच्छा तो न जाने कब से थी की वो लटक जाए। पहले तो भारतीय न्याय पद्धति की लेट लतीफी से दिये जाने वाले फैसलों ने उसके चाह पर विराम लगाई और जब फांसी मुकर्रर हुई तब कुछ दानव अधिकार के ठेकेदारों को उसकी फांसी टलवाने की सूझी। इसके पहले दया याचिका और सुधार याचिका जैसे तमाम उपचार की कोशिश करी जा चुकी थी, लेकिन कोई उससे उसकी मन की तो जान लेता।
महामहिम राष्ट्रपति और राज्यपाल से ले कर माननीय मुख्य न्यायाधीश तक सभी ने अपना फैसला दे दिया था की उसे तो फांसी पर लटकना ही होगा, लेकिन फिर भी कुछ लोगों को चैन नहीं था। इन वकीलों को तो उसे मिलने वाली खुशी का एहसास मात्र ही उसे ज़िंदा रखने की कोशिश करने पर विवश कर रहा था। खैर तमाम लेट लतीफी और पिछले 22 सालों मे देखे उतार चढ़ाव के बाद कल सुबह उसे उसकी ख्वाबों की दुनिया नसीब होने वाली थी , जिसकी चाह मे उसने ऐसी नृशंस आतंकवादी वारदात देने मे तनिक भी नहीं सोचा।
सुबह जब बंदी रक्षक ने उसे नहाने को कहा और पहनने को नए कपड़े दिये वो तब उसने सोचा आज उसकी वर्षों की मुराद पूरी होगी , जन्नत मे उसके लिए 72 हूरों का उम्दा इंतजाम किया जा चुका होगा जो जन्नत के द्वार पर उसके लिए पलके बिछाए इंतज़ार मे खड़ी होंगी। खैर फांसी के फंदे को देख उसने अपनी आंखे बंद की और झूल गया उस फंदे पर। कुछ मिनटों की दर्द ने उसे उन 257 लोगों के दर्द का एहसास कराया या नहीं इसके बारे मे कुछ भी कहा नहीं जा सकता, और फिर ये क्या,ये तो चारो तरफ तो घुप्प अंधेरा पसरा पड़ा है। और ये कहा भेजा जा रहा है इसे विद्युत सी तीव्र गति से, कुछ एक पलों के इस सफर के बाद आंखों पर जब रोशनी पड़ी तो ये क्या ये कौन सी फौज खड़ी है सामने। उन्होने तो कहा था 72 हूरें पलक पावड़े बिछाए खड़ी होंगी और फिर ताउम्र बस उनही के बीच आराम से गुज़रेगी। लेकिन ये तो सामने कुछ और ही नज़ारा है। सामने से कुछ जाने पहचाने चेहरे उसके सामने आते हैं और उसे सारी बातें समझ मे आने लगती हैं। उसे अहसास हुआ अपनी बेवकूफी का, गलती का हुआ या नहीं इसके बारे मे कहा नहीं जा सकता। लेकिन अब तो इनके बीच ही बीतनी है , फिर आँखें बंद कर उसने सोचा, ये ही था तो वहाँ क्यू हँगामा फैला है यहाँ आने के लिए? यही सोच रहा होगा शायद कि काश वापस जा के बता पाता कि धोखा किसी और ने नहीं उसके अपनों ने ही किया है।

चित्र- साभार श्री मनोज कुरील


Monday, July 20, 2015

'आप' तो बड़े बेशर्म निकले

2011 के अन्ना आंदोलन के गर्भ से पैदा हुई आम आदमी पार्टी खुद के बारे मे कहती थी की वो देश को वैकल्पिक राजनीति देने आए हैं, परंतु  जिस तरीके से बाकी सारी पार्टियों पर आम आदमी पार्टी चोर, बेईमान कहती थी और भ्रस्टाचार तथा भाई भतीजावाद फैलाने का आरोप लगती थी, आज ठीक उसी ढर्रे पर चलने लगी है। महज ढाई सालों पहले जब अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी की स्थापना की थी तो जिन जिन मुद्दों पर इन्होने खुद के बाकी राजनैतिक दलों से अलग होने का दावा किया था वो सारे दावे आज पार्टी मे कहीं दिखाई नहीं दे रहे। पार्टी का नारा था "एक नया विकल्प" , लेकिन महज ढाई सालों मे इस विकल्प मे वो सारे ऐब दिखाई देने लगे जिससे अलग होने का दावा और वादा इन्होने देश की आवाम से किया था ।
दिल्ली मे सरकार बनाने के बाद आप की सरकार को वो VVIP कल्चर अपनाने मे चंद घंटे भी नहीं लगे जिसकी ये घोर विरोधी रही थी। आज इनके VVIP कल्चर का आलम ये है की मुख्यमंत्री एक टीवी चैनल को इंटरव्यू देते समय साफ साफ कह दिया की ये एक मुख्यमंत्री का इंटरव्यू है किसी ऐरे गैरे का नहीं। चुनाव के पहले तो आपने कहा था चाहे मुख्यन्त्री बन जाऊ चाहे प्रधानमंत्री ,मैं तो आम आदमी की तरह ही रहूँगा जी।
भ्रस्टाचार मे अपने कदम आगे बढ़ाते हुये आज आम आदमी  पार्टी ने अपने कई पार्टी वोल्यूनटियर्स को दिल्ली सचिवालय मे ऊंचे वेतनमान पर रखा है, जिनमे कइयों के वेतन तो वरिष्ठ IAS अफसरों से भी ज्यादा है। आपने चुनाव के पहले ऐसा तो नहीं कहा था केजरीवाल जी। 
केजरीवाल जी अपने खुद के  प्रचार के लिए दिल्ली सरकार के बजट मे 526 करोड़ रुपयों का प्रावधान रखा है, जो पिछली सरकारों से 2000 प्रतिशत से भी ज्यादा है। आपने चुनाव के पहले ऐसा तो नहीं कहा था केजरीवाल जी। 
केजरीवाल जी ने तमाम ठेके अपने चहेते ठेकेदारों एवं अपने रिशतेदारों मे बांटने शुरू कर दिये और इन ठेकों के देने के बदले मे अच्छी ख़ासी सुविधा शुल्क भी वसूली जा रही है। आपने चुनावों मे इन चीजों का विरोध कर के ही तो वोट मांगे थे केजरीवाल जी। फिर किस हिसाब से आपने देश को नया विकल्प देने की बात कही थी। 
केजरीवाल जी ने अपनी पुरानी मित्र एवं पार्टी के हरियाणा नेता नवीन जयहिंद की पत्नी को महिला आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर के रही सही कसर भी पूरी कर दी। भाई भतीजावाद से इतर एक नया विकल्प देने का वादा करके आप भी तो वही करने लगे जिसका आरोप आप दूसरी पार्टियों पर लगाते रहे हैं।  
इस तरह के जन आंदोलन के गर्भ से निकलने  वाली राजनीतिक पार्टियों का इतिहास देश की जनता को हमेशा से कड़वा अनुभव देने वाला ही रहा है, चाहे वो समाजवादी आंदोलन हो या जनता आंदोलन और आपने इसी बात को अपने आम आदमी पार्टी द्वारा  एक बार फिर साबित कर दिया। अगर इसी स्वराज का सपना आपने दिखाया था , तो मुझे गर्व है की मैंने आपका विरोध किया और आगे भी करता रहूँगा। संक्षेप मे तो बस इतना ही कहना चाहूँगा- 'आप' तो बड़े बेशर्म निकले। 

चित्र - साभार श्री मनोज कुरील

Monday, July 13, 2015

'महान साहित्यकार' चेतन भगत को खुला पत्र

चेतन भगत,
आपका हिन्दी समाचार पत्र मे लिखा लेख सोशल मीडिया मे भक्तों की प्रजाति पढ़ा। ज्यादा ऊल जलूल बातों मे जाने से बेहतर होगा की सीधे आपके लिखे लेख के मुख्य बिन्दुओं के बारे मे ही आपसे बात करूँ। आपने भक्तों की तथाकथित प्रजाति का गहन विश्लेषण करने के पश्चात एक भक्त की 4 प्रमुख विशेषताओं के ईद गिर्द अपना लेख लिखा है। आपके अनुसार एक भक्त की 4 विशेषताए परिलक्षित होती हैं और जो की निमन्वत हैं:-
1- सारे भक्त पुरुष हैं,
2-उनके संवाद का कौशल अग्रेज़ी मे कमजोर है
3-भक्तों को महिलाओं से बात करने का सलीका नहीं है और वो यौन स्तर पर कुंठित हैं 
4-भक्तों को हिंदी बोलने और हिन्दू होने की कुंठा है।

आपकी पहली बात की सारे भक्त पुरुष हैं , किसी हद तक मानने योग्य है। आप जैसे व्यक्ति, जिसकी हरकतें हमने हाल फिलहाल मे प्रसारित हो रहे एक रिऐलिटि शो मे देखी है, का पुरुषो के प्रति ऐसी कुंठा रखना स्वाभाविक ही है। अगर आप के आंतरिक संरचना के कारण बाहर परिलक्षित हो रहे गुणों मे पुरुषो वाली हरकते कम हैं तो इसमें आपके जीन संरचना का दोष है न की बाकी पुरुषों का जिनकी जीन संरचना वैज्ञानिक रूप से ठीक है।

आपने भक्तों का विश्लेषण करते हुये आगे लिखा है की उनका संवाद का कौशल विशेषकर अग्रेज़ी मे कमजोर है। आपकी ये बात भी सत्य हो सकती है और क्यूंकी हमारी मातृभाषा हिन्दी है और अँग्रेजी हमारे लिए एक विदेशी भाषा है और रहेगी। वैसे मैंने आपकी कूछ एक किताबें भी पढ़ी है और विदेशी साहित्यकारों द्वारा अँग्रेजी मे लिखी किताबें भी पढ़ी है।विदेशी साहित्यकारों से आपकी किताबों का तुलना करने पर आपकी किताबें औसत से भी निम्न दर्जे के प्रतीत होती हैं। अतः आपका अँग्रेजी का संवाद कौशल भी एक सामान्य भारतीय की तरह औसत कोटी का ही है। और तो और आपकी तो हिन्दी भी औसत दर्जे से नीचे की है। आपको अपनी दोनों भाषाओं मे सुधार की आवश्यकता है।

आपके अनुसार एक भक्त की तीसरी विशेषता है की वो यौन स्तर पर कुंठित हैं और उन्हे महिलाओं से बात करने के सलीका नहीं है। रही बात महिलाओं से बात करने के सलीका तो वो मैंने आपके और ट्विंकल खन्ना के बीच हुये ट्विटर के वार्तालाप से आपके सलीका का अध्ययन कर लिया है। इसलिए इस विषय पर कम से कम आप तो ज्ञान ना दें। ऐसा अक्सर होता है की व्यक्ति आवेश मे कभी कभार कुछ ऐसा लिख जाता है जो उसे नहीं लिखना चाहिए और जब आपके जैसा 'जैंट्लमैन' (भद्रपुरुष) इस आवेश मे बह गया तो हो सकता है ट्विटर पर मौजूद सामान्य भक्त भी कभी कभी आवेश मे ऐसा कुछ लिख जाते होंगे जो सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य ना हों।लेकिन ऐसे उदाहरण नग्न के बराबर ही हैं आप उसे एक सामान्य बात नहीं कह सकते।
और यौन स्तर पर कुंठा वाली बात कम से कम आप तो न हीं कहे, आपके ज़्यादातर किताबों के चरित्र स्वयं मे यौन कुंठित नज़र आते हैं और जैसा की सभी जानते हैं एक लेखक की रचना मे उस लेखक का सामान्य  व्यवहार अवश्य ही परिलक्षित होता है तो इस हिसाब से आपका अधिकतम जीवन भी यौन कुंठा मे ही बीता हुआ मालूम पड़ता है।

विश्लेषण की अंतिम पड़ाव मे आपके अनुसार भक्तों को हिन्दी बोलने और हिदु होने की कुंठा होती है। महानुभाव जी आपके अंदर ये भावना होगी किन्तु मुझमे या किसी और भक्त के अंदर कम से कम इस बात को लेकर कुंठा होने की बात आप जैसा बेवकूफ और त्वरित प्रसिद्धि की आस रखने वाला कोई लेखक ही लिख सकता है। मेरे ख्याल से आपको विश्लेषण के विज्ञान की तनिक और जानकारी लेने की आवश्यकता है। 4-5 औसत स्तर की किताबें लिख देने से और कुछ एक रिऐलिटि शो मे जज बन जाने से शायद आप स्वयं को सोशल मीडिया का जज समझने लगे हैं तो आपको आत्म विश्लेषण की आवश्यकता ज्यादा है। योगा करें, इससे शायद आपको मन और शरीर के बीच समंजस्य स्थापित करने मे थोड़ी सफलता अवश्य मिलेगी।


एक स्वाभिमानी भक्त




Thursday, May 7, 2015

क्या फोर्ड फ़ाउंडेशन गैर सरकारी संस्था है ?

फोर्ड फ़ाउंडेशन गैर सरकारी संस्था के रूप मे जानी जाती है एवं यह विभिन्न देशों मे कार्यरत गैर सरकारी संस्थाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करती है। प्रत्यक्ष रूप मे इस संस्था का उद्देश्य इसके द्वारा दिये गए दान से स्पष्टतः अलग प्रतीत होता है। यह पाया गया है की गुप्त रूप से यह संस्था राजनैतिक दलों को अपने गुप्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी आर्थिक सहायता देती है। विभिन्न एशियाई एवं अरब देशों मे कार्यरत विभिन्न संस्थाएं सरकार विरोधी कार्यो के लिए फोर्ड फ़ाउंडेशन से प्राप्त धन का दुरुपयोग करते पाये गए हैं। भारत मे भी ग्रीन पीस एवं अन्य कई गैर सरकारी संस्थाओं ने फोर्ड फ़ाउंडेशन से प्राप्त धन का उपयोग सरकार के विभिन्न योजनाओं के विरोध हेतु उपयोग किया है जिनमे कोड़कुलनम मे प्रस्तावित नाभिकीय रिएक्टर की स्थापना का विरोध भी है। नर्मदा बचाओ आंदोलन तथा ग्रीन पीस द्वारा संचालित कई कार्यक्रम संदेह के घेरे मे रहे हैं। आप पार्टी को भी परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से इस संस्था से धन प्राप्त होता रहा है, जिसका उपयोग आप पार्टी ने राजनैतिक रूप मे चुनाव लड़ने मे किया है। भारत सरकार द्वारा इस संस्था से धन प्राप्ति या संस्था द्वारा धन दिये जाने पर रोक लगाने के बाद अमेरिकी सरकार ने इस संबंध मे भारत सरकार से प्रश्न किया है।

यह सर्वविदित है की सीआईए द्वारा अपने गुप्त उद्देश्य, एशियाई देशों मे अस्थिरता पैदा करने, हेतु कई संस्थाएं बनाई एवं संचालित की जा रही है। अमेरिकी सरकार के कथनी एवं करनी मे हमेशा अंतर रहा है खास कर जब पाकिस्तानी हित का प्रश्न उपस्थित हो। कई भारतीय गैर सरकारी संस्थाएं मानवाधिकार के नाम पर पुलिस एवं आर्मी द्वारा किए गए कार्यवाही एवं मारे गए दोषी व्यक्तियों के बचाव मे विरोध एवं हल्ला गुल्ला की राजनीत करते रहे हैंजैसे बटला हाउस कांडनुसरत जहां कांड। जबकि बटला जौसे कांड मे एक पुलिस निरीक्षक की मृत्यु हुई है एवं नुसरत जहां के बारे मे अंतर्राष्ट्रीय आतंकी हेडली ने अमेरिका मे ही बयान दिया है।  

यदि फोर्ड फ़ाउंडेशन गैर सरकारी संस्था है तो अमेरिकी सरकार इसे क्यों सरकारी संस्था मानते हुये इसके कार्यों मे रोक के प्रति इतनी चिंतित है। किसी अन्य देश द्वारा अपने गैर सरकारी संस्था के क्रियाकलाप पे रोक के प्रति इतनी चिंता कभी नहीं दिखाई है। अमेरिकी सरकार क्यों नहीं फोर्ड फ़ाउंडेशन के धन का उपयोग अपने यहाँ नस्लवाद्द समाप्ती मे प्रयोग करती है तथा बाल्टीमोर की घटना मे अश्वेत हितों की रक्षा मे कितना दान दिया है।

अमेरिकी सरकार द्वारा फोर्ड फ़ाउंडेशन से दान प्राप्ति पर रोक के संबंध मे किए गए प्रश्न स्पष्ट करते हैं की फोर्ड फ़ाउंडेशन अमेरिकी सरकार द्वारा पोषित छद्म गैर सरकारी संस्था है और इसके हितों के विरुद्ध किए गए कार्य अमेरिकी सरकार अपने उद्देश्य पूर्ति मे बाधक मानती है। आप पार्टी का चरित्र सर्व विदित हो चुका है तथा उन्हे भारत के हित से ज्यादा पाकिस्तानी हितों की परवाह है जिससे वोट बैंक का निर्माण कर सकें।

भारत सरकार को अमेरिकी सरकार के विरोध के बावजूद फोर्ड फ़ाउंडेशन से भारतीय संस्थाओं द्वारा धन ;प्राप्ति पर रोक जारी रखनी चाहिए। 

Friday, February 13, 2015

बनारस टॉकीज - बूक रिव्यू (पुस्तक समीक्षा)



बनारस टॉकीज , जैसा की नाम से प्रतीत होता है, ये बनारस की फिल्मी कहानी ही है। ये शुरू होती है हल्के फुल्के माहौल के साथ और तमाम उतार चढ़ाव से होते हुये एक सुखद अंत की तरफ बढ़ते जाती है। कहानी 3 दोस्तों की है , जिनकी पहली मुलाक़ात से लेकर किताब के अंतिम पन्ने तक की कहानी इन्ही तीनों के इर्द गिर्द घूमती रहती है। कहानी मे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विधि संकाय के पात्रों के माध्यम से विश्वविद्यालय का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया गया है। जिस तरह छात्रावास के भीतर की मौज मस्ती , षड्यंत्र और राजनीति के बीच मे लेखक द्वारा पिरोई गई है वो लेखक की लेखन कला की विशेषता ही है। एक काफी मज़ेदार कहानी जो आपको शुरू से अंत तक किताब के पन्नों से बांधे रहेगी। और एक बार जो आपने शुरुआत कर दी, फिर तो पुस्तक खत्म करने के पहले रूक पाना संभव बिलकुल भी नहीं है। लेखक सत्य व्यास,जो की विधि संकाय के मेरे अग्रज हैं, उन्हे ढेरों शुभकामनायें। भविष्य मे ऐसी ही कृति की आस अवश्य रहेगी।

पुस्तक का नाम - बनारस टॉकीज
लेखक - सत्य व्यास
शैली-  काल्पनिक ( फिक्शन)
प्रकाशक - हिन्द-युग्म , 1, जिया सराय, हौज खास , नई दिल्ली - 100032
प्रथम संस्करण - 2015

Wednesday, January 7, 2015

भारतीय सेकुलरिज़्म की अनोखी दास्तान : एक तरफा सेकुलरिज़्म

आते जाते , उठते बैठते अक्सर ही किसी न किसी को सेकुलरिज़्म पर ज्ञान देते सुनता हूँ। आज से ही नहीं, जब से होश संभाला हैं तब से इस सेकुलरिज़्म की परिभाषा गढ़ते हर रोज़ कोई न कोई सामने आ ही जाता है और फिर लगता है बिन मांगे अपना ज्ञान बाँचने। ऐसा लगता है ये सेकुलरिज़्म ही देश के सभी समस्याओं का एकलौता समाधान है। गरीबी कैसे हटेगी ये सेकुलरिज़्म ही बताएगा। देश के बेरोजगारों के लिए रोजगार की व्यवस्था ये सेकुलरिज़्म ही करेगा। किसी को दिन मे दो जून की रोटी मिले न मिले, सेकुलरिज़्म से ही उसके भूख की ज्वाला को मिटाया जा सकता है।
वैसे सेकुलरिज़्म का शाब्दिक अर्थ धर्मनिरपेक्षता होता है, अर्थात विभिन्न धर्मों एवं पंथों के बीच बिना किसी प्रकार के भेद भाव का व्यवहार। लेकिन भारत के परिपेक्ष्य मे भारतीय राजनीतिज्ञों एवं मीडिया के एक खास वर्ग ने इस सेकुलरिज़्म शब्द की अपनी ही व्याख्या करी हुयी है और इसी को रटते हुये इनके दिन गुज़र रहे हैं। इनके अनुसार एक खास समुदाय के ऊपर ही इस सेकुलरिज़्म का सारा बोझ है और उसी समुदाय को इस सेकुलरिज़्म की गाड़ी को अकेले खीचना है। दूसरे किसी समुदाय का कोई भी आचरण सेकुलर हो या न हो उसकी आवश्यकता ये जरूरी नहीं समझते। इस सेकुलरिज़्म के नाम पर बहुतों की दुकान चल रही है और इनकी कोशिश है की ये ऐसी ही चलती रहे। पर ये कब तक चलेगी ये देखने की बात है।
अभी हाल मे पीके फिल्म मे हिन्दू धर्म की कई मान्यताओं के ऊपर प्रहार हुआ जिसे ये खास सेकुलर लोग रचनात्मकता के दृष्टिकोण से देखते हैं लेकिन अगर यही रचनात्मकता का उपयोग किसी और संप्रदाय पर होता है तो सेकुलरिज़्म की दुहाई देते हुये यही लोग उसे धर्म पर प्रहार और धार्मिक भावनाए आहत होता हुआ देखते हैं।
एक तरफा सेकुलरिज़्म की एक और ताज़ा मिसाल हाल ही मे जम्मू कश्मीर विधान सभा चुनाव के परिनामों के बाद देखने को मिली जब भाजपा ने एक हिन्दू मुख्यमंत्री की बात करी तो तमाम राष्ट्रीय और कश्मीर के क्षेत्रीय दलों ने इसे कश्मीरियत पर हमला मानते हुये इसे खारिज कर दिया और दलील दी की हिन्दू मुख्यमंत्री वहां की बहुसंख्यक समुदाय से ताल्लुक नहीं रखता इसलिए ऐसी कोई भी संभावना को साकार होते वो नहीं देखना चाहते। अपनी सेकुलरिज़्म की परिभाषा इन दलों ने एक समुदाय विशेष के तुष्टीकरण के लिए बना रखी है। लेकिन क्या सेकुलरिज़्म का सारा दारोमदार एकतरफा होना चाहिये क्या? मेरा मानना है की ये एकतरफा सेकुलरिज़्म अत्यंत ही खतरनाक है और ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है। लंबे दौर मे ऐसी एकतरफा सेकुलरिज़्म कभी कारगर सिद्ध नहीं हो सकती और सभी पक्षों को इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचने और विचार करने की ज़रूरत है।

चित्र - साभार श्री मनोज कुरील