Sunday, January 20, 2013

इनकी माँ रोये तो ब्रेकिंग न्यूज़ बन गया, सारे देश की माएं भी तो रो रही हैं सालों से उनकी किसी को खबर भी नहीं...

एक परिवार है , पिछले 60-70 सालों से दबा के मज़े ले रहा है , और इतने मज़े लेने के बाद भी न जाने क्या क्या दुष्प्रचार किये जा रहा है। और इसके बाद भी जनता को विश्वास दिलाते आ रहा है की हमने देश के लिए ये खोया , वो खोया। सही में तुमने खोया? क्या बता रहे हो , अगर खोने का स्वाद इतना मज़ेदार होता है तो भाई साहब देश के वो अस्सी करोड़ लोग भी खोने तैयार हैं जिन्हें दो जून का भोजन भी नसीब नहीं होता। मजाक तक ठीक है लेकिन ऐसी दिनदहाड़े सफ़ेद झूठ हमसे बर्दाश्त नहीं होता रे भाई। आपसे हो जाता है तो कर लो साहब, लेकिन न तो हम बर्दाश्त करेंगे न ही इनका झूठ सुनेंगे।
एक खास राजनीतिक दल है, आज़ादी के 65 सालों में इन्होने 50 से ज्यादा सालों तक राज़ किया है इस देश पर। और उन सालों में एक खास परिवार ने 35 सालों के आस पास राज़ किया है , उसी परिवार का लड़का उस परिवार संचालित राजनीतिक दल का नया उपाध्यक्ष चुन लिया जाता है। गौरतलब है की उसकी अम्मा पिच्च्ले 15 सालों से उस खास दल की अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हैं, अब निर्वाचित हैं या जो भी हैं हम ज्यादा टिपण्णी कर नहीं सकते न ही करना चाहते। भाई तुम्हारी फॅमिली ओन्ड पोलिटिकल पार्टी है जो करना है करो लेकिन देश दुनिया को ये तो कह कह के गुमराह तो मत ही करो कि तुम लोगों ने देश के लिए ये किया, वो किया। किया तो तुमने अपने परिवार के अलावा किसी के पप्पा के लिए भी नहीं। इनके घर का कुत्ता भी इस देश के किसी साधारण व्यक्ति से ज्यादा सुविधाएं उठाता है, और ये मगरमच्छ वाले आंसू बहाते फिरते हैं की हमने ये खोया और वो खोया।
इस देश के जो अनपढ़ लोग हैं, या कम पढ़े लिखे लोग जो हैं वो तो अब तक इनको यही समझ के वोट देते आ रहे हैं कि ये महात्मा गाँधी के वंशज हैं। मेरे गाँव के भी जो वृद्ध लोग हैं या जो जवान भी है अधिकतम यही सोचते हैं की ये ही असली गाँधी हैं। कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन नतीजा वोही ढाक के तीन पात। शायद 1997 या 1998 का साल था जब मैं महात्मा गाँधी के पोते से मिला था, वो उस समय भुवनेश्वर से गाँधी जी की अश्थियाँ ले कर लौट रहे थे पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से। ट्रेन का सासाराम स्टेशन पर 4-5 मिनट का स्टॉप था, उस समय मैं वहां पर ही रहता था, तो मैं  भी स्टेशन चला गया उनसे मिलने। तकरीबन 3-4 मिनट की मुलाकात में ही उन्होंने बताया की उनका परिवार साऊथ अफ्रीका में रहता है और वंही पर खुश हैं क्यूंकि उनकी जगह तो यहाँ किसी और ही परिवार ने ले रखी है। उस समय राजनीतिक रूप से इतना परिपक्व नहीं था इसलिए उनके कहने का मतलब नहीं समझ पाया था, लेकिन आज जब उनकी बातें याद आती हैं तो समझ में आता है की उनकी व्यथा गलत भी नहीं थी।
एक और बात कही भाई साहब ने आंसू बहाते हुए और चिट्टा पढ़ते हुए। गौर कीजियेगा बिना चिट्टा के न तो ये कुछ बोल पाते हैं न ही इनकी अम्मा जी, फिर भी सबसे बड़े वाले हिंदुस्तानी यही हैं। ठेका इनके और इनके परिवार के नाम ही हैं भारतीयता का। इनके परिवार से बड़ा देशभक्त तो शायद ना मंगल पाण्डेय रहे होंगे न ही रानी लक्ष्मी बाई और नहीं तात्या टोपे जी। इनके परिवार के आगे तो भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, राजगुरु, सुखदेव का भी नाम नहीं आने देते इनके पारिवारिक दल के कार्यकर्ता। हाँ तो मैं बता रहा था की इन साहेबान ने कहा क्या, भाई साहब व्याख्यान दे रहे थे की इन्होने जिसके साथ बैडमिंटन खेलना सीखा उन्हीने इनके सर से सब छीन लिया। सही में छीन लिया या दे दिया। भाई साहब इसका फैसला अब आप लोग ही कर लो की मज़े कौन ले रहा है और कौन सर से सब कुछ छीने जाने के कारण विवशता की जिंदगी जीने को विवश है।
एक बात तो बताना भूल ही गया की ये जो भाई साहब अगला प्रधान मंत्री बनने की ख्वाइश देख रहे हैं और खुद को युवा युवा करते नहीं थकते, इनकी उम्र इस देश के सबसे उम्रदराज़ युवा से तकरीबन 12 साल ही ज्यादा है। अब सिर्फ अगर शादी न हो तो बंदा युवा थोड़े ही रहता है। भाई साहब उम्र तुम्हारी खुद तुम्हारा साथ छोड़ते जा रही है और तुम खुद को युवा युवा करते जा रहे हो। हमारे तरफ तो अगर इस उम्र में किसी की शादी न हो तो लोग पता नहीं किस किस चिकित्सीय उपचार की सलाह दे देते हैं, लेकिन आप स्वयंभू युवराज हैं मजे लीजिये ज़िन्दगी के। और इतने ही युवा हो तो भाई साहब युवाओ के ऊपर हो रहे अत्याचार के विरोध में भी 2-4 शब्द कह देते। देश के युवाओं को सच में थोडा अच्छा लगा होता। लेकिन आपने कुछ नहीं बोला तो ज़रूर किसी खास काम में ही व्यस्त रहे होंगे , अब आपके प्रशंशक तो यही बोलते फिर रहे हैं। खैर आप मजे लेते रहिये वैसे भी आपका परिवार यही करते आ रहा है पीछे 70 सालों से। हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं, इससे ज्यादा नहीं बोल सकते।
चलो भाई इनकी अम्मा जी को रो लेने देते हैं, देश की बेटी के भयावह बलात्कार पर तो इन्होने आंसू बहाए नहीं, जब देश के दो बहादुर सैनिकों का सर पाकिस्तानी बड़ी ही बेदर्दी से काट के ले गए तब भी इनके बहते आंसू दिखे नहीं , जब असाम में हिंसा हो रही थी तब भी इनके रोने का खबर तो अखबारों की सुर्खियाँ नहीं बना, लेकिन अब रो रही हैं तो रो लें।

1 comment:

  1. http://aadhasachonline.blogspot.in/2013/01/blog-post_20.html#comment-form

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