Monday, July 13, 2015

'महान साहित्यकार' चेतन भगत को खुला पत्र

चेतन भगत,
आपका हिन्दी समाचार पत्र मे लिखा लेख सोशल मीडिया मे भक्तों की प्रजाति पढ़ा। ज्यादा ऊल जलूल बातों मे जाने से बेहतर होगा की सीधे आपके लिखे लेख के मुख्य बिन्दुओं के बारे मे ही आपसे बात करूँ। आपने भक्तों की तथाकथित प्रजाति का गहन विश्लेषण करने के पश्चात एक भक्त की 4 प्रमुख विशेषताओं के ईद गिर्द अपना लेख लिखा है। आपके अनुसार एक भक्त की 4 विशेषताए परिलक्षित होती हैं और जो की निमन्वत हैं:-
1- सारे भक्त पुरुष हैं,
2-उनके संवाद का कौशल अग्रेज़ी मे कमजोर है
3-भक्तों को महिलाओं से बात करने का सलीका नहीं है और वो यौन स्तर पर कुंठित हैं 
4-भक्तों को हिंदी बोलने और हिन्दू होने की कुंठा है।

आपकी पहली बात की सारे भक्त पुरुष हैं , किसी हद तक मानने योग्य है। आप जैसे व्यक्ति, जिसकी हरकतें हमने हाल फिलहाल मे प्रसारित हो रहे एक रिऐलिटि शो मे देखी है, का पुरुषो के प्रति ऐसी कुंठा रखना स्वाभाविक ही है। अगर आप के आंतरिक संरचना के कारण बाहर परिलक्षित हो रहे गुणों मे पुरुषो वाली हरकते कम हैं तो इसमें आपके जीन संरचना का दोष है न की बाकी पुरुषों का जिनकी जीन संरचना वैज्ञानिक रूप से ठीक है।

आपने भक्तों का विश्लेषण करते हुये आगे लिखा है की उनका संवाद का कौशल विशेषकर अग्रेज़ी मे कमजोर है। आपकी ये बात भी सत्य हो सकती है और क्यूंकी हमारी मातृभाषा हिन्दी है और अँग्रेजी हमारे लिए एक विदेशी भाषा है और रहेगी। वैसे मैंने आपकी कूछ एक किताबें भी पढ़ी है और विदेशी साहित्यकारों द्वारा अँग्रेजी मे लिखी किताबें भी पढ़ी है।विदेशी साहित्यकारों से आपकी किताबों का तुलना करने पर आपकी किताबें औसत से भी निम्न दर्जे के प्रतीत होती हैं। अतः आपका अँग्रेजी का संवाद कौशल भी एक सामान्य भारतीय की तरह औसत कोटी का ही है। और तो और आपकी तो हिन्दी भी औसत दर्जे से नीचे की है। आपको अपनी दोनों भाषाओं मे सुधार की आवश्यकता है।

आपके अनुसार एक भक्त की तीसरी विशेषता है की वो यौन स्तर पर कुंठित हैं और उन्हे महिलाओं से बात करने के सलीका नहीं है। रही बात महिलाओं से बात करने के सलीका तो वो मैंने आपके और ट्विंकल खन्ना के बीच हुये ट्विटर के वार्तालाप से आपके सलीका का अध्ययन कर लिया है। इसलिए इस विषय पर कम से कम आप तो ज्ञान ना दें। ऐसा अक्सर होता है की व्यक्ति आवेश मे कभी कभार कुछ ऐसा लिख जाता है जो उसे नहीं लिखना चाहिए और जब आपके जैसा 'जैंट्लमैन' (भद्रपुरुष) इस आवेश मे बह गया तो हो सकता है ट्विटर पर मौजूद सामान्य भक्त भी कभी कभी आवेश मे ऐसा कुछ लिख जाते होंगे जो सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य ना हों।लेकिन ऐसे उदाहरण नग्न के बराबर ही हैं आप उसे एक सामान्य बात नहीं कह सकते।
और यौन स्तर पर कुंठा वाली बात कम से कम आप तो न हीं कहे, आपके ज़्यादातर किताबों के चरित्र स्वयं मे यौन कुंठित नज़र आते हैं और जैसा की सभी जानते हैं एक लेखक की रचना मे उस लेखक का सामान्य  व्यवहार अवश्य ही परिलक्षित होता है तो इस हिसाब से आपका अधिकतम जीवन भी यौन कुंठा मे ही बीता हुआ मालूम पड़ता है।

विश्लेषण की अंतिम पड़ाव मे आपके अनुसार भक्तों को हिन्दी बोलने और हिदु होने की कुंठा होती है। महानुभाव जी आपके अंदर ये भावना होगी किन्तु मुझमे या किसी और भक्त के अंदर कम से कम इस बात को लेकर कुंठा होने की बात आप जैसा बेवकूफ और त्वरित प्रसिद्धि की आस रखने वाला कोई लेखक ही लिख सकता है। मेरे ख्याल से आपको विश्लेषण के विज्ञान की तनिक और जानकारी लेने की आवश्यकता है। 4-5 औसत स्तर की किताबें लिख देने से और कुछ एक रिऐलिटि शो मे जज बन जाने से शायद आप स्वयं को सोशल मीडिया का जज समझने लगे हैं तो आपको आत्म विश्लेषण की आवश्यकता ज्यादा है। योगा करें, इससे शायद आपको मन और शरीर के बीच समंजस्य स्थापित करने मे थोड़ी सफलता अवश्य मिलेगी।


एक स्वाभिमानी भक्त




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