Saturday, October 5, 2013

गुजरात का कुपोषण : मीडिया का दुष्प्रचार और सच्चाई

CAG ने जब से देश भर के विभिन्न राज्यो मे व्याप्त कुपोषण पर अपनी रिपोर्ट जारी की है, देश के सारे खबरिया चैनलों ने गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के विकास पुरुष की छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से, इस रिपोर्ट के अंश मात्र को औज़ार के रूप मे प्रयोग किया है। जब से CAG की रिपोर्ट आई है लगभग सभी चैनेलों पर एक ही खबर चलायी जा रही है की गुजरात मे हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है। यह सिर्फ CAG की रिपोर्ट का एक पहलू है जिसे सनसनी खबर बना कर मीडिया ने 2 दिन से अपनी TRP बनाए रखी है। उसी CAG की रिपोर्ट को अगर पूरा पढ़ा जाए तो उसके अनुसार 2006-07 मे ये दर 71% पर थी जो 2011 मे घट कर 39% पर आ चुकी है, यानि की इन 4 सालों के भीतर राज्य सरकार ने कुपोषण पर काबू पाने के जो उपाय किए उनके परिणाम काफी सकारात्मक रहे हैं और सरकार ने तेजी से कुपोषण की दर मे 32% की कमी लाने मे सफलता पायी है। इतनी तेजी से कुपोषण को नियंत्रण करने मे गुजरात की नरेंद्र मोदी जी की सरकार देश मे अव्वल स्थान पर है और अभी भी कुपोषण की दर देश के औसत 41% से कम है।
अगर देश के और राज्यों के कुपोषण का अध्ययन किया जाए तो आंध्र प्रदेश मे ये 49% , बिहार मे 82% हरियाणा मे 43%, झारखंड ,उत्तर प्रदेश और कर्नाटक मे 40%, केरल मे 37% , राजस्थान मे 43%, दिल्ली और ओड़ीशा मे 50% है। परंतु अभी तक किसी भी खबरिया चैनल ने गुजरात के अलावा किसी और प्रदेश का जिक्र नहीं किया है और पूरी उम्मीद है की करेगा भी नहीं। क्यूंकी मीडिया को TRP चाहिए और वो अपेक्षित TRP सिर्फ श्री नरेंद्र मोदी जी के नाम से ही मीडिया को मिल सकता है।
 रही बात कांग्रेस के नेताओ की तो ये वही कांग्रेस है जो 2जी, CWG और कोयला आवंटन घोटालो पर CAG की रिपोर्ट को सिरे से खारिज करती है परंतु कुपोषण के मामले पर इस रिपोर्ट के अंशों को तोड़ मरोड़ कर ज़ोर शोर से दुष्प्रचार करने मे लगी है। उम्मीद है कांग्रेसी राज्य जो अभी भी कुपोषण के राष्ट्रीय स्तर से काफी ऊपर हैं वो अपने राज्यों मे इसे सुधारने की प्रकारिया करेंगे और गुजरात के विकास से सीख ले कर इसे तेजी से नीचे लाने की सकारात्मक कोशिश करेंगे।और बिहार के मुख्यमंत्री श्री नितीश कुमार से यही आग्रह करूंगा की पहले बिहार मे 82% के कुपोषण को 60% तक तो ले कर आए बिहार नरेंद्र मोदी जी पर हमला करे। श्री नितीश कुमार जो हर बात मे व्यंग्य के लिए देशी कहावतों का काफी प्रयोग करते हैं, उनके लिए एक बात और कहना चाहूँगा- "सूप हसे चलनी पर जिसमे खुद 72 छेद"




Monday, July 22, 2013

खाद्य सुरक्षा के बहाने कॉंग्रेस की वोट सुरक्षा की साजिश

केंद्र की यूपीए सरकार ने आनन फानन मे अध्यादेश लाकर खाद्य सुरक्षा गारंटी की योजना देश के सामने रखी है। सरकार की मंशा  है की इस अध्यादेश को मॉनसून सत्र मे संसद की दोनों सभाओ से पास करा कर कानून की शक्ल दे दी जाएगी। सरकार के मंत्रियों का दावा है कि इस अध्यादेश के कानून बन जाने के बाद देश मे 82 करोड़ जनता इससे लाभान्वित होगी और उन्हे कम दामों मे सरकार द्वारा अन्न प्रदान किया जाएगा। देखने सुनने मे ये योजना काफी लोक लुभावन लगती है किन्तु इस अध्यादेश के लाने के समयकाल से सरकार की मंशा और योजना साफ नज़र आ रही है।
याद होगा कि 2004 मे यूपीए प्रथम के शासन काल मे भी सरकार के तरफ से खाद्य सुरक्षा कानून की बात हुई थी परंतु फिर इसे ठंडे बस्ते मे डाल दिया गया और अब फिर सरकार ने भोजन सुरक्षा गारंटी का अध्यादेश लाकर स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले लोक सभा चुनावों मे यही भोजन की सुरक्षा की गारंटी का कानून ही इसके लिए वोट की सुरक्षा का ब्रह्मास्त्र बनेगा। सरकार को अंदेशा है की इस कानून का प्रचार कर के ही सरकार आने वाले चुनावों मे गरीब भारतीयों के मन मे एक आस जागा कर पुनः सरकार बनाने मे सफल हो जाएगी, परंतु सरकार के पिछले कई सारे योजनाओ मे हुये भ्रस्टाचार और व्याप्त खामियों के उजागर होने से इस योजना के क्रियान्वयन की शंकाए अभी से लोगो के दिमाग मे घर कर चुकी हैं।
पिछले 9 वर्षों के यूपीए सरकार के कार्यकाल मे सरकार ने ऐसा कोई काम देश की जनता के लिए किया ही नहीं जिसके दम पर वो आने वाले चुनाव मे जनता के बीच जा कर अपने लिए एक और कार्यकाल की मांग करे, इसके उलट सरकार विभिन्न आंतरिक, आर्थिक, विदेशी एवं सुरक्षा के मोर्चो पर बुरी तरह नाकाम सिद्ध हुई है। सरकार के मंत्रियो और मंत्रियो के परिजनो के ऊपर भ्रस्टाचार के अनगिनत मामले उजागर हुये हैं। यहा तक कि कोयला घोटाले की आग ने तो साफ छवि माने जाने वाले प्रधानमंत्री के कार्यालय तक अपनी लपट पहुचा दी थी और विपक्ष ने विभिन्न मौको पर इन घोटालों के कारण सरकार को घेरने मे सफलता पायी है। भ्रस्टाचार के आरोपों से चौतरफा घिर चुकी सरकार के पास भोजन सुरक्षा की गारंटी के अलावा और कोई अस्त्र ही नहीं है जिसे ले कर वो चुनाव मैदान मे उतरेगी।
आज़ादी के बाद 55 सालों मे देश पर राज कर चुकी कांग्रेस ने ऐसा कोई कानून क्यू नहीं बनाया जिससे गरीबों को सस्ते दर पर अनाज मिल सके? अब तक तो सिर्फ  "गांधी छद्मनाम" के बल पर चुनाव जीतती आ रही सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी को ये पता लग चुका है कि जनता को अब और इस नाम के बल पर छलना मुश्किल है। इसलिए भोले भले गरीबों को छलने का नया अस्त्र है ये भोजन सुरक्षा कि गारंटी । अगर सरकार को गरीबों के भोजन की इतनी ही चिंता है , तो इस चिंता को सामने आने मे 9 साल क्यू लग गए?  जिस जल्दबाज़ी मे कैबिनेट ने मॉनसून सत्र से पहले ही अध्यादेश जारी कर दिया , ऐसी सक्रियता तब कहा गई थी जब 2011 मे सूप्रीम कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया था कि खाद्य निगम के गोदामों मे सड़ रहे अनाज को मुफ्त मे गरीबों के बीच बाँट दिया जाये ? सरकार के मंत्रियों ने तब उस आदेश का पालन नहीं किया और उसकी धज्जियां उड़ा दी थी। सच्चाई तो ये है कि कई भाजपा शासित राज्य अभी भी अपने स्तर पर गरीबों को सस्ते मे अनाज उपलब्ध करने कि योजनाए चला रहे हैं और बखूबी सफलतापूर्वक इसका संचालन कर रहे हैं। परंतु कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को आने वाले चुनाव प्रचार मे जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिए ऐसे योजनाओं कि आवश्यकता है और उसकी मंशा इन्ही लोकलुभावन योजनाओ द्वारा सरकार बना कर आने वाले समय मे लूट खसोट मचाने की है। लेकिन जनता को भ्रस्टाचार की पूरक बन चुकी कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार को आने वाले चुनावों मे करारा जवाब देना होगा और ऐसे लोकलुभावन योजनाओ के जाल से बच कर एक स्वच्छ एवं प्रगतिशील छवि की सरकार चुनने मे सहयोग देना होगा। 

Friday, June 7, 2013

ये कैसा भारत निर्माण ....

केंद्र सरकार की सूचना एवं जनसम्पर्क मंत्रालय द्वारा हाल के दिनों मे "भारत निर्माण" के नाम से सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च कर के कैम्पेन चलाया जा रहा है। इसके द्वरा पिछले 9 साल के यूपीए सरकार की उपलब्धियों को भारत निर्माण का नाम दे कर जनता को सरकार द्वारा किए गए विभिन्न योजनाओं का लेखा जोखा दिये जाने का प्रयास किया जा रहा है। सैकड़ों करोड़ रुपयों का ये कॅम्पेन हमारे आपके जैसे करदाताओं द्वारा चुकाए गए विभिन्न प्रकार के करों के पैसों से ही प्रायोजित है। सरकार द्वारा इस मीडिया कॅम्पेन मे प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक के साथ साथ रेडियो का भी भरपूर उपयोग किया जा रहा है। भारत निर्माण के इन बैनरों द्वारा सरकार अर्द्ध सत्य का भरपूर वर्णन किया जा रहा है।
इसी तरह के एक बैनर द्वारा ये प्रचारित किया जा रहा है कि पिछले 9 सालों के दौरान मोबाईल फोन ग्राहकों कि संख्या 16 करोड़ से बढ़ कर 86 करोड़ से भी ज्यादा हो गई है, लेकिन ये नहीं बता रहे कि इन 9 सालों मे 2जी घोटाले के द्वारा देश के खजाने को कितने लाख करोड़ का नुकसान हुआ है। वैसे पिछले दिनो जब चीनी सेना ने हमारे देश के हिस्से मे आ कर बंकर बनाये थे तब उन्होने सीमा के भीतर 5-10 किलोमीटर तक सड़क का निर्माण भी कर लिया था , सरकार के शब्दों मे शायद इसे भी भारत निर्माण कहा जा सकता है।
पिछले 9 सालों के कार्यकाल मे इस सरकार और इसके मंत्रियों ने धरती से ले कर आसमान तक, जहा भी संभावना मिली है, भरपूर घोटाले किए हैं। और तो और घोटालों की फेहरिस्त मे आने वाले जाने कितने मंत्रियों को अपने पद से इस्तीफा तक देने की नौबत आ गई है। फिर भी सरकार और इसके मंत्रियों मे न आत्मसम्मान हैं और न ही शर्म, वो देश के भोली भाली जनता को अभी भी भारत निर्माण के झूठे प्रचार का झांसा दे कर फिर से सत्ता हासिल करना चाहती है।
वैसे कुछ और तथ्य हैं , जिनको लिखना मैं अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी समझता हूँ। 2004 मे जब यूपीए की सरकार बनी थी तब और अब के आंकड़ों को अगर देखा जाए तो ये सरकार हर जगह ही नाकाम साबित हुई है। 2004 से अब तक रुपये के मूल्य मे 30 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है। 2004 मे 1 डॉलर 36 रुपये के आस पास था जो आज कल 55 रुपये से ज्यादा हो चुका है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार मे रुपया लगातार निम्नतम स्तर की ओर बढ़ रहा है और सरकार भारत निर्माण के प्रचार मे ही मस्त है। रुपये को मजबूत करने के उपाय कितने किया जा रहे हैं और वे कारगर सिद्ध हो भी रहे हैं या नहीं , इसके बारे मे कोई जानकारी उपलब्द्ध नहीं है। मुद्रास्फीति की दर जिसे हम सामान्य भाषा मे महंगाई की दर कहते हैं, उसमे भी जबर्दस्त उछाल है। 2004 मे ये दर 3.8% थी जो की बढ़ते बढ़ते आज का समय मे 8.5% के ऊपर चल रही है। यानि की रोज़मर्रा की जरूरत का सारा समान महँगा होता जा रहा है और सरकार को इसमे भारत निर्माण दिख रहा है।देश का सकल घरेलु उत्पाद जिसे आम भाषा में GDP कहते हैं , गिरते गिरते 5 % के भी नीचे पहुच गया , सरकार को भारत निर्माण दिख रहा है। जब अटल जी ने 1998 में देश की कमान संभाली थी तब विकास की दर 4% के आस पास चल रही थी , उनके कार्यकाल मे अथक प्रयासों से उन्होने इसे 8 % के ऊपर पहुचाया था। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को विरासत मे 8% की विकास दर मिली जिसे इन और इनके सहयोगियों ने पुनः 4 % के पास ला छोड़ा है। जाने ये कैसा भारत निर्माण है और इसे देखने के लिए चश्मा कहा से लाऊ मैं।
भ्रष्टाचार अपने चरम पर है, सरकार के मंत्री और उनके परिजन पिछले 9 सालों मे लखपति से अरबपति बन गए हैं, घोटालों के बोझ से सरकारी खजाना दम तोड़ने की कगार पर है। देश के साथ साथ सरकार की विदेश नीति भी किसी काम की नहीं है। चाइना, पाकिस्तान और यहा तक की बांग्लादेश जैसे छोटे और नाकाम देश भी धौंस दिखाते हैं , हमारे मंत्री रात्री भोज और विदेश यात्राओं मे व्यसत दिखते हैं। दुनिया के किसी भी कोने मे शायद ही कभी कोई ऐसा प्रधानमंत्री हुआ होगा , जिसके अंदर न नेतृत्व करने की क्षमता है , न ही दूरदर्शिता और न ही स्वायक्तता, फिर भी 9 सालों से देश के प्रधानमंत्री के पद पर बैठा हुआ है और लगातार देश गर्त की ओर अग्रसर है। सरकार भले ही इसे भारत निर्माण की संज्ञा दे कर खुश हो ले , देश वासियों के लिए तो भारत बर्बाद ही हुआ है।

Tuesday, April 9, 2013

नरेंद्र मोदी - एक सशक्त एवं विकसित भारत की दिशा देने वाले राजनेता

पिछले दो दिनो से विभिन्न  समाचार चेनेल्स पर जिस तरह मोदी छाए हुये हैं, उसे देख कर साफ अनुमान लगाया जा सकता है की इन चैनेल्स को जितनी TRP पिछले दो दिनों मे मिली है उतनी तो शायद पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भी नहीं मिली होगी। एक काफी पुरानी कहावत है, "आप या तो मुझे पसंद करेंगे ,या फिर मुझे नापसंद करेंगे, लेकिन मुझे नज़र अंदाज़ नहीं कर पाएंगे।" ये नरेंद्र मोदी पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। नरेंद्र मोदी की भाषण की कला मे एक और बात जो काफी प्रभावित करती है, वो ये है कि न वो केवल अपने समर्थकों को प्यार करते हैं, बल्कि अपने आलोचको भी उतना ही पसंद करते हैं।और ये बात उनके भाषणो मे अक्सर ही जाहीर होती रही है।
मोदी और बाकी राजनेताओं मे एक एक आधारभूत अन्तर है,और यही अन्तर उन्हे बाकी लोगो से अलग करता है, वो ये है कि मोदी गुजरात मे अपने द्वारा पिछले 10 सालों में किए गए कार्यों  और उनके सफल अनुभवों के आधार पर बोलते हैं। जहां काँग्रेस के युवराज अपने खुद की सरकार की विफलताओं की बात ऐसे करते हैं जैसे उनका उन विफलताओं से कुछ लेना देना ही नही, मोदी खुल कर गुजरात मे सफल हुये उनके प्रयासों और प्रयोगों की बात करते हैं।इसके साथ ही साथ वो हमेशा नए सुझावों और अपनी खुद की कमियो को उजागर करने के लिए लोगो को आमंत्रित करते हैं।यही बात उन्हे बाकी के नेताओं से अलग करती है। उनके भाषण की कला मे व्यंग्य, उपहास और हंसी मज़ाक तो होता ही है, साथ ही साथ वो एक बेहतर और समृद्ध भारत के निर्माण के लिए एक दिशा निर्देश भी देते हैं। जबकि कांग्रेस के युवराज सिर्फ "हम ये करेंगे और हम ये कर सकते हैं" तक ही सीमित हैं। देश मे पिछले 65 साल मे कांग्रेस के लगभग 50 से ज्यादा सालों तक देश पर कांग्रेस ने राज किया और उस मे भी गांधी परिवार का योगदान सबसे ज्यादा था, उन सालों मे इनके द्वारा किए गए गलतियों को सुधारने को ही ये 'रेफ़ोर्म्स' कहते हैं, इसी बात से इनकी मानसिक और बौद्धिक स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। खैर आज इस ब्लॉग मे मैं मोदी जी की ही बात करूंगा इसलिए इस विषय मे ज्यादा नहीं जाते हैं।मोदी अपने 10 से ज्यादा सालों के मुख्यमंत्री के सफर मे किए गए अपने कार्यों का पूरा ब्यौरा अपने भाषणो के द्वारा देते रहे हैं।
फिक्की की महिला विंग मे दिये गए अपने भाषण मे मोदी जी ने महिला सशक्तिकरण की खूब वकालत की। उन्होने साफ कहा की एक आधुनिक हिंदुस्तान की परिकल्पना बिना नारी सशक्तिकरण के नहीं की जा सकती है। उन्होने कन्या भ्रूण हत्या और इससे पैदा होने वाले लिंग अनुपात मे अंतर की भी बात की और कहा कि ये बहुत ही संवेदनशील विषय है और जल्द ही इस पर अगर कार्यवाही नहीं कि गई तो ये भयानक अवस्था मे पहुच सकता है।उन्होने गुजरात कि महिलाओ द्वारा शुरू किए गए लिज्जत पापड़ की सफलता की दास्तान बयान करते हुये बताया कि कैसे एक छोटे से महिलाओ के समूह ने इतना सशक्त ब्रांड बाज़ार को दिया। अमूल की सफलता मे भी महिलाओं के योगदान कि उन्होने भरपूर सराहना की। बातों बातों मे ही उन्होने अहमदाबाद के जस्सुबेन का पिज्जा के सफलता की दास्तान भी बताई कि कैसे एक छोटे से प्रयास से आज ये पिज्जा आउटलेट बड़े बड़े विदेशी पिज्जा आउटलेट को कड़ी टक्कर दे रहा है। प्रैस और मीडिया पर चुटकी लेते हुये उन्होने कहा कि अब मीडिया वाले जा कर देखेंगे कि कि मोदी सच कह रहा है या ये भी 'कलावती' की ही तरह एक मनगढ़ंत कहानी है। मोदी अपने भाषणों मे अक्सर ही अपने विरोधियों और मीडिया की चुटकी लेते नज़र आते हैं।भाषण के अंत मे उन्होने ये भी कहा की अभी तक तो वो कांग्रेस द्वारा किए गए गड्ढों को भरने का ही काम कर रहे हैं और आगे अभी बहुत काम करना बाकी है। इससे उनके विकास के कार्यों को करने की लालसा साफ प्रतीत होती है।
 नेटवर्क 18 द्वारा संचालित थिंक इंडिया कैम्पेन मे मोदी जी ने "Less Government and more Governance" मुद्दे पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होने कहा की वो हमेशा से ही एक संतुलित सरकार के पक्षधर हैं। उन्होने कहा कि सुशाशन से ही सुराज्य की प्राप्ति की जा सकती है।उन्होने बताया कि हमारे देश मे सरकार मे आना ही पार्टियों और नेताओं कि सबसे बड़ी प्राथमिकता होती है, जिससे सरकार कि कार्यक्षमता पर काफी असर पड़ता है। वो बोले कि आज जनता मे सरकार के प्रति अविश्वास कि भावना प्रकट हो रही है क्योंकि केंद्र सरकार ने विकास के कार्यों पर ब्रेक सा लगा रखा है, इस बात पर चिंता प्रकट करते हुये वे बोले कि ये स्थिति बहुत ही भयवाह है और जनता मे सरकार के प्रति विश्वास पुनः पैदा करना पड़ेगा। 'मेरा क्या' और 'मुझे क्या' कि व्याख्या करते हुये वे बोले कि कैसे इस मानसिकता से छुटकारा पाये बिना विकसित और संतुलित भारत कि परिकल्पना करना मुश्किल है। लेकिन सरकारी तंत्र मे जनता कि भागीदारी कि आवश्यकता गिनाते हुये उन्होने ये भी बताया कि जनता को भी सरकार को अपने तरफ से सहयोग देना होगा तभी विकास की योजनाओ को अमल मे लाया जा सकता है। विभिन्न उदाहरण के द्वारा उन्होने बताया कि कैसे जनता सरकारी वस्तुओं के उपयोग और अपने निजी वस्तुओं के उपयोग मे भेद भाव करती है और सरकारी संपति को नुकसान पहुंचाती है, जो अंततः उसी का खुद का नुकसान है।उन्होने इस मानसिकता से भी ऊपर उठने की वकालत की। सरकारी योजनाओ मे तकनीक की भरपूर इस्तेमाल की वकालत करने वाले मोदी जी ने बताया कि कैसे तकनीक के बेहतर इस्तेमाल और बेहतर प्रबंधन से गुजरात मे उन्होने विकास का एक सफल मोडल खड़ा किया है। मोदी जी ने सत्ता के विकेन्द्रीकरण की भी बात की और बताया कि कैसे इसके द्वारा विकास कि नई ऊंचाइयों को पाया जा सकता है। विकास की राह मे केंद्र और राज्यों के बीच के संबद्धों की बात भी उन्होने की और बताया की कैसे कांग्रेस की नेतृत्व की केंद्र सरकार, गैर कांग्रेसी राज्य सरकारों को परेशान करने मे आगे रहती है। वे बोले कि केंद्र सरकार को सिर्फ इसी कारण से, कि राज्यों मे उसके पार्टी की सरकार नहीं है, राज्यों को दिये जाने वाले सहयोग मे भेदभाव नहीं करना चाहिए।
मोदी जी हमेशा ही भारत के युवाओं की बात करते हैं। युवशक्ति और इसका देश के विकास मे योगदान की पैरवी करने वाले मोदी जी ने कहा की आज देश मे 65 % लोग युवा हैं और हमे इन युवाओं के दम पर ही देश को एक विकसित राष्ट्र बनाना है। बिना युवाओं के सहयोग के इसकी परिकल्पना करना संभव नहीं है। उन्होने युवाओं के कार्य कौशलता को बढ़ाने के लिए ज़ोर दिया और इसके लिए सरकार को ज़ोर देना चाइए इसकी भी पुरजोर वकालत की। ऊर्जा की दिक्कतों के लिए भी कैसे वैकल्पिक और सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है, इसके बार मे भी उन्होने विस्तार से बताया। साथ ही साथ पर्यटन क्षेत्र का भी देश और प्रदेश के विकास मे योगदान की उन्होने बात की। अपने विभिन्न भाषणों मे वे हमेशा ही देश के विकास के सम्पूर्ण पहलुओं का विश्लेषण करते रहे हैं और अपने भाषणो के द्वारा दूरदृश्यता का भी परिचय उन्होने हमेशा ही दिया है। उनके अंदर देश को नेतृत्व देने की योग्यता है और ये उन्होने गुजरात मे अपने पिछले 11 सालों के कार्यकाल मे साबित भी किया है।

Saturday, April 6, 2013

Rahul Gandhi's Confused and Visionless Speech at CII

Two days back Yuvraj of Congress appeared in CII Conference to give a speech on Indian Economy. I don't know who has written the speech but this speech didn't carry any kind of economical vision for the country or for the industry. Who congress party,Industrialists and TV Channels Praised the speech but i didn't find any thing commendable about the speech.That speech was nothing better than a class 8th students Project Speech.
I tried to summaries Few things Rahul Gandhi said in his speech at CII:-
1-He said its should not be about 'ME' , it should be 'WE". 'WE' can make the difference. he didn't mention 'WE' means He, his mumma,His bahena and his jeejaji.
2- he said india is a Beehive, but he didn't say who is the queen bee and who all are servant bee.
3-He said he wants to give authorization and power to the GRAM PRADHAN level , but he did not mention when Madam will grant some power to MMS.
4-He said 5 crore per year per MP is not enough for local area development. but he did not say why his MPLAD fund is not used  to the full capacity from the time he has been selected MP.
5-He said a gentleman from Bihar changed Japan 3000 years ago. but did not enlighten us with his name.Is he one of his predecessor.
6-He reminded me my MBA days. Those day When I did not have answers ,I just start to write anything to fill up the answer sheets. Sometimes i have written theory in numerical based questions of Financial Management. That what he did when someone asked him a question.

7-For me the best part was the interactive session where two gentlemen asked some question. In reply Yuvraj spoke for almost 20 minutes , and the question remains untouched and unanswered
8-He said Vikas me gareebo ka sath zaruri hai, ye nahi bataye isilye humne scam karke logo aur gareeb bana diya hai.
9-The way he was criticizing govt machinery , it looked that he was more of a opposition leader. I think some one has not reminded him that it was only congress party which ruled the country for around 50 years and if still the govt machinery not working then what elese we can expect from him.
10- He said nobody will come on horse to solve your problem. Bhai sahab aap CAR me aao. LAAL BATTI wali car mili hai aapko. usi me aake problem solve kar do.

11- He only used the words like -'we want to do' and 'we will do '.He did not mention if they have done anything positive. So there was nothing new in his speech

Overall he is a great threat to the Stand up comedians. And he does not have any vision or road map for the country.I think he need few more decades to sharpen his views about the country.

Monday, March 25, 2013

जस्टिस काटजू को खुला पत्र

महाशय,
आपका महाराष्ट्र के महामहिम राज्यपाल साहब को संजय दत्त की माफी के लिए लिखा गया अपील पत्र पढ़ा। विधि की ज्यादा जानकारी तो मुझे नहीं है क्यूंकी मैंने विधि की पढ़ाई अभी शुरू नहीं की है। परन्तु आपके अपील पत्र को पढ़ कर इतना तो ज्ञात अवश्य हुआ कि आपने महाराष्ट्र के महामहिम राज्यपाल से देश के संविधान के अनुच्छेद 161 के अंतर्गत, श्रीमान संजय दत्त को भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रदत्त 5 साल की सज़ा को, माफ करने का आग्रह किया है। आपने अपने अपील मे नानावटी केस का जिक्र करते हुये लिखा है कि चूंकि मर्डर के केस मे भी न्यूनतम सज़ा आजीवन कारावास होती है और इसके बावजूद महामहिम ने उसकी सज़ा माफी का आदेश दिया था, इसलिए संजय दत्त की 5 साल की सज़ा को भी माफ कर देना चाहिए। महाशय आपका संजय दत्त और इनके परिवार के प्रति निःस्वार्थ स्नेह निःसन्देह प्रशंशनीय है, परंतु क्या संजय दत्त का अपराध सचमुच क्षमायोग्य है। और क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे क्षमा याचनाओ से देश की जनता के बीच एक गलत संदेश जाएगा।
मैंने अपना विरोध के समर्थन मे निम्नलिखित बिन्दु प्रस्तुत करना चाहता हूँ :-
1-आपने क्षमा याचना की अपील मे लिखा है कि इस घटना को हुये 20 वर्षों से ज्यादा बीत चुके हैं और इन बीच संजय दत्त ने काफी मानसिक प्रताड़णा झेली है, अतः इस लिहाज से उनकी सज़ा को माफ कर देना चाहिए। महाशय अगर केवल मानसिक प्रताड़णा ही उनकी सज़ा माफ करने के लिए पर्याप्त है तो देश के विभिन्न जेलों मे हजारों कैदी हैं जिन्होने केस कि सुनवाई के दौरान ही अपनी महत्तम सज़ा से भी ज्यादा सज़ा गुज़ार ली है, और अभी तक उनके केस का फैसला भी नहीं आया है। आपको इन कैदियो के विषय मे भी मुहिम शुरू करनी चाहिए।
2-आपने ये भी लिखा है कि संजय दत्त 18 महीने कि सजा जेल मे पहले ही गुज़ार चुके हैं अतः उन्हे बाकी बची सज़ा से मुक्त कर देना चाहिये। महाशय संजय दत्त के पास 1993 मे जिस एके 56 रखने के कारण आर्म्स ऐक्ट के तहत केस चल रहा था , वो कोई मामूली हथियार नहीं था।इस हथियार को स्वरक्षा का हथियार भी नहीं कहा जाता, वरण ये असौल्ट हथियारों की श्रेणी मे आता है।  मेरी जानकारी के मुताबिक उस समय ये हथियार देश कि किसी भी पुलिस के पास भी उपलब्ध नहीं था, तो ऐसे हथियार को रखने कि सज़ा अगर 5 साल न्यूनतम है तो उन्हे 5 साल कि सज़ा जेल मे गूजारनी ही चाहिए। इससे देश के नागरिकों मे कानून के प्रति सम्मान और डर की भावना और मजबूत होगी।
3-संजय दत्त के पास ये हथियार मुंबई बम ब्लास्ट के पहले उनही बम ब्लास्ट के अभियुक्तों के द्वारा पहुचायी गई थी, अगर संजय उसी समय मुंबई पुलिस को इन हथियारो ,विस्फोटकों कि जानकारी दे देते तो शायद मुंबई ब्लास्ट जैसे भयावह दुर्घटना से बचा जा सकता था और उन असंख्य लोगों और परिवारों, जो इस दुर्घटना से मानसिक और शरीरीक रूप से प्रताड़ित हुये थे, उससे बचाया जा सकता था।
4-आपने ये भी लिखा है कि संजय शादी शुदा और दो बच्चों के बाप भी हैं , इसलिए भी उन्हे सज़ा माफी दे देनी चाहिए। अगर सिर्फ शादी शुदा और दो बच्चों के बाप होने के नाते सज़ा माफी दी जाने लगी तो महामहिम के कार्यालय मे सज़ा माफी के इतने याचनायेँ प्रति दिन आने लगेंगी, जिसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है।और ये देश के कानून पालन करने वाली आम जनता के समक्ष निश्चित रूप से एक गलत उदाहरण प्रस्तुत करेगा।
5-निश्चय ही संजय कोई आतंकवादी नहीं है परंतु उन्होने एक कानून पालन करने वाले नागरिक का फर्ज भी कतई नहीं निभाया है। एक उंडर ग्राउंड अपराधी और उसके आदमियों के साथ दोस्ताना रिश्ते निभाना और उनकी मदद से गैर कानूनी हथियारों को प्राप्त करना, निःसन्देह ही कानून के पालन करने वाले व्यक्ति का व्यवहार तो नही ही माना जाएगा।
6-स्वर्गीय सुनील दत्त साहब और नर्गिस जी ने निश्चयरूप से समाज और देश के निर्माण मे अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है, परंतु क्या सिर्फ इसी कारण से संजय दत्त का अपराध क्षमायोग्य है।
7-आपने अपने अपील पत्र मे ये भी जिक्र किया है कि संजय दत्त ने पिछले 20 सालों मे सिनेमा के माध्यम से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आचरण,चरित्र और उनके सिद्धांतों को आम जन तक फिर से पहुँचाने का कार्य किया है। आपका इशारा ज़रूर 'लगे रहो मुन्नाभाइ' कि तरफ रहा होगा। मैं आपका ध्यान कुछ और फिल्म शीर्षकों कि ओर लाना चाहता हूँ, अगर आपने खलनायक,वास्तव,हथियार,अग्निपथ जैसी फिल्मे नहीं देखी हैं तो कृपया करके इन फिल्मों को भी देखे और बताने का कष्ट करे कि इन फिल्मों के माध्यम से उन्होने किस आचरण और सिद्धांतों का आचरण करने का संदेश दिया है? अगर फिल्मों मे निभाए गए व्यक्तित्व के आधार पर ही सज़ा देने या न देने का प्रावधान किया जाने लगे तो 'गैन्गस ऑफ वास्सेयपुर' मे निभाए गए चरित्रों के आधार पर फिल्म के कलाकारों को तो फांसी पर ही लटकाया जाने लगेगा।
इसलिए मैं आपसे विनम्र निवेदन करूंगा कि आप अपने क्षमा याचना कि अपील पर पुनर्विचार करे और महाराष्ट्र के महामहिम राज्यपाल भी क्षमायाचना को खारिज करे और देश के आम नागरिकों मे देश के कानून के प्रति आस्था को मजबूत करने मे सहयोग प्रदान करें।

धन्यवाद।।

Tuesday, March 19, 2013

PROBLEMATIC SOLUTIONS OF PROBLEM



Commonly known name of our country is “HINDUSTAN” ,the legal name of our country is “INDIA”.But as per Article I constitutional name of our country is “India” that is “Bharat” shall be union of states. It is very difficult to understand this nomenclature if constitutional obstacle at that time is not considered due to the fact that at that time we were governed and ruled by Britishers under the provision of GOVERNMENT OF INDIA ACT 1935. So at that time it may be our legal problem to accept the nomenclature of “India”, but today there is no such compulsion to continue to be known as name of our country as “India” and we can change our country's name by amending Article I of the constitution .Now a days and after analyzing way of ruling of all the institution of government,I am forced to conclude that the nomenclature in the constitution has got some meaning. People living in town , people enjoying power and having their support Influential class having power and money backing are enjoying in all sphere of life as being separate class and they deserve to be called as citizens of India , while people living in villages and poor people are citizens of “BHARAT”.These people don't deserve any amenities provided to citizens of India.
On governance of this country , after sufficient analysis , I want to tell a story. the story may be taken as a story of foolish person or story of an idiot. I shall not mind. People are free to think and form their opinion. But I am of firm opinion that lot of people will enjoy by going through story if they take the same seriously.
Now the story must be told taking name of 'god' as per our tradition and 'sanskar' which are often remembered when we are required as a last arms in our hand at the time when we have no other alternative to give a logical reply. Or we are on total loss of situation. We have pride only in saying of our 'SANSKAR' and not in following the same.Goswami Tulsi Das has written in Ramcharitmanas “par updesh kushal bahutere, je acharhin te nar na ghanere

The story in our country runs as in some part of our country some poisonous plants have grown,its leaves were poisonous, its flowers were poisonous, its fruits were poisonous, and even winds passing through plants also have poisonous effects upon people. Peoples were dying in large number and people having money and power were getting treatment. Ultimately some idiot people started Big Rally for saving them from plants and its poisonous effects. RALLY was so powerful that it was not possible to ignore the same and RALLY was continuing for several months.
Later on some powerful and rich people took prominent position in RALLY for taking advantages, and some to frustrate the goal of RALLY. Anyhow one day government woke-up and announced his desire to set up an enquiry commission for suggesting means to get relieved from poisonous effects of plants as well as from plants it self .Participants of RALLY returned back to their homes in hope to get relief from poisonous plants. Money for commission was allotted. Now second phase of naming chairman, and its member was to be started. Now the turn was of influential persons to utilizes their pairvi has started . One influential person was champion in getting such assignment. He was in favourite list of government .In every government there is such list. Although such persons are retired high-ups, but they never retire from services by using their special quality. Really They are the successful people in life . They are special nut & bolt which can be fitted in every machine. One of such person was appointed to work as chairman of commission and two others were appointed member of commission. There after the search for office and staff of commission has started. The government was not in hurry. Time was passing and people's unrest was increasing. Sensing the public unrest one old building was allotted for working of commission and a board of commission was fixed with few staffs and they joined their duty. Firstly some furniture, stationary were ordered and percentages were taken. In the meanwhile term of commission has ended .Again its term was extended and hearing of commission started. On demand of public some scientists went and examined the poisonous plants and submitted their report. If shortly stated at the end of second term the commission submitted its interim report suggesting cutting of poisonous plants. In the meanwhile poisonous plants were growing and those plants have taken shape of tree .After tasting much dust in office the report was accepted and made public by next Govt. The next government directed the concerned department to submit A.T.R.(Action Taking Report) Cutting all the poisonous plants. Now in department file was opened and clerk submitted his noting suggesting cutting of poisonous plants by using Blades and then file went to table of head clerk who in turn suggested name of blade of specific company. The file came to table of junior officer,who has no vested interest and so he forwarded the file to his next senior ,who returned back file with endorsement. Why blade of this company?Again file fell to clerk, who replied that query be replied / meted by the Head clerk as he has suggested name of company. Head clerk firstly meat the junior officer and after consultation sent his noting. This time agent of company also participated in consultation . Behind the curtain everything was fixed in percentage. Then the junior officer submitted his noting to secretary of department. The secretary was an experienced officer and knowing all the tricks and he sent back file with endorsement 'Discuss'. Most of people will not be knowing the effect of 'discuss' in noting of officer. Its real meaning is to delay the matter till the officer so desires. Poisonous effects of now poisonous trees has taken lots of people in its effect and population of patients in Hospital was increasing and becoming out of control. People were dying again public protest was taking a new height. Now the political party in power at the time of declaring setting of commission was raising public protest. Now the time to 'discuss' has arrived and junior officer was called by secretary of department in chamber of Minister and questioned why file was not submitted earlier. He has also got experience and replied that he was not specifically directed to 'Discuss'. Similar were reply of Head clerk, and clerk. Anyhow the secretary endorsed the proposal of junior officer and Honourable Minister put his initial signature and order became final decision of government. But in meantime company has stopped to manufacture blade and they have started manufacturing 'Use & throw blades. Now the tern of other blades manufacturing company has come to play and they started campaign for purchase of blades financial rules were not followed and no Tender was invited. Certainly rules were not followed. So same procedure was followed and order was amended and Tender was invited for purchasing blades.But at last same company obtained the order for supply of Blades,and order was placed and Blades were purchased. Then labors were engaged for cutting poisonous plants,which have become trees now. When labors went to cut trees they started suffering deceases due to poisonous effects of trees and some cut their own palms and fingers.

when this matter came to knowledge of department an inter departmental enquiry was setup for providing treatment to injured labors and to submit detail report and to fix liability. The report was submitted that latest position was neither called for nor exact length of trees were taken into consideration at the time of purchasing blades. Now stems poisonous trees have become so hard that can not be cut by use of blades and decision was taken on the basis of six years old noting which have become irrelevant and at the time of cutting the trees as it was for cutting sapling small plants .Another commission was setup and whole matter took a U tern as described earlier,which again started consuming time .A subsidiary file started in matter of liability as well as for medical help to injured labors as well as in matter of labors already died due to injury and poisonous effects of trees. In the meanwhile number of poisonous trees were spreading like wild fire and it become jungle and panicky grips the people. Member of commission have gone to foreign tour to know about the methods of tackling the issue. After much deliberations commission suggested for cutting those poisonous trees by use of Axe. Now the government took precaution(in pressure of some one) to provide special cloths & helmates to labors for cutting those trees .After consuming/ eating much time in deciding supply of Axe, price of Axe, thekedars to supply labors,etc. Anyhow when finally labors went to cut those trees in forest the Forest department objected that 'no objection certificate' was not taken from Forest dept. Again wheel rolled back and file moved and even court's cases were filed and after lapse of much time on court's intervention Forest dept. issued "No objection certificate". Some people again approached court challenging purchase of Axe ,quality of Axe and supply of Axe, consuming much time. Ultimately labors went to cut those trees and collecting at some places and some fire caught the heap of cut trees and again cases were filed that no precaution was taken inviting fire tender to meet such accidental fire.

After cutting those trees for a long period it was felt that it is not possible to get rid from poisonous trees as number of trees were growing at much faster rate than it were cut. Seeing no other alternative again special commission was setup to get rid from those trees and again the old story was started,taking time as usual and next generation has taken charge of government, but neither there was change in procedure nor change in attitude of government. After consuming much time commission submitted its report suggesting cutting of those trees by use of machine. Again governmental procedure started functioning in their usual lethargic way in matter of purchase of machine, choosing company to supply of machine, employment of operator or cutting of trees by outsourcing. Ultimately cutting of those trees by use of machine by outsourcing has started. People were happy that now they will get rid from poisonous trees. Process is still going on. Poisonous trees are also increasing their numbers. From one side it is being cut while from other side it is growing and increasing in large number.

Their is no end of story. If correct decision were taken initially to cut and destroy those trees by use of machine and to continue the process then only the problem may have been solved or at least contained. These poisonous trees are symbolic to corruption, pairvi, misuse of wealth,misuse of power,greeds of influential persons. The solution of problem must be searched at beginning of problem and work must be started immediately otherwise problem will be aggravated to extent that it will go beyond control of government. I am sure that no one will take it seriously this story as it is history of this country.




-----Author of this article is a Senior Officer in Judiciary----

Friday, March 15, 2013

लैपटॉप का झुनझुना थमा कर अपने उत्तरदायित्व से मुह मोडती प्रदेश सरकार

अभी पिछले दिनों सूबे की समाजवादी  सरकार ने, चुनाव पूर्व किये गए वादों की पूरा करने के प्रक्रिया में पिछले साल इंटरमीडिएट की परीक्षा में उत्तीर्ण छात्रों को लैपटॉप प्रदान किये। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम में तकरीबन दस हज़ार छात्रों को लैपटॉप बांटे। आने वाले दिनों में और भी जिलों में इस कार्यक्रम को आगे बढाया जायेगा।लेकिन सूबे की विपक्षी पार्टियों ने इस योजना को लेकर सरकार का काफी विरोध किया है।
गौरतलब है की सरकार लैपटॉप का झुनझुना थमाकर सूबे की जनता को आम बुनियादी सुविधायें देने के अपने उत्तरदायित्व से मुह मोड़ने का प्रयास कर रही है।इस योजना से सरकारी खजाने पर तीन हज़ार करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा, जिससे विकास की विभिन्न योजनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।उत्तर प्रदेश की जनता पहले से ही बुनियादी सुविधाओं से जूझ रही है और सरकार के इस गैरजिम्मेदाराना फैसले से उसकी विकास के प्रति गंभीरता साफ़ मालूम पड़ती है।प्रदेश की जनता पहले से ही सरकारी महकमो में फैले भ्रस्टाचार, बिजली,सड़क और पानी की अव्यवस्था और अपराध की दानवरुपी समस्या से ग्रसित है और पिछले एक वर्षों में इसमें निरंतर बढ़ोतरी ही हुई है।लेकिन सरकार और इसके मंत्री इन समस्याओं से मुंह मोड़ते हुए यहाँ के छात्रों को लैपटॉप रुपी झुनझुना देने का फैसला किया है।यह गौर करने योग्य है की प्रदेश के लगभग सभी बड़े जिले बिजली की समस्या से ग्रसित हैं और गाँवों का हाल तो पूछिये ही मत और उस पर प्रश्न ये उठता है की इस लैपटॉप की बैटरी चार्ज करने के लिए सरकार क्या उपाय करेगी और क्या सिर्फ एक लैपटॉप दे देने भर से सरकार की उसके जनता के प्रति उत्तरदायित्व समाप्त हो जाता है।
अखबार में छपी ख़बरों के अनुसार लाभार्थी विद्यार्थियों में से कईयों से लैपटॉप मिलने के तुरंत बाद इसे बेचने के लिए विभिन्न दुकानों का रुख किया लेकिन उसमे सफल नहीं हो पाए। इससे उन लाभार्थियों की गंभीरता का भी अंदाजा लगाया जा सकता है की वो इस लैपटॉप और उससे होने वाले फायदे को लेकर कितना गंभीर हैं।सरकार ने लैपटॉप रुपी झुनझुना थमाकर अपनी नीति तो स्पष्ट रूप से जग जाहिर कर ही दी है। इसलिए सरकार के इस रवैये को विकासोन्मुखी तो बिलकुल ही करार नहीं दिया जा सकता। सरकार वोट के बदले नोट न देकर वोट के बदले लैपटॉप देने की एक नयी प्रथा की शुरुआत कर रही है।और इस लैपटॉप की एक खास बात ये है की इसमें माननीय मुख्यमंत्री जी का ही वॉलपेपर लगाया जा सकता है, कुछ छात्रों ने जब इसे हटाने की कोशिश की तो लैपटॉप जी क्रैश कर गया।अब इससे ये साफ़ अंदाज़ा लगाया जा सकता है की सरकार इन छात्रों की भविष्य को ले कर कितनी जागरूक है।सरकारी धन का उपयोग कर के एक व्यक्ति विशेष की प्रचार की ये योजना प्रदेश को किस तरफ ले जाएगी और इसमें सरकार द्वारा कौन सी दूरदर्शिता का परिचय दिया गया है, ये जानने के लिए स्वयं मैं भी काफी जागरूक हूँ।
वैसे सरकार के इस लैपटॉप बाँटने के कार्यक्रम के द्वारा एक बिलकुल ही नयी प्रथा की शुरुआत तो कर ही दी है।अब वो दिन दूर नहीं जब विभिन्न राजनीतिक पार्टियां आने वाले विधान सभा चुनावों में अपने घोषणापत्र में फ्रिज, कलर टीवी, वाशिंग मशीन, मोबाइल फ़ोन देने जैसे लोक लुभावन वादे करते नज़र आयेंगे।और इन वादों के द्वारा चुन कर आने वाली सरकार का रुख जनता के हितों के प्रति कितना रहेगा ये स्वयं सोचने योग्य है।जनता को भी इन लोकलुभावन वादों के तात्कालिक लाभ से परे सोच कर दूरगामी परिणाम देने वाले विकासोन्मुखी सरकार के निर्माण में सहयोग करना चाहिए।

Friday, March 8, 2013

और बता.....सब बढ़िया,तु बता

आते जाते ,उठते बैठते , फ़ोन पर बात करते हम सब अक्सर ही बोलते रहते हैं - "और बता " और  वाला उसका जवाब देता हैं "सब बढ़िया , तु बता ?"  जाने अनजाने हमारे मुह से अनायास ये शब्द दिन में कम से कम ५० -६०  बार तो निकलता ही है। मैंने अपने शब्दों में इसका नाम "और बता सिंड्रोम " रखा है। ये बड़ी ही भयंकर बीमारी है। फ़ोन पर बात करते करते जब हमारे पास बतियाने के लिए कोई खास मुद्दा नहीं बचता तो हमारे पास यही हथियार रहता है दागने के लिए और जब सामने वाला ये हथियार झेल जाता है तो फिर हमारे ऊपर वापस दाग देता है "और बता "।
 हद तो तब हो गई जब किसी विद्यालय में एक शिक्षक ने एक बालक से पूछा की कुछ जानवरों के नाम बताओ। बालक बोलने लग गया शेर, चीता, हाथी और शांत हो गया। शिक्षक ने बोला "और बता" , इससे उसका तात्पर्य था की बालक और कुछ जानवरों के नाम बताये। लेकिन बालक का जवाब था "सब बढ़िया सर ,आप बताओ। "
दिन भर की आपाधापी में ये "और बता सिंड्रोम" हमारे ऊपर काफी ज्यादा हावी हो चुका है। मैं खुद इस बीमारी से ग्रसित भी हूँ और भुक्तभोगी भी। अक्सर मित्रों से बात करते हुए अनायास ही मैं भी अक्सर ही बोल जाता हु की भाई और बता और अक्सर सामने बैठे मेरे मित्र मुझसे बोल जाते हैं और बता भाई। अब मेरे समझ नहीं आता की मैं बताऊ तो क्या बताऊ क्यूंकि अगर हिम्मत कर के मैंने एक बार और कुछ बता दिया तो हो सकता है ये और बता वाला हथियार अगले कुछ क्षणों में दुबारा से ही मेरे तरफ दाग दिया जायेगा। मैंने बड़ा गौर किया तो ये समझ में आया की हम सब आपस में एस.एम.एस.,चैट इत्यादि द्वारा सारी बात कर लेते हैं और जब प्रत्यक्ष या फ़ोन के द्वारा बात कर रहे होते हैं तो हमारे पास बात करने के लिए ज्यादा कन्टेन्ट बचता ही नहीं है।
मैं तो स्वयं इस बीमारी से काफी ज्यादा परेशान हो गया हूँ और अब मुझे इस बीमारी से चिढ सी होने लगी है इसलिए मैंने तो "और बता सिंड्रोम" से निजात पाने की ठान ली है। लेकिन ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा की मुझे इसमें सफलता कितनी मिलती है।अगर हो सके तो आप लोग भी कोशिश कर के देखे, शायद आप भी इस बीमारी से ग्रसित होंगे और अगर नहीं हैं तो इसके भुक्तभोगी तो अवश्य ही होंगे।



Tuesday, March 5, 2013

खोड़ा: दिल्ली, नोएडा और गाज़ियाबाद के बीच बसा उपनगरीय इलाका

आप मे से जो भी दिल्ली , गाज़ियाबाद या नोएडा मे रहते हैं या कभी भी रहे हैं, वो खोड़ा से ज़रूर परिचित होंगे। अगर कभी जाने का मौका न मिला हो तो गाहे बगाहे कभी न कभी एनएच 24 से गुजरते हुये ये नाम ज़रूर सुना होगा। किसी लेखक ने कभी लिखा था कि शहर मे अमूमन दो तरह कि बस्तियाँ होती हैं - एक अमीरों के बस्ती जहा सारा विकास का कार्य सरकार द्वारा किया जाता है, चौड़ी चौड़ी सड़के होती हैं, विश्वस्तरीय शॉपिंग मॉल बने होते हैं, शिक्षा के लिए तमाम बड़े नामचीन स्कूल, चिकित्सा के लिए पाँच सितारा सुविधाओं वाले अस्पताल इत्यादि होते हैं। और एक दूसरी बस्ती होती है जहा पर वोट बैंक रहता है, भूले भटके कुछ सरकारी योजनाए यहा भी काम कर रही होती हैं। खोड़ा एक तीसरे तरह कि बस्ती है, यहाँ सरकार का लोगों का हालचाल जानने मे कोई रुचि नहीं है।
खोड़ा मे लाखों घर हैं जिनमे एक अनुमान के मुताबिक दस लाख से भी ज्यादा लोग रहते हैं, और बिना सीवर, सड़क और पीने के पानी के एक नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। खोड़ा कि इसी आबादी मे रहते हैं नोएडा, गाज़ियाबाद और दिल्ली के उद्योगों मे काम करने वाले मजदूर और घरों मे काम करने वाली महिलाएं।इन्ही नारकीय गलियों से निकाल कर ये आपके घरों और उद्योगों मे काम करने पहुचते हैं।एक नजरिए से देखा जाए तो खोड़ा मे यूं तो सब कुछ ही है, केवल सरकार कि योजनाओ और सुविधाओं के। खोड़ा मे सीवर कभी बिछाई ही नहीं गई और सड़क पे बहते नाली के पानी को भरने के लिए कई बार यहा कि गलियों मे मिट्टी भरी गई , जिसका नतीजा ये हुआ कि सड़के घरो से ऊपर आ गई और कई घरो के एक-एक मंजिल तक मिट्टी मे दब गए। और ये मिट्टी बिछाने का खर्चा भी खोड़ा वासियों अपनी मेहनत कि कमाई दे कर उठाया है।खोड़ा कि इन गलियों मे आपको सैकड़ो ऐसे घर मिलेंगे जो मिट्टी कि भराई के कारण ज़मीन के अंदर समा चुके हैं। सीवर की गैर मौजूदगी मे लोगों ने अपने अपने घरो के सामने पानी सोखने के सोखते बना रखे हैं, इन सोखतों से गंदा पानी ज़मीन के अंदर जाता है और चंद मीटर कि ही दूरी पर लगे हैंड पंप से वापस ऊपर जब आता है तो वो पीने लायक तो कतयी नहीं रहता।
खोड़ा मे तकरीबन दो हज़ार से ज्यादा गलियाँ हैं लेकिन सरकारी नंबर मिलने का सुख इनमे से किसी भी गली को प्राप्त नहीं हुआ है। न गलियों का कोई नंबर है और न ही यहा के घरों का कोई भी पता। खोड़ा मे रहने वाले बताते हैं कि खोड़ा मे कम से कम 50 कालोनियां हैं, खोड़ा के विस्तार का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं। पहले कभी ट्रांसफरमर खंभों के ऊपर हुआ करते थे लेकिन जैसे जैसे गलियों मे मिट्टी भरता  गया वैसे वैसे अब ट्रांसफारमर भी आसमानी सुख छोड़ कर ज़मीन पर आने को मजबूर हो गये हैं। इन्ही ट्रांसफारमर के नंगे तारों से सट कर आए दिन बेजुबान जानवर और बच्चे इसका शिकार होते रहते हैं। ऐसे ट्रांसफरमरों ने कइयों की जान ली और कइयो को अपाहिज बना दिया, लेकिन बिजली विभाग को इसकी कोई सुध नहीं है। 
खोड़ा मे आपको कही भी कूड़ेदान और सफाई कर्मचारी नहीं दिखेगा, दिखेगा तो सिर्फ सड़को पर बेतरतीब तरीके से पसरा हुआ कूड़ा और उनही कूड़े मे खाने की तलाश मे बेजुबान जानवर। अगर आपको कोई खाली प्लॉट दिखता है तो आप मान के चलिये की वो खाली प्लॉट अगर बगल के पड़ोसी घरो के लिए एक कूड़ेदान बन चुका है और कूड़े के अंबार से भर चुका है। खोड़ा के बारे मे एक बात सटीक रूप से कही जा सकती है की खोड़ा का कूड़ा और यहाँ का सीवर का पानी भी यहाँ से बाहर नहीं जा पता और इसी नरक मे ही रह जाता है।खोड़ा मे दस लाख की आबादी मे कोई भी सरकारी अस्पताल नहीं है और शायद यही कारण है की इन गलियो मे झोलछाप डाक्टरों की भरमार है। सरकारी स्कूल है या नहीं ये तो मुझे नहीं पता लेकिन हिन्दी मे पढाने वाले कई अंगरेजी मीडियम के प्राइवेट स्कूल आपको यहाँ दिख जाएंगे।
खोड़ा यूं तो नोएडा से सटा एक गाँव है लेकिन सरकारी नक्शों मे शायद गाज़ियाबाद का हिस्सा है।लेकिन मूलभूत सुविधाए देने मे शायद दोनों मे से कोई भी सक्षम नहीं है। खोड़ा से सटे नोएडा के सेक्टरों और इन्दिरापुरम मे तो तमाम विश्वस्तरीय सुविधाए दी गई हैं, लेकिन खोड़ा अभी भी मूलभूत सुविधाओं के लिए ललच रहा है।वैश्वीकरण की अंधी दौड़ ने हमे कई अत्याधुनिक शहर दिये है लेकिन खोड़ा जैसे कई गाँव भी हैं जो मामूली सुविधाओं से भी वंचित हैं और यहां के लोग ऐसी ही नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। ये तो देश के राजधानी से सटे एक गाँव का हाल है तो उन गांवों का तो भगवान ही मालिक है जो यहां से सैकड़ों, हजारों किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। मेरा ये लेख कई लोगो को ये सोचने पर मजबूर कर सकता है की मैं वैश्वीकरण का खिलाफत कर रहा हु लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है, मैं तो बस इतना ही चाहता हूँ कि पाँच सितारा सुविधाओ वाले इन शहरों के साथ साथ खोड़ा जैसे इन गांवो तक भी विकास और सुविधा पहुंचे।भारत  उदय और भारत निर्माण को ऐसे गांवों के लोग भी महसूस कर के देखें। लेकिन फिर एक बात जेहन मे आती है कि शहरों मे दो तरह की बस्तियाँ होती हैं -एक जहां विकास होता है और एक जहां वोट बैंक रहता है और खोड़ा तो शायद इन दोनों मे से किसी मे भी नहीं आता।

Friday, February 22, 2013

मुंबई से मेरा पहला साक्षात्कार पार्ट 2

दिल्ली से ट्रेन द्वारा मुंबई सेंट्रल पहुँचने और वहाँ से लोकल और रिक्शा का सफर कर के मित्र के आवास तक पहुँचने का व्याख्यान तो मैंने अंतिम पोस्ट के द्वारा बता ही दिया था। वहाँ पहुच कर मैंने सबसे पहले आरामदायक बिस्तर की ओर रुख किया और बिस्तर पर पड़ते ही नींद ने मुझे अपनी आँचल मे छिपा लिया। दोपहर मे नींद खुली तो स्नान भोजन वगैरा कर के सोचा की अब क्या किया जाये? साथ मे ही बैठे मित्र ने झट सुझाव दिया की शाम को गेटवे ऑफ इंडिया देखने चल सकते हैं, बगल मे ज़ू है,वहाँ जाया जा सकता है और भी अनगिनत सुझाव जैसे बैंडस्टैंड,जुहू चौपाटी और न जाने क्या क्या। मैंने कहा वो सब तो ठीक है उसके पहले ज़रा मुंबई की शराब चख ली जाए तो उसमे कोई बुराई है क्या? इतने दिनो बाद मिल रहे हैं तो पहले थोड़ा शराब, कबाब का कार्यक्रम कर लेते हैं, रही बात घूमने की तो वो भी कर लेंगे। मेरे इस विचार को उन्होने भी हाथों हाथ लिया और सहमति जताते हुये कहा कि मेरा ऊसुल तो तू जानता ही है, कि जब तक सूरज ढलता नहीं तब तक मैं मदिरा को हाथ भी नहीं लगाता। मैंने कहा जी ठीक है, जैसे आप कहे,ऊसुल है तो ऊसुल है। फिर मैंने कहा कि जी आपको भी मेरा एक ऊसुल पता ही है , तो वो बोले क्या? मैंने कहा जी "सूरज अस्त तो ठाकुर साहब मस्त"। फिर सहमति हुई और शाम को वृद्ध साधु (ओल्ड मोंक) की बोटल के साथ उपवास तोड़ा और कॉलेज के हॉस्टल वाले दिनो को याद करते हुये जाम टकराए।
ओल्ड मोंक पीने का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ये है की इससे हैंगओवर होने के चांसेज बड़े ही कम रहते हैं।इसलिए सुबह जब नींद खुली तो सब कुछ फ्रेश फ्रेश था। खैर कुछ काम था, तो सोचा पहले वो निपटा लिया जाए।स्नान ,नाश्ता सब कर के फ्लॅट से नीचे उतरा और रिक्शा ले के अंधेरी की तरफ निकल गया।रिक्शावाला समझ गया की ये भाई साहब जो हैं बाहर से आए हैं इसको घूमा लो जितना घूमाना है।9 किलोमीटर की दूरी तय करने मे उस रिक्शावाले को 14 किलोमीटर लग गए और जब उसके बाद जब मैंने उससे बोला की भाई तुझे नहीं लगता की तू कुछ ज्यादा ही गोल चक्कर लगा कर लाया है तो उसने मराठी मे कुछ बोलते हुये कहा की इतना ही होता है।खैर मैंने उससे बहस न करने मे ही भलाई समझी और उसके पैसे उसे दे कर गंतव्य की ओर रवाना हो लिया।
शाम को जब वापस आना हुआ तो मैंने सोचा की क्यू न लोकल ट्रेन का विभत्स रूप जैसा की फिल्मों मे देखा है और सुना है उसके दर्शन कर लिए जाएँ। तो मैंने अंधेरी से लोकल ट्रेन पकड़ने की सोची। अंधेरी पहुंचा तो देखता हु टिकट लेने के लिए लंबी लाईन लगी है। मैंने सोचा इसमे लगा तो टिकट शायद कल ही मिल पाएगा, तभी किसी ने बताया की टिकट के अलावा कूपन की भी व्यवस्था होती है,आप वो भी ले सकते हो,मुझे कूपन वाला ऑप्शन ज्यादा सही और समय बचने वाला लगा। झट से कूपन लिया और एक राहगीर की सहयोग से उसे इस्तेमाल करने का तरीका जान कर प्लैटफ़ार्म की ओर प्रस्थान कर दिया। प्लैटफ़ार्म तक पहुचने मे ही खासे मसक्कत का सामना करना पड़ा। कहने को तो फूट ओवर ब्रिज से प्लैटफ़ार्म पर जाने के लिए सीढ़ियों की बजाए आरामदायक स्लोप बनाए गए हैं, लेकिन उसकी चौड़ाई मे रेल्वे ने थोड़ी कंजूसी कर दी है, अगर स्लोप की चौड़ाई थोड़ी और रहती तो लोगो को थोड़ा और आराम मिल जाता। खैर किसी तरह प्लैटफ़ार्म पहुंचा तब पता चला की फिल्मों मे जो देखा है वो किसी हद तक गलत नहीं था। एक पूरा जनसैलाब नीचे ट्रेन का इंतज़ार कर रहा था।वैसे तब तक एक जानकारी और प्राप्त हुयी कि लोकल भी 2 प्रकार की होती हैं, एक स्लो लोकल जो की हर स्टेशन पे रुकते हुये जाती है और दूसरी फास्ट लोकल जो गिने चुने स्टेशन पे ही रुकती है।ये जानकारी काफी उपयोगी साबित हुयी मेरे लिए अन्यथा मैं स्लो लोकल के चक्कर मे स्लोली ही घर पहुंचता।
तब तक फास्ट लोकल के आने का पता चला तो मैं भी इसमे चढ़ने के लिए कमर कस ली। जल्दी ही ट्रेन आई और उतरने वाले यात्रियों की भीड़ ने ऐसा धक्का लगाया की मैं उनके साथ ही पीछे हो गया। खैर पहले ट्रेन मे चढ़ पाने मे तो मुझे कामयाबी नहीं मिली लेकिन मैंने भी ठान लिया की अगली लोकल मे तो फतह कर के रहूँगा।खैर अगली वाली लोकल मे किसी तरह चढ़ भी गया लेकिन जनता ने अगले स्टेशन पे अपने साथ साथ धक्का दे के मुझे भी उतार दिया।किसी तरह दुबारा चढ़ा और बोरीवली स्टेशन पहुंचा। लोकल के इस आधे घंटे के सफर ने पूरे शरीर का मसाज कर दिया।
बाकी बचे दो दिनो मे मुंबई,ठाणे के विभिन्न जगहों का भ्रमण किया और 2 दिनो के बाद पुनः मुंबई सेंट्रल से दिल्ली के लिए ट्रेन बोर्ड किया और वापस दिल्ली आ गया।दिल्ली आ कर काफी सुकून मिला और मेट्रो ट्रेन कि भीड़ ने मुंबई लोकल कि यादें ताज़ा कर दी।


Tuesday, February 19, 2013

मुंबई से मेरा पहला साक्षात्कार पार्ट 1

जैसा कि आप लोग जानते ही हैं मुझे अलग अलग जगहों को एक्सप्लोर करने का एक शौक है। इसी शौक और कुछ निजी काम के चलते पिछले दिनो मुंबई जाने का मौका भी मिला। मौका मिला था तो उसे मैंने झटकते हुये मुंबई की टिकिट्स करा ली। दिल्ली से राजधानी एक्सप्रेस की सुखद 16 घंटे की यात्रा कर के सुबह सुबह मुंबई सेंट्रल स्टेशन पहुंचा। पहली बार मुंबई गया था तो मन मे काफी सारी आशंकाए और एक प्रकार की झिझक भी भरी हुयी थी। हमारे एक परम मित्र साहब इस बात से भली भांति परिचित हैं,और मुंबई मे ही रहते हैं। मैंने उनसे गुजारिश की थी की आप स्टेशन आ जाए तो मेरे लिए बड़ा भला होगा क्यूंकी जिस मुंबई की छवि मैंने फिल्मों और न्यूज़ वगैरह मे देखी और महसूस की हैं अगर प्रथम दृष्टतया उस पर भरोसा करूंगा तो मैं तो शायद लोकल ट्रेन मे चढ़ने मे भी कामयाब न हो पाऊँ। खैर उन्हे भी इस बात का अंदेशा था इसलिए उन्होने झट ही मेरे आग्रह को स्वीकार किया और मुझसे कहा की वो स्टेशन पहुंच जाएंगे।
मेरे स्टेशन पहुँचने के बाद मित्र के आने मे थोड़ा विलम्ब था तो मैंने सोचा तब तक स्टेशन का ही मुआयना कर लिया जाए।आगे बढ़ कर स्टेशन के वेटिंग एरिया मे पहुंचा तो स्टेशन की स्थापत्य कला को देख कर आराम से अंदाज़ा लगाया जा सकता था की अंग्रेज़ो के जमाने मे बना ये स्टेशन सालों की उम्र बिता कर आज भी दृढ़ता के साथ खड़ा है।सीसीटीवी कैमरे निगरानी मे लगे थे लेकिन कितनी निगरानी कर रहे थे इसके बारे मे अंदाज़ा लगाना मुश्किल था।अभी चाय की चुस्की ली ही थी कि मित्र का फोन आ गया कि वो आ गए हैं।खैर चाय खतम कि और फिर उसके साथ हो लिया। मित्र ने बताया कि अब हमे लोकल ट्रेन कि यात्रा करके बोरीवली पहूँचना होगा और वहाँ से रिक्शा से उसके निवास स्थान जाना होगा। लोकल का सफर उतना दुखदायी नहीं था जितना मैंने उम्मीद लगाई थी। मित्र ने बताया कि अभी हम उल्टी दिशा मे जा रहे हैं इसलिए भीड़ कम है , शाम को उस ओर जाने के लिए एक जंग करना पड़ता है। हमने कहा चलो बढ़िया है ,जंग से तो बच गए , वैसे भी मैं तो शान्तिप्रिय इंसान हूँ,कहाँ जंग लड़ूँ अंजान शहर मे। बोरीवली उतर के बाहर निकले तो रिक्शा खड़ा नहीं दिखा, मैंने कहा कि आपने तो कहा था कि रिक्शा से चलना होगा तो उन्होने मेरे संदेह को दूर करते हुये बताया कि मुंबई मे ऑटो को ही रिक्शा कहा जाता है। मैंने कहा अच्छा है पर फिर रिक्शा को क्या कहते हैं तो वो हमारी बात को टाल गए।
खैर मुंबई के रिक्शा मे भ्रमण करते हुये निवास स्थान पहुच ही गए। रास्ते मे संजय गांधी नेशनल पार्क का विशाल दरवाजा भी देखने को मिला, मित्र ने बताया कि ये काफी बड़े एरिया मे फैला हुआ है और इससे सटे जो कई सारे कालोनिस हैं उनमे अक्सर ही चीते दिखाई दे जाते हैं जो जंगल से भटकते हुये अक्सर रिहायीशी इलाकों मे पहुंच जाते हैं। खैर इसमे उन बेजुबान जानवरों का कोई दोष नहीं है, हमने ही उनके जंगलों को काट काट के जो कालोनिया बना ली हैं तो इसमे उनका घर उन जानवरो से छीनता जा रहा है। एक बात बताना तो भूल ही गया कि स्टेशन से बाहर आते वक़्त मेरा मुंबई के विभिन्न उपनगरीय इलाको के साथ ईस्ट और वेस्ट जुड़े रहने का कान्सैप्ट क्लियर हो गया था।लोकल के स्टेशन के ईस्ट और वेस्ट स्थित होने से इलाकों के नाम रखे गए है।जैसे कि बोरीवली स्टेशन के ईस्ट उतरे तो वो इलाका बोरीवली ईस्ट हो गया और वेस्ट साइड उतरे तो बोरीवली वेस्ट।ये वो ज्ञान था जो मुझे बिना मुंबई गए नहीं मिल सकता था।
खैर घर पहुंचे तो सुट्टे कि तलब भी लग चुकी थी, फ्लॅट के नीचे ही दुकान थी। गया तो वहाँ पर भी 3-4  लोगो का जमघट लगा था और किसी मुद्दे पर गहन विचार चल रहा था। आवाज़ के मॉड्युलेशन से समझ गया कि ये सारे राजनीतिक विश्लेषक उत्तर प्रदेश से संबंध रखते हैं। मुंबई मे भी मायावती और मुलायम के मुद्दे पर गहन विचार विमर्ष का दौर चल रहा था, इससे पहले कि मैं भी उस विमर्श का हिस्सा बन जाता हमारे मित्र ने कहा कि सुट्टे के साथ ही कटिंग चाय कि चुस्की भी ले ली जाए। खैर मैंने और मित्र साहब ने सुट्टा जलाया और एक कटिंग चाय कि चुस्की ली और फिर फ्लॅट मे पहुच कर आराम करने के लिए आरामदायक बिस्तर कि गोद मे निंद्रा की छाँव मे चला गया। 
                                                                    ॥क्रमशः॥




Wednesday, January 23, 2013

कहाँ हैं हिन्दू आतंकवादियों के प्रशिक्षण कैंप ?

हमारे देश की सरकार में एक से बढ़ कर एक ज्ञानी मंत्री लोग हैं। पढ़े लिखे भले ही न हो, शैक्षिक योग्यता के नाम पर शायद दसवी या बारहवी पास ही होंगे मुश्किल से, लेकिन ज्ञान का अथाह खान हैं। आये दिन इनके बयान  सुन कर रोज़ का लाफ्टर का खुराक मिल जाया करता है, लेकिन इस बार तो एक मंत्री साहब ने हद्द ही कर दी। ऐसा बयान जरी कर दिया जो खुद इनके पार्टी की ही गले की हड्डी बन गया है। इनकी खुद की पार्टी ने भी ये कहते हुए बयान से पल्ला झाड़ लिया है कि  ये पार्टी का नहीं बल्कि मंत्री जी का व्यक्तिगत बयान है।
ये मंत्री जी जिनके ऊपर देश के आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी है , हमेशा से ये कहते आ रहे हैं की आतंक का कोई धर्मं नहीं होता, आतंकी सिर्फ एक विकृत मानसिकता का प्रतिरूप होते हैं, आतंकवादियों को किसी एक संप्रदाय या धर्मं विशेष से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए। बिलकुल सही बात है हम सभी भारतवासी आतंक को सिर्फ आतंक ही समझते हैं। किसी धर्मं विशेष से इसे जोड़ना बिलकुल गलत और निंदनीय है। लेकिन अभी पिछले दिनों इन्ही मंत्री जी ने एक संवाददाता सम्मलेन में ये कह कर सबको अच्चम्भित कर दिया की देश में हिन्दू आतंकवादियों के टेरर कैंप चल रहे हैं। लो कर लो बात कल तक यही साहब सबको ज्ञान बाटते फिर रहे थे की आतंक का कोई धर्मं नहीं होता और अब खुद ही कह रहे हैं कि हिन्दुओं के आतंकवादी कैंप चल रहे हैं देश में। मतलब ये है की ज्ञान बटने में तो ये भाई साहब आगे हैं लेकिन खुद ही उस ज्ञान को अमल कर पाने में नाकाबिल। और तो और जब मंत्री जी ने कह ही दिया हिन्दू आतंकवादियों के कैंप चल रहे हैं तो पाकिस्तान के राजनेताओं ने इसी का फायदा उठाते हुए भारत को ही आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने की सिफारिश कर दी। अब मेरे ये समझ में नही आ रहा की ये साहब देश के हित में काम कर रहे हैं ये देश के खिलाफ। वैसे मुझे तो ये शक भी है की मंत्री साहब ने ये बयान देशवासियों का ध्यान पाकिस्तान द्वारा हमारे दो सैनिकों के सर काटने का कारण उपजे विवाद से दूर करने के लिए दिया है, ताकि सरकार की कमजोरियों से जनता का ध्यान भंग हो कर इस मुद्दे पे आ जाये।
भाई साहब आप एक ज़िम्मेदार मंत्री हैं , ज़रूर सब कुछ सोच समझ कर ही बयान जारी किया होगा। तो इस देश के एक जिम्मेवार और देशभक्त नागरिक होने के नाते हम भी जानना चाहते हैं कि आतंक फ़ैलाने वाले इन हिन्दू आतंकवादियों के प्रशिक्षण कैंप कहा चल रहे हैं। चलिए जिन आतंकवादियों के कैंप देश के बाहर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में चल रहे हैं, उन पर कारवाई न कर पाने की आपकी मज़बूरी से हम वाकिफ हैं। देश के बाहर जा कर हम किसी भी प्रकार की करवाई कर पाने में असमर्थ हैं। लेकिन जैसा की आपने बताया की आपके पास ख़ुफ़िया जानकारी मौजूद है की देश में हिन्दू आतंकवादियों के कैंप चल रहे हैं, तो हम ये जानना चाहते हैं की जानकारी मौजूद होने के बावजूद आखिर सरकार उन कैम्पस पर हमला क्यों नहीं कर रही है? देश के लिए खतरा ऐसे कैम्पस को तुरंत नेस्तनाबुन्द कर देना चाहिए। और उन्हें प्रशिक्षण देने वालों के ऊपर राष्ट्रद्रोह के कानून के अंतर्गत कानूनी कार्यवाही करना चाहिए।
श्रीमान वोट बैंक की राजनीती तो आप लोग वर्षों से करते आ रहे हैं, और करते रहिये उससे हमे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन कम से कम देश की सुरक्षा के मामले में तो ऐसी ओछी राजनीती से ऊपर उठ कर बयान जारी किया कीजिये। अगर एक धर्म विशेष के 10 व्यक्ति किसी आतंकी घटना  अंजाम देने में भागीदार होते हैं तो क्या सरकार की ओर से ऐसे गैर जिम्मेदार बयान देना उचित रहेगा की उस धर्मं के आतंकी प्रशिक्षण कैंप चल रहे हैं? भारत एक सेक्युलर देश है और आप लोग तो सबसे बड़े वाली स्वयं घोषित सेक्युलर पार्टी के नेतागण हैं, तो कृपया कर के ऐसे बयान जारी करने से पहले 'मेन्टोस' खा लिया कीजिये। जो दोषी है उन पर कारवाई करने की बजाये ऐसे अनुचित बयान जारी करना न सिर्फ निंदनीय है बल्कि ये सरकार में मौजूद लोगो की विकृत मानसिकता को उजागर करता है। अगर फिर भी न मानते तो हमारा क्या जाता है, हम तो 'मैंगो पीपल' हैं किसी तरह अपना गुजर बसर कर ही लेंगे। लेकिन अगर अब भी ऐसे बेसिर पैर वाले घटिया बयान जारी करते रहियेगा तो आने वाले चुनाव में जनता का जवाब आप लोगों को खुद ही मिल जायेगा। भगवान आको सद्बुद्धि दे, बस यही कामना कर सकता हूँ।

Sunday, January 20, 2013

इनकी माँ रोये तो ब्रेकिंग न्यूज़ बन गया, सारे देश की माएं भी तो रो रही हैं सालों से उनकी किसी को खबर भी नहीं...

एक परिवार है , पिछले 60-70 सालों से दबा के मज़े ले रहा है , और इतने मज़े लेने के बाद भी न जाने क्या क्या दुष्प्रचार किये जा रहा है। और इसके बाद भी जनता को विश्वास दिलाते आ रहा है की हमने देश के लिए ये खोया , वो खोया। सही में तुमने खोया? क्या बता रहे हो , अगर खोने का स्वाद इतना मज़ेदार होता है तो भाई साहब देश के वो अस्सी करोड़ लोग भी खोने तैयार हैं जिन्हें दो जून का भोजन भी नसीब नहीं होता। मजाक तक ठीक है लेकिन ऐसी दिनदहाड़े सफ़ेद झूठ हमसे बर्दाश्त नहीं होता रे भाई। आपसे हो जाता है तो कर लो साहब, लेकिन न तो हम बर्दाश्त करेंगे न ही इनका झूठ सुनेंगे।
एक खास राजनीतिक दल है, आज़ादी के 65 सालों में इन्होने 50 से ज्यादा सालों तक राज़ किया है इस देश पर। और उन सालों में एक खास परिवार ने 35 सालों के आस पास राज़ किया है , उसी परिवार का लड़का उस परिवार संचालित राजनीतिक दल का नया उपाध्यक्ष चुन लिया जाता है। गौरतलब है की उसकी अम्मा पिच्च्ले 15 सालों से उस खास दल की अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हैं, अब निर्वाचित हैं या जो भी हैं हम ज्यादा टिपण्णी कर नहीं सकते न ही करना चाहते। भाई तुम्हारी फॅमिली ओन्ड पोलिटिकल पार्टी है जो करना है करो लेकिन देश दुनिया को ये तो कह कह के गुमराह तो मत ही करो कि तुम लोगों ने देश के लिए ये किया, वो किया। किया तो तुमने अपने परिवार के अलावा किसी के पप्पा के लिए भी नहीं। इनके घर का कुत्ता भी इस देश के किसी साधारण व्यक्ति से ज्यादा सुविधाएं उठाता है, और ये मगरमच्छ वाले आंसू बहाते फिरते हैं की हमने ये खोया और वो खोया।
इस देश के जो अनपढ़ लोग हैं, या कम पढ़े लिखे लोग जो हैं वो तो अब तक इनको यही समझ के वोट देते आ रहे हैं कि ये महात्मा गाँधी के वंशज हैं। मेरे गाँव के भी जो वृद्ध लोग हैं या जो जवान भी है अधिकतम यही सोचते हैं की ये ही असली गाँधी हैं। कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन नतीजा वोही ढाक के तीन पात। शायद 1997 या 1998 का साल था जब मैं महात्मा गाँधी के पोते से मिला था, वो उस समय भुवनेश्वर से गाँधी जी की अश्थियाँ ले कर लौट रहे थे पुरुषोत्तम एक्सप्रेस से। ट्रेन का सासाराम स्टेशन पर 4-5 मिनट का स्टॉप था, उस समय मैं वहां पर ही रहता था, तो मैं  भी स्टेशन चला गया उनसे मिलने। तकरीबन 3-4 मिनट की मुलाकात में ही उन्होंने बताया की उनका परिवार साऊथ अफ्रीका में रहता है और वंही पर खुश हैं क्यूंकि उनकी जगह तो यहाँ किसी और ही परिवार ने ले रखी है। उस समय राजनीतिक रूप से इतना परिपक्व नहीं था इसलिए उनके कहने का मतलब नहीं समझ पाया था, लेकिन आज जब उनकी बातें याद आती हैं तो समझ में आता है की उनकी व्यथा गलत भी नहीं थी।
एक और बात कही भाई साहब ने आंसू बहाते हुए और चिट्टा पढ़ते हुए। गौर कीजियेगा बिना चिट्टा के न तो ये कुछ बोल पाते हैं न ही इनकी अम्मा जी, फिर भी सबसे बड़े वाले हिंदुस्तानी यही हैं। ठेका इनके और इनके परिवार के नाम ही हैं भारतीयता का। इनके परिवार से बड़ा देशभक्त तो शायद ना मंगल पाण्डेय रहे होंगे न ही रानी लक्ष्मी बाई और नहीं तात्या टोपे जी। इनके परिवार के आगे तो भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, राजगुरु, सुखदेव का भी नाम नहीं आने देते इनके पारिवारिक दल के कार्यकर्ता। हाँ तो मैं बता रहा था की इन साहेबान ने कहा क्या, भाई साहब व्याख्यान दे रहे थे की इन्होने जिसके साथ बैडमिंटन खेलना सीखा उन्हीने इनके सर से सब छीन लिया। सही में छीन लिया या दे दिया। भाई साहब इसका फैसला अब आप लोग ही कर लो की मज़े कौन ले रहा है और कौन सर से सब कुछ छीने जाने के कारण विवशता की जिंदगी जीने को विवश है।
एक बात तो बताना भूल ही गया की ये जो भाई साहब अगला प्रधान मंत्री बनने की ख्वाइश देख रहे हैं और खुद को युवा युवा करते नहीं थकते, इनकी उम्र इस देश के सबसे उम्रदराज़ युवा से तकरीबन 12 साल ही ज्यादा है। अब सिर्फ अगर शादी न हो तो बंदा युवा थोड़े ही रहता है। भाई साहब उम्र तुम्हारी खुद तुम्हारा साथ छोड़ते जा रही है और तुम खुद को युवा युवा करते जा रहे हो। हमारे तरफ तो अगर इस उम्र में किसी की शादी न हो तो लोग पता नहीं किस किस चिकित्सीय उपचार की सलाह दे देते हैं, लेकिन आप स्वयंभू युवराज हैं मजे लीजिये ज़िन्दगी के। और इतने ही युवा हो तो भाई साहब युवाओ के ऊपर हो रहे अत्याचार के विरोध में भी 2-4 शब्द कह देते। देश के युवाओं को सच में थोडा अच्छा लगा होता। लेकिन आपने कुछ नहीं बोला तो ज़रूर किसी खास काम में ही व्यस्त रहे होंगे , अब आपके प्रशंशक तो यही बोलते फिर रहे हैं। खैर आप मजे लेते रहिये वैसे भी आपका परिवार यही करते आ रहा है पीछे 70 सालों से। हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं, इससे ज्यादा नहीं बोल सकते।
चलो भाई इनकी अम्मा जी को रो लेने देते हैं, देश की बेटी के भयावह बलात्कार पर तो इन्होने आंसू बहाए नहीं, जब देश के दो बहादुर सैनिकों का सर पाकिस्तानी बड़ी ही बेदर्दी से काट के ले गए तब भी इनके बहते आंसू दिखे नहीं , जब असाम में हिंसा हो रही थी तब भी इनके रोने का खबर तो अखबारों की सुर्खियाँ नहीं बना, लेकिन अब रो रही हैं तो रो लें।

Saturday, January 19, 2013

कश्मीरी पंडितों की पूरी कौम अपने ही देश में विस्थापित रहने को मजबूर क्यों ?

इस शीर्षक पर लिखने के बारे में सोच तो काफी अरसे से रहा था लेकिन दिन आज का चुना क्यूंकि आज का दिन ही कश्मीर की इतिहास का वो कला दिन है जब कश्यप ऋषि की तपोभूमि कश्मीर की धरती से स्वयं कश्मीरी पंडितों को ही विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ा था। वो कश्मीरी पंडित जो सैकड़ों सालों से वहां रह रहे थे, जो उनके लिए सिर्फ घर नहीं बल्कि जन्नत था। एक पूरी की पूरी पीढ़ी जो  अपना फूल सा बचपन भी जी नहीं पाइ थी और उन्हें राहत शिविरों , विस्थापन केन्द्रों में जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होना पड़ा। ये पूरी पीढ़ी अपना बचपन तो नहीं ही जी पाई और समय से पहले ही इन्होने वक़्त के वो सारे थपेड़े झेले, जिसने इन्हें अचानक से ही मानसिक रूप से व्यस्क बना दिया। आज भी लाखों परिवार राहत शिविरों में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं और इन्ही रहत शिविरों में ही जीवन व्यतीत करते करते करते अपने घर जाने की आस में ही हज़ारों लोग दुनिया से रुख्शत कर चुके हैं। कभी ये भारत के धनवानों में मानी जाने वाली पूरी कौम, आज जिल्लत भरी ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं।
मेरी धुंधली यादों में कही थोड़ी सी याद बाकी है , कभी कभी कुछ महिलाएं छोटे छोटे बच्चों के साथ हमारे शहर में  हमारे घरो में आती थी और अपनी व्यथा बताती थी। उनकी व्यथा सुनके महिलाओ की आँखे भर आती थी और जिससे जितना हो सकता था वो अपनी हैसियत के हिसाब से उनकी मदद करता था। उनके बात करने के लहजे और पहनावे को देख कर यही सोचा करता था की ये क्यों ऐसे जीने पे मजबूर हैं। उस समय उतना पता नहीं चलता था, लेकिन जैसे जैसे बड़ा हुआ कश्मीरी पंडितों के बारे में पढने और जानने का मौका मिला तो खुद पर आत्मग्लानी हुई कि कैसे हमारे ही देश के पूतों को अपने घर से भाग कर विस्थापितों की तरह रहने को विवश होना पड़ रहा है। ये हमारे भारत के हजारों वर्षों के स्वर्णिम इतिहास में निःसंकोच एक काला धब्बा ही है।
आखिर क्यूँ हमारी सरकार इस पूरी कौम को इनके हाल पर जीने के लिए छोड़ चुकी है। इनकी सहायता के नाम पर कुछ राहत और विस्थापन शिविर बना दिए गए हैं जिनकी हालत भी अन्य सरकारी योजनाओ के जैसी ही है। कश्मीरी पंडितो की ये हालात आज ऐसे हैं उसका सबसे बड़ा कारण ये है की इनकी संख्या बहुत कम है। ये किसी भी राजनीतिक दल के लिए एकमुश्त वोट बैंक नहीं हैं। ये अलग अलग जगहों पर रह रहे हैं इसलिए इनकी संख्या इतनी नहीं है की ये कि ये चुनावों में एक सार्थक वोट बैंक साबित हो पायें, इसलिए किसी भी राजनीतिक दल ने इनकी समस्या को लेकर कभी कोई इमानदार प्रयास शायद ही किया। इतनी सारी यातनाएं और यहाँ तक की देश के सरकार द्वारा भी अपने हाल पर छोड़ दिए जाने के बावजूद इस कौम में समय के साथ साथ आगे बढ़ना सीख लिया है। समय की विपरीत धाराओं में भी आगे बढ़ते हुए आज ये कौम फिर से पुराने स्वर्णिम दिनों को पाने की आस में आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन न ही केंद्र की सरकार ने और न ही जम्मू कश्मीर की राज्य सरकार ने ही इनको सार्थक रूप से मदद की, इस बात की कसक तो इन लोगों के मन में अवश्य ही होगी। यही उम्मीद करूँगा कि जल्दी ही ये मेरे भाई बहन फिर से अपने घर कश्मीर को लौट सके और फिर से अपनी ऐतिहासिक स्वर्णिम ऊँचाइयों को छू सके।



Thursday, January 17, 2013

राहत या आफत .... क्या दिया सरकार के इस नए फैसले ने ?

आज कल युपीए सरकार ने ये तय कर लिया है कि चाहे जो भी हो जाये हम आम जनता की बजा के ही मानेंगे। अभी पिछले दिनों पेट्रोल के दामो में कुछ बढ़ोतरी की गयी थी और आज शाम सरकार ने आम जनता को फिर से दो तोहफे दिए हैं। एक तरफ डीजल के दामों का डीकंट्रोल यानि की अब इसके दामों का फैसला सरकार नहीं बल्कि तेल कम्पनियाँ स्वयं करेंगी, और दूसरी तरफ सरकार ने सब्सिडी वाले गैस सिलिंडर की संख्या में इजाफा किया है। अब 6 की बजाये 9 सिलेंडर सब्सिडी वाली मिला करेंगी। तेल कंपनिया पिछले कई दिनों से हल्ला मचा रही थी की उन्हें डीजल पर प्रति लीटर 9 रुपये का शुद्ध घटा हो रहा है, तो लो सरकार ने तेल कंपनियों को खुश कर ही दिया। अब डीजल की दामों में जल्दी ही बढ़ोतरी होगी और डीजल की दामों में बढ़ोतरी का असर रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ों के दामों में भी जल्दी ही देखने को मिलेगा।
वैसे एक साथ 9 रुपये की बढ़ोतरी का जोखिम तो तेल कम्पनियाँ तो नहीं उठाएंगी लेकिन इतना तो मान के ही चलिए की हर महीने कम से कम 1 रुपये की बढ़ोतरी का बोझ तो आपकी जेब को उठाना ही पड़ेगा। डीजल का प्रयोग कृषि के क्षेत्र में काफी होता है। चाहे खेत की जुताई करने के लिए ट्रेक्टर हो या उसके फसल की सिंचाई करने के लिए जेनसेट हो ,दोनों में ही डीजल का उपयोग किसान करता है। आने वाले दिनों में डीजल के दाम बढ़ेंगे तो इसके सीधा असर किसान की लागत पर पड़ेगा ही। माल ढूलाई , परिवहन ,बिजली उत्पादन इन सब में डीजल का ही उपयोग होता है तो इनका लागत भी बढेगा। मतलब ये कि जेब तो आम जनता की ही कटेगी और लम्बे समय तक कटते ही रहेगी। ठीक वैसे ही जैसे बढ़ी हुयी सब्सिडी वाली सिलेंडर की संख्या का फायदा जल्दी ही लोगो को मिलेगा वैसे ही बढ़ी डीजल के दाम का असर लम्बे समय तक आम जनता की जेब पर पड़ता रहेगा। सरकार ने तो ये पहले से ही सोच रखा था कि सिलिंडर की संख्या में इजाफा करेंगे और इसे लागू करने के लिए सरकार ने एक हाथ में लड्डू तो दे दिया लेकिन दुसरे हाथ में जलती अंगीठी रख दी। लड्डू तो खा के ख़तम हो जायेगा लेकिन ये अंगीठी हाथ जलाते ही रहेगी। मिला जुला के देखा जाये तो सरकार ने आम जनता को आफत ज्यादा दिया है और जनता के हाथो में राहत  के नाम पर एक झुनझुना मात्र ही थमाया है, तो ये झुनझुना थामिए और अब झुनझुना बजाते रहिये जब तक जी चाहे।



Wednesday, January 16, 2013

आखिर क्यूँ न अब सियासत की संधि वार्ताओं के दौर से बाहर निकला जाये

बचपन में मेरे घर के बगल में एक बालक रहता था , मेरी ही उम्र का था लेकिन हाथ पांव में मेरे से थोडा कमजोर था। हमेशा मुझे उंगली करते रहता था। मैं कुछ करू तो मेरे पिताजी से बोलने की धमकी देता था। कभी मेरी साईकल ले के भाग जाए तो कभी मेरा बल्ला ले के , क्रिकेट खेलने आये तो कहे की सिर्फ बैटिंग करने दे नहीं तो तेरे पापा से शिकायत कर के सूतवा दूंगा तुझे। 8-10 बार तो मैंने उसे कुछ नहीं कहा, लेकिन एक दिन मेरा दिमाग सटक गया और उस दिन वो मेरे हत्थे चढ़ गया। ढंग से खर्चा पानी दे दिया उस दिन मैंने उसे । खैर बाद में पापा ने मुझे भी ढंग से लपेटे में लिया लेकिन मुझे इसका कोई मन में मसोस नहीं रहा क्यूंकि एक फायदा भी हुआ। वो लौंडा उसके बाद से मेरे से 10 फीट की दुरी मेन्टेन करने लगा। मेरी उम्र 8-10 साल रही होगी, मैंने  तो मामले की गंभीरता समझते हुए मसला खुद ही हल कर दिया।

 लेकिन 65 साल की उम्र में हमारी सरकार न समझ पाई अभी तक। उम्मीद करता हूँ की सरकार का भी मानसिक विकास हो , और वो ये समझने में सक्षम हो की सिर्फ कूटनीतिक तरीका ही एकमात्र साधन नहीं है। समय आ गया की सियासत की संधि वार्ताओं के दौर से बाहर निकला जायेसमय आ गया है अपनी सामरिक शक्ति का इस्तेमाल करने का और पाकिस्तान को उसके करनी का जवाब उसी की भाषा में देने का। क्यूंकि एक सीमा तक ताकत पर तमीज की लगाम जरूरी है ,मगर इतनी भी नहीं की वह स्वयं अपने देशवासियों की नज़र में ही बुजदिली बन जाये। अब तो इस बात में कतई भी संदेह नहीं रह गया कि हमारा  मुकाबला एक आतंकी संगठन से है, जो सेना के वेश भर में है। सेना के कुछ उसूल होते हैं। एक जवान का दूसरे जवान के प्रति व्यवहार की मर्यादा भी निश्चित होती है। लेकिन पिछले दिनों तो पाकिस्तानी सेना का व्यव्हार न सिर्फ सेना के उसूलों से परे रहा है बल्कि ये तो बर्बरता का एक नृशंश उदहारण भी है। पाकिस्तानी सेना द्वारा किया गया ये घ्रिनीत कार्य दया के काबिल तो नहीं है। इन परिस्थितियों में भारत को एक बार फिर से अपने स्थिति पर पुनर्विचार करने की ज़रूरत है। आखिर कब तक हम पाकिस्तान की ऐसी हरकतों को बर्दाश्त करते रहेंगेअगर ऐसे हालत में लगता है की जंग लाजिमी है तो जंग ही सही।






Monday, January 7, 2013

ये कैसा राम राज्य जहा स्वयं राम अपनी इच्छा से नहीं रह सकते ।

  नारद जी से तो आप सभी भली भांति परिचित होंगे। अगर नहीं भी हैं तो मैं हूँ ना आपसे उनका परिचय कराने के लिए। नारद जी जो हैं वो हैं देवलोक के चलते फिरते समाचार संवाददाता। घूमते टहलते भारतवर्ष आये तो मुंबई शहर की ओर निकल गए। नारायण नारायण करते हुए चक्कर काट ही रहे थे की अचानक उनकी नज़र किसी जाने पहचाने व्यक्तित्व की और पड़ी, उन्होंने सोचा नहीं ये 'वो' नहीं हो सकते परन्तु जिज्ञासावश जब स्वयं को रोक न पाए और पहुँच गए नारायण नारायण करते हुए।
 "भगवन, आप और यहाँ इस तत्काल आरक्षण की कतार में क्या कर रहे हैं ?" नारद ने मिलते ही ये सवाल दागा।
लेकिन जिससे ये सवाल दागा गया था उसने इगनोर करते हुए अपने मोबाइल पर आये SMS को पढना ज्यादा ज़रूरी समझा और नारद की तरफ देखना भी मुनासिब नहीं समझा।
नारद ने सोचा की मेरी आँखे धोखा नहीं खा सकती , किन्तु ये मुझे पहचान क्यों नहीं रहे ? ये सोचते हुए उन्होंने कतार में खड़े व्यक्ति के चरण स्पर्श करने की कोशिश की लेकिन उसने फिर से उसे घुड़की दे दी और फिर आरक्षण क्लर्क को अपना फॉर्म दिया और अपने आरक्षण के टिकट का इंतज़ार करने लगे।
वोही दूर खड़े होकर स्वयं नारद भी उस व्यक्ति के फ्री होने का इंतज़ार करने लगे। जैसे ही वो व्यक्ति अपना टिकट लेकर वहां से निकला नारद जी उसके पीछे हो लिए। आगे चलते हुए व्यक्ति ने कुछ एकांत में पहुचने के बाद पीछे मुड़ कर देखा और नारद को आवाज़ लगा कर कहा "नारद , आ जाओ , मैं जनता हूँ की तुम मेरे पीछे पीछे चल रहे हो"
नारद जी खम्भे की ओट  से निकल कर बाहर आये और कहा "प्रभु , आपने मुझे पहचानने से इंकार क्यों किया ?"
सामने खड़े व्यक्ति ने नारद को कहा की आओ खोली में चलो वही बाते करेंगे , ऐसे सड़क पर आराम से बातें नहीं हो पाएंगी। ऐसा कह के दोनों साथ में खोली की तरफ बढ़ लिए।
खोली पहुंच कर व्यक्ति ने उनसे कहा की बैठो नारद, किन्तु नारद ने पहले व्यक्ति के चरण स्पर्श करते हुए पूछा, "भगवन श्री राम , आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, वहां रिजर्वेशन की कतार में आपने मुझे पहचानने से इंकार क्यों किया? क्या मुझसे कोई गलती हो गयी भगवन?"
राम ने उन्हें बैठाते हुए कहा की "देखो आज कल यहाँ मुंबई में माहौल हमारे रहने लायक नहीं रह गया है , अब तो यहाँ से निकल के वापस अपने अयोध्या की तरफ चले जाने में ही भलाई है। पहले तो ये राज ठाकरे कहता था की की ये उत्तर प्रदेश और बिहार वालों को मुंबई से निकालो, उस समय तो किसी तरह छुप छुपा कर इस खोली में रह रहा था, लेकिन अब तो इसने एक नया शिगूफा फैला रखा है। आज कल ये जगह जगह कहता फिर रहा है कि ये बिहार और उत्तर प्रदेश वाले सारे अपराधी ही होते हैं। अब तुम ही बताओ मैंने तो इस संसार से रावण जैसे अपराधी का विनाश कर के दुनिया को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी।
लेकिन अब कलयुग में यही सुनना बाकि रह गया था कि हमारे प्रदेश और हमारे ससुराल (बिहार, सीताजी का मायका बिहार की मिथिला प्रान्त में है) प्रदेश के सारे लोग अपराधी होते हैं। अब इससे पहले की मेरे ऊपर कोई ऐसा इल्जाम लग जाये, मेरा यहाँ से वापस चला जाना ही बेहतर होगा।" इतना कहते हुए उन्होंने अन्दर के कमरे की तरफ आवाज़ लगते हुए कहा, "सीते, पिछले 17 दिनों से तत्काल टिकट के लिए स्टेशन जा रहा था , और आखिरकार कल शाम की दरभंगा के ट्रेन में जाने की कन्फर्म टिकट मिल गयी है , तुम काफी दिनों से मायके जाने की बात कह रही थी न, चलो चलते हैं। कुछ दिन ससुराल में व्यतीत करके अयोध्या वापस चलेंगे। अब यहाँ रहकर ये और नहीं सुन सकता की उत्तर प्रदेश और बिहार के सारे लोग अपराधी होते हैं।" इतना सुनने के बाद देवर्षि नारद भी जाने की आज्ञा ले कर वापस चले गए।