नारद जी से तो आप सभी भली भांति परिचित होंगे। अगर नहीं भी हैं तो मैं हूँ ना आपसे उनका परिचय कराने के लिए। नारद जी जो हैं वो हैं देवलोक के चलते फिरते समाचार संवाददाता। घूमते टहलते भारतवर्ष आये तो मुंबई शहर की ओर निकल गए। नारायण नारायण करते हुए चक्कर काट ही रहे थे की अचानक उनकी नज़र किसी जाने पहचाने व्यक्तित्व की और पड़ी, उन्होंने सोचा नहीं ये 'वो' नहीं हो सकते परन्तु जिज्ञासावश जब स्वयं को रोक न पाए और पहुँच गए नारायण नारायण करते हुए।
"भगवन, आप और यहाँ इस तत्काल आरक्षण की कतार में क्या कर रहे हैं ?" नारद ने मिलते ही ये सवाल दागा।
लेकिन जिससे ये सवाल दागा गया था उसने इगनोर करते हुए अपने मोबाइल पर आये SMS को पढना ज्यादा ज़रूरी समझा और नारद की तरफ देखना भी मुनासिब नहीं समझा।
नारद ने सोचा की मेरी आँखे धोखा नहीं खा सकती , किन्तु ये मुझे पहचान क्यों नहीं रहे ? ये सोचते हुए उन्होंने कतार में खड़े व्यक्ति के चरण स्पर्श करने की कोशिश की लेकिन उसने फिर से उसे घुड़की दे दी और फिर आरक्षण क्लर्क को अपना फॉर्म दिया और अपने आरक्षण के टिकट का इंतज़ार करने लगे।
वोही दूर खड़े होकर स्वयं नारद भी उस व्यक्ति के फ्री होने का इंतज़ार करने लगे। जैसे ही वो व्यक्ति अपना टिकट लेकर वहां से निकला नारद जी उसके पीछे हो लिए। आगे चलते हुए व्यक्ति ने कुछ एकांत में पहुचने के बाद पीछे मुड़ कर देखा और नारद को आवाज़ लगा कर कहा "नारद , आ जाओ , मैं जनता हूँ की तुम मेरे पीछे पीछे चल रहे हो"
नारद जी खम्भे की ओट से निकल कर बाहर आये और कहा "प्रभु , आपने मुझे पहचानने से इंकार क्यों किया ?"
सामने खड़े व्यक्ति ने नारद को कहा की आओ खोली में चलो वही बाते करेंगे , ऐसे सड़क पर आराम से बातें नहीं हो पाएंगी। ऐसा कह के दोनों साथ में खोली की तरफ बढ़ लिए।
खोली पहुंच कर व्यक्ति ने उनसे कहा की बैठो नारद, किन्तु नारद ने पहले व्यक्ति के चरण स्पर्श करते हुए पूछा, "भगवन श्री राम , आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, वहां रिजर्वेशन की कतार में आपने मुझे पहचानने से इंकार क्यों किया? क्या मुझसे कोई गलती हो गयी भगवन?"
राम ने उन्हें बैठाते हुए कहा की "देखो आज कल यहाँ मुंबई में माहौल हमारे रहने लायक नहीं रह गया है , अब तो यहाँ से निकल के वापस अपने अयोध्या की तरफ चले जाने में ही भलाई है। पहले तो ये राज ठाकरे कहता था की की ये उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को मुंबई से निकालो, उस समय तो किसी तरह छुप छुपा कर इस खोली में रह रहा था, लेकिन अब तो इसने एक नया शिगूफा फैला रखा है। आज कल ये जगह जगह कहता फिर रहा है कि ये बिहार और उत्तर प्रदेश वाले सारे अपराधी ही होते हैं। अब तुम ही बताओ मैंने तो इस संसार से रावण जैसे अपराधी का विनाश कर के दुनिया को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी।
लेकिन अब कलयुग में यही सुनना बाकि रह गया था कि हमारे प्रदेश और हमारे ससुराल (बिहार, सीताजी का मायका बिहार की मिथिला प्रान्त में है) प्रदेश के सारे लोग अपराधी होते हैं। अब इससे पहले की मेरे ऊपर कोई ऐसा इल्जाम लग जाये, मेरा यहाँ से वापस चला जाना ही बेहतर होगा।" इतना कहते हुए उन्होंने अन्दर के कमरे की तरफ आवाज़ लगते हुए कहा, "सीते, पिछले 17 दिनों से तत्काल टिकट के लिए स्टेशन जा रहा था , और आखिरकार कल शाम की दरभंगा के ट्रेन में जाने की कन्फर्म टिकट मिल गयी है , तुम काफी दिनों से मायके जाने की बात कह रही थी न, चलो चलते हैं। कुछ दिन ससुराल में व्यतीत करके अयोध्या वापस चलेंगे। अब यहाँ रहकर ये और नहीं सुन सकता की उत्तर प्रदेश और बिहार के सारे लोग अपराधी होते हैं।" इतना सुनने के बाद देवर्षि नारद भी जाने की आज्ञा ले कर वापस चले गए।
"भगवन, आप और यहाँ इस तत्काल आरक्षण की कतार में क्या कर रहे हैं ?" नारद ने मिलते ही ये सवाल दागा।
लेकिन जिससे ये सवाल दागा गया था उसने इगनोर करते हुए अपने मोबाइल पर आये SMS को पढना ज्यादा ज़रूरी समझा और नारद की तरफ देखना भी मुनासिब नहीं समझा।
नारद ने सोचा की मेरी आँखे धोखा नहीं खा सकती , किन्तु ये मुझे पहचान क्यों नहीं रहे ? ये सोचते हुए उन्होंने कतार में खड़े व्यक्ति के चरण स्पर्श करने की कोशिश की लेकिन उसने फिर से उसे घुड़की दे दी और फिर आरक्षण क्लर्क को अपना फॉर्म दिया और अपने आरक्षण के टिकट का इंतज़ार करने लगे।

नारद जी खम्भे की ओट से निकल कर बाहर आये और कहा "प्रभु , आपने मुझे पहचानने से इंकार क्यों किया ?"
सामने खड़े व्यक्ति ने नारद को कहा की आओ खोली में चलो वही बाते करेंगे , ऐसे सड़क पर आराम से बातें नहीं हो पाएंगी। ऐसा कह के दोनों साथ में खोली की तरफ बढ़ लिए।
खोली पहुंच कर व्यक्ति ने उनसे कहा की बैठो नारद, किन्तु नारद ने पहले व्यक्ति के चरण स्पर्श करते हुए पूछा, "भगवन श्री राम , आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, वहां रिजर्वेशन की कतार में आपने मुझे पहचानने से इंकार क्यों किया? क्या मुझसे कोई गलती हो गयी भगवन?"
राम ने उन्हें बैठाते हुए कहा की "देखो आज कल यहाँ मुंबई में माहौल हमारे रहने लायक नहीं रह गया है , अब तो यहाँ से निकल के वापस अपने अयोध्या की तरफ चले जाने में ही भलाई है। पहले तो ये राज ठाकरे कहता था की की ये उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को मुंबई से निकालो, उस समय तो किसी तरह छुप छुपा कर इस खोली में रह रहा था, लेकिन अब तो इसने एक नया शिगूफा फैला रखा है। आज कल ये जगह जगह कहता फिर रहा है कि ये बिहार और उत्तर प्रदेश वाले सारे अपराधी ही होते हैं। अब तुम ही बताओ मैंने तो इस संसार से रावण जैसे अपराधी का विनाश कर के दुनिया को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी।
लेकिन अब कलयुग में यही सुनना बाकि रह गया था कि हमारे प्रदेश और हमारे ससुराल (बिहार, सीताजी का मायका बिहार की मिथिला प्रान्त में है) प्रदेश के सारे लोग अपराधी होते हैं। अब इससे पहले की मेरे ऊपर कोई ऐसा इल्जाम लग जाये, मेरा यहाँ से वापस चला जाना ही बेहतर होगा।" इतना कहते हुए उन्होंने अन्दर के कमरे की तरफ आवाज़ लगते हुए कहा, "सीते, पिछले 17 दिनों से तत्काल टिकट के लिए स्टेशन जा रहा था , और आखिरकार कल शाम की दरभंगा के ट्रेन में जाने की कन्फर्म टिकट मिल गयी है , तुम काफी दिनों से मायके जाने की बात कह रही थी न, चलो चलते हैं। कुछ दिन ससुराल में व्यतीत करके अयोध्या वापस चलेंगे। अब यहाँ रहकर ये और नहीं सुन सकता की उत्तर प्रदेश और बिहार के सारे लोग अपराधी होते हैं।" इतना सुनने के बाद देवर्षि नारद भी जाने की आज्ञा ले कर वापस चले गए।
very nice bhai... :)
ReplyDeleteNice one Dude.....Superb...:)
ReplyDeleteWaah bhai waah ......
ReplyDeletesahi sahi...!!
ReplyDeleteaccha hai bhai..sala raj thakrey pagla gaya hai
ReplyDeleteaise logo ko ignore maro,aur kuch kare to moohtod jabab do
ReplyDeletejai shree ram
jabaardaast sir g ,,, 1 copy Raj Thakrey ko bhi send kar do sir ,,
ReplyDeletegood one... nice...
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