Wednesday, January 23, 2013

कहाँ हैं हिन्दू आतंकवादियों के प्रशिक्षण कैंप ?

हमारे देश की सरकार में एक से बढ़ कर एक ज्ञानी मंत्री लोग हैं। पढ़े लिखे भले ही न हो, शैक्षिक योग्यता के नाम पर शायद दसवी या बारहवी पास ही होंगे मुश्किल से, लेकिन ज्ञान का अथाह खान हैं। आये दिन इनके बयान  सुन कर रोज़ का लाफ्टर का खुराक मिल जाया करता है, लेकिन इस बार तो एक मंत्री साहब ने हद्द ही कर दी। ऐसा बयान जरी कर दिया जो खुद इनके पार्टी की ही गले की हड्डी बन गया है। इनकी खुद की पार्टी ने भी ये कहते हुए बयान से पल्ला झाड़ लिया है कि  ये पार्टी का नहीं बल्कि मंत्री जी का व्यक्तिगत बयान है।
ये मंत्री जी जिनके ऊपर देश के आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी है , हमेशा से ये कहते आ रहे हैं की आतंक का कोई धर्मं नहीं होता, आतंकी सिर्फ एक विकृत मानसिकता का प्रतिरूप होते हैं, आतंकवादियों को किसी एक संप्रदाय या धर्मं विशेष से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए। बिलकुल सही बात है हम सभी भारतवासी आतंक को सिर्फ आतंक ही समझते हैं। किसी धर्मं विशेष से इसे जोड़ना बिलकुल गलत और निंदनीय है। लेकिन अभी पिछले दिनों इन्ही मंत्री जी ने एक संवाददाता सम्मलेन में ये कह कर सबको अच्चम्भित कर दिया की देश में हिन्दू आतंकवादियों के टेरर कैंप चल रहे हैं। लो कर लो बात कल तक यही साहब सबको ज्ञान बाटते फिर रहे थे की आतंक का कोई धर्मं नहीं होता और अब खुद ही कह रहे हैं कि हिन्दुओं के आतंकवादी कैंप चल रहे हैं देश में। मतलब ये है की ज्ञान बटने में तो ये भाई साहब आगे हैं लेकिन खुद ही उस ज्ञान को अमल कर पाने में नाकाबिल। और तो और जब मंत्री जी ने कह ही दिया हिन्दू आतंकवादियों के कैंप चल रहे हैं तो पाकिस्तान के राजनेताओं ने इसी का फायदा उठाते हुए भारत को ही आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने की सिफारिश कर दी। अब मेरे ये समझ में नही आ रहा की ये साहब देश के हित में काम कर रहे हैं ये देश के खिलाफ। वैसे मुझे तो ये शक भी है की मंत्री साहब ने ये बयान देशवासियों का ध्यान पाकिस्तान द्वारा हमारे दो सैनिकों के सर काटने का कारण उपजे विवाद से दूर करने के लिए दिया है, ताकि सरकार की कमजोरियों से जनता का ध्यान भंग हो कर इस मुद्दे पे आ जाये।
भाई साहब आप एक ज़िम्मेदार मंत्री हैं , ज़रूर सब कुछ सोच समझ कर ही बयान जारी किया होगा। तो इस देश के एक जिम्मेवार और देशभक्त नागरिक होने के नाते हम भी जानना चाहते हैं कि आतंक फ़ैलाने वाले इन हिन्दू आतंकवादियों के प्रशिक्षण कैंप कहा चल रहे हैं। चलिए जिन आतंकवादियों के कैंप देश के बाहर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चल रहे हैं, उन पर कारवाई न कर पाने की आपकी मज़बूरी से हम वाकिफ हैं। देश के बाहर जा कर हम किसी भी प्रकार की करवाई कर पाने में असमर्थ हैं। लेकिन जैसा की आपने बताया की आपके पास ख़ुफ़िया जानकारी मौजूद है की देश में हिन्दू आतंकवादियों के कैंप चल रहे हैं, तो हम ये जानना चाहते हैं की जानकारी मौजूद होने के बावजूद आखिर सरकार उन कैम्पस पर हमला क्यों नहीं कर रही है? देश के लिए खतरा ऐसे कैम्पस को तुरंत नेस्तनाबुन्द कर देना चाहिए। और उन्हें प्रशिक्षण देने वालों के ऊपर राष्ट्रद्रोह के कानून के अंतर्गत कानूनी कार्यवाही करना चाहिए।
श्रीमान वोट बैंक की राजनीती तो आप लोग वर्षों से करते आ रहे हैं, और करते रहिये उससे हमे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन कम से कम देश की सुरक्षा के मामले में तो ऐसी ओछी राजनीती से ऊपर उठ कर बयान जारी किया कीजिये। अगर एक धर्म विशेष के 10 व्यक्ति किसी आतंकी घटना  अंजाम देने में भागीदार होते हैं तो क्या सरकार की ओर से ऐसे गैर जिम्मेदार बयान देना उचित रहेगा की उस धर्मं के आतंकी प्रशिक्षण कैंप चल रहे हैं? भारत एक सेक्युलर देश है और आप लोग तो सबसे बड़े वाली स्वयं घोषित सेक्युलर पार्टी के नेतागण हैं, तो कृपया कर के ऐसे बयान जारी करने से पहले 'मेन्टोस' खा लिया कीजिये। जो दोषी है उन पर कारवाई करने की बजाये ऐसे अनुचित बयान जारी करना न सिर्फ निंदनीय है बल्कि ये सरकार में मौजूद लोगो की विकृत मानसिकता को उजागर करता है। अगर फिर भी न मानते तो हमारा क्या जाता है, हम तो 'मैंगो पीपल' हैं किसी तरह अपना गुजर बसर कर ही लेंगे। लेकिन अगर अब भी ऐसे बेसिर पैर वाले घटिया बयान जारी करते रहियेगा तो आने वाले चुनाव में जनता का जवाब आप लोगों को खुद ही मिल जायेगा। भगवान आको सद्बुद्धि दे, बस यही कामना कर सकता हूँ।

Sunday, January 20, 2013

इनकी माँ रोये तो ब्रेकिंग न्यूज़ बन गया, सारे देश की माएं भी तो रो रही हैं सालों से उनकी किसी को खबर भी नहीं...

एक परिवार है , पिछले 60-70 सालों से दबा के मज़े ले रहा है , और इतने मज़े लेने के बाद भी न जाने क्या क्या दुष्प्रचार किये जा रहा है। और इसके बाद भी जनता को विश्वास दिलाते आ रहा है की हमने देश के लिए ये खोया , वो खोया। सही में तुमने खोया? क्या बता रहे हो , अगर खोने का स्वाद इतना मज़ेदार होता है तो भाई साहब देश के वो अस्सी करोड़ लोग भी खोने तैयार हैं जिन्हें दो जून का भोजन भी नसीब नहीं होता। मजाक तक ठीक है लेकिन ऐसी दिनदहाड़े सफ़ेद झूठ हमसे बर्दाश्त नहीं होता रे भाई। आपसे हो जाता है तो कर लो साहब, लेकिन न तो हम बर्दाश्त करेंगे न ही इनका झूठ सुनेंगे।
एक खास राजनीतिक दल है, आज़ादी के 65 सालों में इन्होने 50 से ज्यादा सालों तक राज़ किया है इस देश पर। और उन सालों में एक खास परिवार ने 35 सालों के आस पास राज़ किया है , उसी परिवार का लड़का उस परिवार संचालित राजनीतिक दल का नया उपाध्यक्ष चुन लिया जाता है। गौरतलब है की उसकी अम्मा पिच्च्ले 15 सालों से उस खास दल की अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हैं, अब निर्वाचित हैं या जो भी हैं हम ज्यादा टिपण्णी कर नहीं सकते न ही करना चाहते। भाई तुम्हारी फॅमिली ओन्ड पोलिटिकल पार्टी है जो करना है करो लेकिन देश दुनिया को ये तो कह कह के गुमराह तो मत ही करो कि तुम लोगों ने देश के लिए ये किया, वो किया। किया तो तुमने अपने परिवार के अलावा किसी के पप्पा के लिए भी नहीं। इनके घर का कुत्ता भी इस देश के किसी साधारण व्यक्ति से ज्यादा सुविधाएं उठाता है, और ये मगरमच्छ वाले आंसू बहाते फिरते हैं की हमने ये खोया और वो खोया।
इस देश के जो अनपढ़ लोग हैं, या कम पढ़े लिखे लोग जो हैं वो तो अब तक इनको यही समझ के वोट देते आ रहे हैं कि ये महात्मा गाँधी के वंशज हैं। मेरे गाँव के भी जो वृद्ध लोग हैं या जो जवान भी है अधिकतम यही सोचते हैं की ये ही असली गाँधी हैं। कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन नतीजा वोही ढाक के तीन पात। शायद 1997 या 1998 का साल था जब मैं महात्मा गाँधी के पोते से मिला था, वो उस समय भुवनेश्वर से गाँधी जी की अश्थियाँ ले कर लौट रहे थे पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से। ट्रेन का सासाराम स्टेशन पर 4-5 मिनट का स्टॉप था, उस समय मैं वहां पर ही रहता था, तो मैं  भी स्टेशन चला गया उनसे मिलने। तकरीबन 3-4 मिनट की मुलाकात में ही उन्होंने बताया की उनका परिवार साऊथ अफ्रीका में रहता है और वंही पर खुश हैं क्यूंकि उनकी जगह तो यहाँ किसी और ही परिवार ने ले रखी है। उस समय राजनीतिक रूप से इतना परिपक्व नहीं था इसलिए उनके कहने का मतलब नहीं समझ पाया था, लेकिन आज जब उनकी बातें याद आती हैं तो समझ में आता है की उनकी व्यथा गलत भी नहीं थी।
एक और बात कही भाई साहब ने आंसू बहाते हुए और चिट्टा पढ़ते हुए। गौर कीजियेगा बिना चिट्टा के न तो ये कुछ बोल पाते हैं न ही इनकी अम्मा जी, फिर भी सबसे बड़े वाले हिंदुस्तानी यही हैं। ठेका इनके और इनके परिवार के नाम ही हैं भारतीयता का। इनके परिवार से बड़ा देशभक्त तो शायद ना मंगल पाण्डेय रहे होंगे न ही रानी लक्ष्मी बाई और नहीं तात्या टोपे जी। इनके परिवार के आगे तो भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, राजगुरु, सुखदेव का भी नाम नहीं आने देते इनके पारिवारिक दल के कार्यकर्ता। हाँ तो मैं बता रहा था की इन साहेबान ने कहा क्या, भाई साहब व्याख्यान दे रहे थे की इन्होने जिसके साथ बैडमिंटन खेलना सीखा उन्हीने इनके सर से सब छीन लिया। सही में छीन लिया या दे दिया। भाई साहब इसका फैसला अब आप लोग ही कर लो की मज़े कौन ले रहा है और कौन सर से सब कुछ छीने जाने के कारण विवशता की जिंदगी जीने को विवश है।
एक बात तो बताना भूल ही गया की ये जो भाई साहब अगला प्रधान मंत्री बनने की ख्वाइश देख रहे हैं और खुद को युवा युवा करते नहीं थकते, इनकी उम्र इस देश के सबसे उम्रदराज़ युवा से तकरीबन 12 साल ही ज्यादा है। अब सिर्फ अगर शादी न हो तो बंदा युवा थोड़े ही रहता है। भाई साहब उम्र तुम्हारी खुद तुम्हारा साथ छोड़ते जा रही है और तुम खुद को युवा युवा करते जा रहे हो। हमारे तरफ तो अगर इस उम्र में किसी की शादी न हो तो लोग पता नहीं किस किस चिकित्सीय उपचार की सलाह दे देते हैं, लेकिन आप स्वयंभू युवराज हैं मजे लीजिये ज़िन्दगी के। और इतने ही युवा हो तो भाई साहब युवाओ के ऊपर हो रहे अत्याचार के विरोध में भी 2-4 शब्द कह देते। देश के युवाओं को सच में थोडा अच्छा लगा होता। लेकिन आपने कुछ नहीं बोला तो ज़रूर किसी खास काम में ही व्यस्त रहे होंगे , अब आपके प्रशंशक तो यही बोलते फिर रहे हैं। खैर आप मजे लेते रहिये वैसे भी आपका परिवार यही करते आ रहा है पीछे 70 सालों से। हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं, इससे ज्यादा नहीं बोल सकते।
चलो भाई इनकी अम्मा जी को रो लेने देते हैं, देश की बेटी के भयावह बलात्कार पर तो इन्होने आंसू बहाए नहीं, जब देश के दो बहादुर सैनिकों का सर पाकिस्तानी बड़ी ही बेदर्दी से काट के ले गए तब भी इनके बहते आंसू दिखे नहीं , जब असाम में हिंसा हो रही थी तब भी इनके रोने का खबर तो अखबारों की सुर्खियाँ नहीं बना, लेकिन अब रो रही हैं तो रो लें।

Saturday, January 19, 2013

कश्मीरी पंडितों की पूरी कौम अपने ही देश में विस्थापित रहने को मजबूर क्यों ?

इस शीर्षक पर लिखने के बारे में सोच तो काफी अरसे से रहा था लेकिन दिन आज का चुना क्यूंकि आज का दिन ही कश्मीर की इतिहास का वो कला दिन है जब कश्यप ऋषि की तपोभूमि कश्मीर की धरती से स्वयं कश्मीरी पंडितों को ही विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ा था। वो कश्मीरी पंडित जो सैकड़ों सालों से वहां रह रहे थे, जो उनके लिए सिर्फ घर नहीं बल्कि जन्नत था। एक पूरी की पूरी पीढ़ी जो  अपना फूल सा बचपन भी जी नहीं पाइ थी और उन्हें राहत शिविरों , विस्थापन केन्द्रों में जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होना पड़ा। ये पूरी पीढ़ी अपना बचपन तो नहीं ही जी पाई और समय से पहले ही इन्होने वक़्त के वो सारे थपेड़े झेले, जिसने इन्हें अचानक से ही मानसिक रूप से व्यस्क बना दिया। आज भी लाखों परिवार राहत शिविरों में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं और इन्ही रहत शिविरों में ही जीवन व्यतीत करते करते करते अपने घर जाने की आस में ही हज़ारों लोग दुनिया से रुख्शत कर चुके हैं। कभी ये भारत के धनवानों में मानी जाने वाली पूरी कौम, आज जिल्लत भरी ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं।
मेरी धुंधली यादों में कही थोड़ी सी याद बाकी है , कभी कभी कुछ महिलाएं छोटे छोटे बच्चों के साथ हमारे शहर में  हमारे घरो में आती थी और अपनी व्यथा बताती थी। उनकी व्यथा सुनके महिलाओ की आँखे भर आती थी और जिससे जितना हो सकता था वो अपनी हैसियत के हिसाब से उनकी मदद करता था। उनके बात करने के लहजे और पहनावे को देख कर यही सोचा करता था की ये क्यों ऐसे जीने पे मजबूर हैं। उस समय उतना पता नहीं चलता था, लेकिन जैसे जैसे बड़ा हुआ कश्मीरी पंडितों के बारे में पढने और जानने का मौका मिला तो खुद पर आत्मग्लानी हुई कि कैसे हमारे ही देश के पूतों को अपने घर से भाग कर विस्थापितों की तरह रहने को विवश होना पड़ रहा है। ये हमारे भारत के हजारों वर्षों के स्वर्णिम इतिहास में निःसंकोच एक काला धब्बा ही है।
आखिर क्यूँ हमारी सरकार इस पूरी कौम को इनके हाल पर जीने के लिए छोड़ चुकी है। इनकी सहायता के नाम पर कुछ राहत और विस्थापन शिविर बना दिए गए हैं जिनकी हालत भी अन्य सरकारी योजनाओ के जैसी ही है। कश्मीरी पंडितो की ये हालात आज ऐसे हैं उसका सबसे बड़ा कारण ये है की इनकी संख्या बहुत कम है। ये किसी भी राजनीतिक दल के लिए एकमुश्त वोट बैंक नहीं हैं। ये अलग अलग जगहों पर रह रहे हैं इसलिए इनकी संख्या इतनी नहीं है की ये कि ये चुनावों में एक सार्थक वोट बैंक साबित हो पायें, इसलिए किसी भी राजनीतिक दल ने इनकी समस्या को लेकर कभी कोई इमानदार प्रयास शायद ही किया। इतनी सारी यातनाएं और यहाँ तक की देश के सरकार द्वारा भी अपने हाल पर छोड़ दिए जाने के बावजूद इस कौम में समय के साथ साथ आगे बढ़ना सीख लिया है। समय की विपरीत धाराओं में भी आगे बढ़ते हुए आज ये कौम फिर से पुराने स्वर्णिम दिनों को पाने की आस में आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन न ही केंद्र की सरकार ने और न ही जम्मू कश्मीर की राज्य सरकार ने ही इनको सार्थक रूप से मदद की, इस बात की कसक तो इन लोगों के मन में अवश्य ही होगी। यही उम्मीद करूँगा कि जल्दी ही ये मेरे भाई बहन फिर से अपने घर कश्मीर को लौट सके और फिर से अपनी ऐतिहासिक स्वर्णिम ऊँचाइयों को छू सके।



Thursday, January 17, 2013

राहत या आफत .... क्या दिया सरकार के इस नए फैसले ने ?

आज कल युपीए सरकार ने ये तय कर लिया है कि चाहे जो भी हो जाये हम आम जनता की बजा के ही मानेंगे। अभी पिछले दिनों पेट्रोल के दामो में कुछ बढ़ोतरी की गयी थी और आज शाम सरकार ने आम जनता को फिर से दो तोहफे दिए हैं। एक तरफ डीजल के दामों का डीकंट्रोल यानि की अब इसके दामों का फैसला सरकार नहीं बल्कि तेल कम्पनियाँ स्वयं करेंगी, और दूसरी तरफ सरकार ने सब्सिडी वाले गैस सिलिंडर की संख्या में इजाफा किया है। अब 6 की बजाये 9 सिलेंडर सब्सिडी वाली मिला करेंगी। तेल कंपनिया पिछले कई दिनों से हल्ला मचा रही थी की उन्हें डीजल पर प्रति लीटर 9 रुपये का शुद्ध घटा हो रहा है, तो लो सरकार ने तेल कंपनियों को खुश कर ही दिया। अब डीजल की दामों में जल्दी ही बढ़ोतरी होगी और डीजल की दामों में बढ़ोतरी का असर रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ों के दामों में भी जल्दी ही देखने को मिलेगा।
वैसे एक साथ 9 रुपये की बढ़ोतरी का जोखिम तो तेल कम्पनियाँ तो नहीं उठाएंगी लेकिन इतना तो मान के ही चलिए की हर महीने कम से कम 1 रुपये की बढ़ोतरी का बोझ तो आपकी जेब को उठाना ही पड़ेगा। डीजल का प्रयोग कृषि के क्षेत्र में काफी होता है। चाहे खेत की जुताई करने के लिए ट्रेक्टर हो या उसके फसल की सिंचाई करने के लिए जेनसेट हो ,दोनों में ही डीजल का उपयोग किसान करता है। आने वाले दिनों में डीजल के दाम बढ़ेंगे तो इसके सीधा असर किसान की लागत पर पड़ेगा ही। माल ढूलाई , परिवहन ,बिजली उत्पादन इन सब में डीजल का ही उपयोग होता है तो इनका लागत भी बढेगा। मतलब ये कि जेब तो आम जनता की ही कटेगी और लम्बे समय तक कटते ही रहेगी। ठीक वैसे ही जैसे बढ़ी हुयी सब्सिडी वाली सिलेंडर की संख्या का फायदा जल्दी ही लोगो को मिलेगा वैसे ही बढ़ी डीजल के दाम का असर लम्बे समय तक आम जनता की जेब पर पड़ता रहेगा। सरकार ने तो ये पहले से ही सोच रखा था कि सिलिंडर की संख्या में इजाफा करेंगे और इसे लागू करने के लिए सरकार ने एक हाथ में लड्डू तो दे दिया लेकिन दुसरे हाथ में जलती अंगीठी रख दी। लड्डू तो खा के ख़तम हो जायेगा लेकिन ये अंगीठी हाथ जलाते ही रहेगी। मिला जुला के देखा जाये तो सरकार ने आम जनता को आफत ज्यादा दिया है और जनता के हाथो में राहत  के नाम पर एक झुनझुना मात्र ही थमाया है, तो ये झुनझुना थामिए और अब झुनझुना बजाते रहिये जब तक जी चाहे।



Wednesday, January 16, 2013

आखिर क्यूँ न अब सियासत की संधि वार्ताओं के दौर से बाहर निकला जाये

बचपन में मेरे घर के बगल में एक बालक रहता था , मेरी ही उम्र का था लेकिन हाथ पांव में मेरे से थोडा कमजोर था। हमेशा मुझे उंगली करते रहता था। मैं कुछ करू तो मेरे पिताजी से बोलने की धमकी देता था। कभी मेरी साईकल ले के भाग जाए तो कभी मेरा बल्ला ले के , क्रिकेट खेलने आये तो कहे की सिर्फ बैटिंग करने दे नहीं तो तेरे पापा से शिकायत कर के सूतवा दूंगा तुझे। 8-10 बार तो मैंने उसे कुछ नहीं कहा, लेकिन एक दिन मेरा दिमाग सटक गया और उस दिन वो मेरे हत्थे चढ़ गया। ढंग से खर्चा पानी दे दिया उस दिन मैंने उसे । खैर बाद में पापा ने मुझे भी ढंग से लपेटे में लिया लेकिन मुझे इसका कोई मन में मसोस नहीं रहा क्यूंकि एक फायदा भी हुआ। वो लौंडा उसके बाद से मेरे से 10 फीट की दुरी मेन्टेन करने लगा। मेरी उम्र 8-10 साल रही होगी, मैंने  तो मामले की गंभीरता समझते हुए मसला खुद ही हल कर दिया।

 लेकिन 65 साल की उम्र में हमारी सरकार न समझ पाई अभी तक। उम्मीद करता हूँ की सरकार का भी मानसिक विकास हो , और वो ये समझने में सक्षम हो की सिर्फ कूटनीतिक तरीका ही एकमात्र साधन नहीं है। समय आ गया की सियासत की संधि वार्ताओं के दौर से बाहर निकला जायेसमय आ गया है अपनी सामरिक शक्ति का इस्तेमाल करने का और पाकिस्तान को उसके करनी का जवाब उसी की भाषा में देने का। क्यूंकि एक सीमा तक ताकत पर तमीज की लगाम जरूरी है ,मगर इतनी भी नहीं की वह स्वयं अपने देशवासियों की नज़र में ही बुजदिली बन जाये। अब तो इस बात में कतई भी संदेह नहीं रह गया कि हमारा  मुकाबला एक आतंकी संगठन से है, जो सेना के वेश भर में है। सेना के कुछ उसूल होते हैं। एक जवान का दूसरे जवान के प्रति व्यवहार की मर्यादा भी निश्चित होती है। लेकिन पिछले दिनों तो पाकिस्तानी सेना का व्यव्हार न सिर्फ सेना के उसूलों से परे रहा है बल्कि ये तो बर्बरता का एक नृशंश उदहारण भी है। पाकिस्तानी सेना द्वारा किया गया ये घ्रिनीत कार्य दया के काबिल तो नहीं है। इन परिस्थितियों में भारत को एक बार फिर से अपने स्थिति पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है। आखिर कब तक हम पाकिस्तान की ऐसी हरकतों को बर्दाश्त करते रहेंगेअगर ऐसे हालत में लगता है की जंग लाजिमी है तो जंग ही सही।






Monday, January 7, 2013

ये कैसा राम राज्य जहा स्वयं राम अपनी इच्छा से नहीं रह सकते ।

  नारद जी से तो आप सभी भली भांति परिचित होंगे। अगर नहीं भी हैं तो मैं हूँ ना आपसे उनका परिचय कराने के लिए। नारद जी जो हैं वो हैं देवलोक के चलते फिरते समाचार संवाददाता। घूमते टहलते भारतवर्ष आये तो मुंबई शहर की ओर निकल गए। नारायण नारायण करते हुए चक्कर काट ही रहे थे की अचानक उनकी नज़र किसी जाने पहचाने व्यक्तित्व की और पड़ी, उन्होंने सोचा नहीं ये 'वो' नहीं हो सकते परन्तु जिज्ञासावश जब स्वयं को रोक न पाए और पहुँच गए नारायण नारायण करते हुए।
 "भगवन, आप और यहाँ इस तत्काल आरक्षण की कतार में क्या कर रहे हैं ?" नारद ने मिलते ही ये सवाल दागा।
लेकिन जिससे ये सवाल दागा गया था उसने इगनोर करते हुए अपने मोबाइल पर आये SMS को पढना ज्यादा ज़रूरी समझा और नारद की तरफ देखना भी मुनासिब नहीं समझा।
नारद ने सोचा की मेरी आँखे धोखा नहीं खा सकती , किन्तु ये मुझे पहचान क्यों नहीं रहे ? ये सोचते हुए उन्होंने कतार में खड़े व्यक्ति के चरण स्पर्श करने की कोशिश की लेकिन उसने फिर से उसे घुड़की दे दी और फिर आरक्षण क्लर्क को अपना फॉर्म दिया और अपने आरक्षण के टिकट का इंतज़ार करने लगे।
वोही दूर खड़े होकर स्वयं नारद भी उस व्यक्ति के फ्री होने का इंतज़ार करने लगे। जैसे ही वो व्यक्ति अपना टिकट लेकर वहां से निकला नारद जी उसके पीछे हो लिए। आगे चलते हुए व्यक्ति ने कुछ एकांत में पहुचने के बाद पीछे मुड़ कर देखा और नारद को आवाज़ लगा कर कहा "नारद , आ जाओ , मैं जनता हूँ की तुम मेरे पीछे पीछे चल रहे हो"
नारद जी खम्भे की ओट  से निकल कर बाहर आये और कहा "प्रभु , आपने मुझे पहचानने से इंकार क्यों किया ?"
सामने खड़े व्यक्ति ने नारद को कहा की आओ खोली में चलो वही बाते करेंगे , ऐसे सड़क पर आराम से बातें नहीं हो पाएंगी। ऐसा कह के दोनों साथ में खोली की तरफ बढ़ लिए।
खोली पहुंच कर व्यक्ति ने उनसे कहा की बैठो नारद, किन्तु नारद ने पहले व्यक्ति के चरण स्पर्श करते हुए पूछा, "भगवन श्री राम , आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, वहां रिजर्वेशन की कतार में आपने मुझे पहचानने से इंकार क्यों किया? क्या मुझसे कोई गलती हो गयी भगवन?"
राम ने उन्हें बैठाते हुए कहा की "देखो आज कल यहाँ मुंबई में माहौल हमारे रहने लायक नहीं रह गया है , अब तो यहाँ से निकल के वापस अपने अयोध्या की तरफ चले जाने में ही भलाई है। पहले तो ये राज ठाकरे कहता था की की ये उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को मुंबई से निकालो, उस समय तो किसी तरह छुप छुपा कर इस खोली में रह रहा था, लेकिन अब तो इसने एक नया शिगूफा फैला रखा है। आज कल ये जगह जगह कहता फिर रहा है कि ये बिहार और उत्तर प्रदेश वाले सारे अपराधी ही होते हैं। अब तुम ही बताओ मैंने तो इस संसार से रावण जैसे अपराधी का विनाश कर के दुनिया को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी।
लेकिन अब कलयुग में यही सुनना बाकि रह गया था कि हमारे प्रदेश और हमारे ससुराल (बिहार, सीताजी का मायका बिहार की मिथिला प्रान्त में है) प्रदेश के सारे लोग अपराधी होते हैं। अब इससे पहले की मेरे ऊपर कोई ऐसा इल्जाम लग जाये, मेरा यहाँ से वापस चला जाना ही बेहतर होगा।" इतना कहते हुए उन्होंने अन्दर के कमरे की तरफ आवाज़ लगते हुए कहा, "सीते, पिछले 17 दिनों से तत्काल टिकट के लिए स्टेशन जा रहा था , और आखिरकार कल शाम की दरभंगा के ट्रेन में जाने की कन्फर्म टिकट मिल गयी है , तुम काफी दिनों से मायके जाने की बात कह रही थी न, चलो चलते हैं। कुछ दिन ससुराल में व्यतीत करके अयोध्या वापस चलेंगे। अब यहाँ रहकर ये और नहीं सुन सकता की उत्तर प्रदेश और बिहार के सारे लोग अपराधी होते हैं।" इतना सुनने के बाद देवर्षि नारद भी जाने की आज्ञा ले कर वापस चले गए।