लेकिन 65 साल की उम्र में हमारी सरकार न समझ पाई अभी तक। उम्मीद करता हूँ की सरकार का भी मानसिक विकास हो , और वो ये समझने में सक्षम हो की सिर्फ कूटनीतिक तरीका ही एकमात्र साधन नहीं है। समय आ गया की सियासत की संधि वार्ताओं के दौर से बाहर निकला जाये। समय आ गया है अपनी सामरिक शक्ति का इस्तेमाल करने का और पाकिस्तान को उसके करनी का जवाब उसी की भाषा में देने का। क्यूंकि एक सीमा तक ताकत पर तमीज की लगाम जरूरी है ,मगर इतनी भी नहीं की वह स्वयं अपने देशवासियों की नज़र में ही बुजदिली बन जाये। अब तो इस बात में कतई भी संदेह नहीं रह गया कि हमारा मुकाबला एक आतंकी
संगठन से है, जो सेना के वेश भर में है। सेना के कुछ उसूल होते हैं। एक जवान का
दूसरे जवान के प्रति व्यवहार की मर्यादा भी निश्चित होती है। लेकिन पिछले दिनों तो पाकिस्तानी सेना का व्यव्हार न सिर्फ सेना के उसूलों से परे रहा है बल्कि ये तो बर्बरता का एक नृशंश उदहारण भी है
। पाकिस्तानी सेना द्वारा किया गया ये घ्रिनीत कार्य दया के काबिल तो नहीं है। इन परिस्थितियों में भारत को एक बार फिर से अपने स्थिति पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है। आखिर कब तक हम पाकिस्तान की ऐसी हरकतों को बर्दाश्त करते रहेंगे। अगर ऐसे हालत में लगता है की जंग लाजिमी है तो जंग ही सही।
i agree with ur views ..but our Politicians are not interested to reply Pakistanis back...we indians must teach a lesson like kargil war...
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