
आप मे से जो भी दिल्ली , गाज़ियाबाद या नोएडा मे रहते हैं या कभी भी रहे हैं, वो खोड़ा से ज़रूर परिचित होंगे। अगर कभी जाने का मौका न मिला हो तो गाहे बगाहे कभी न कभी एनएच 24 से गुजरते हुये ये नाम ज़रूर सुना होगा। किसी लेखक ने कभी लिखा था कि शहर मे अमूमन दो तरह कि बस्तियाँ होती हैं - एक अमीरों के बस्ती जहा सारा विकास का कार्य सरकार द्वारा किया जाता है, चौड़ी चौड़ी सड़के होती हैं, विश्वस्तरीय शॉपिंग मॉल बने होते हैं, शिक्षा के लिए तमाम बड़े नामचीन स्कूल, चिकित्सा के लिए पाँच सितारा सुविधाओं वाले अस्पताल इत्यादि होते हैं। और एक दूसरी बस्ती होती है जहा पर वोट बैंक रहता है, भूले भटके कुछ सरकारी योजनाए यहा भी काम कर रही होती हैं। खोड़ा एक तीसरे तरह कि बस्ती है, यहाँ सरकार का लोगों का हालचाल जानने मे कोई रुचि नहीं है।
खोड़ा मे लाखों घर हैं जिनमे एक अनुमान के मुताबिक दस लाख से भी ज्यादा लोग रहते हैं, और बिना सीवर, सड़क और पीने के पानी के एक नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। खोड़ा कि इसी आबादी मे रहते हैं नोएडा, गाज़ियाबाद और दिल्ली के उद्योगों मे काम करने वाले मजदूर और घरों मे काम करने वाली महिलाएं।इन्ही नारकीय गलियों से निकाल कर ये आपके घरों और उद्योगों मे काम करने पहुचते हैं।एक नजरिए से देखा जाए तो खोड़ा मे यूं तो सब कुछ ही है, केवल सरकार कि योजनाओ और सुविधाओं के। खोड़ा मे सीवर कभी बिछाई ही नहीं गई और सड़क पे बहते नाली के पानी को भरने के लिए कई बार यहा कि गलियों मे मिट्टी भरी गई , जिसका नतीजा ये हुआ कि सड़के घरो से ऊपर आ गई और कई घरो के एक-एक मंजिल तक मिट्टी मे दब गए। और ये मिट्टी बिछाने का खर्चा भी खोड़ा वासियों अपनी मेहनत कि कमाई दे कर उठाया है।खोड़ा कि इन गलियों मे आपको सैकड़ो ऐसे घर मिलेंगे जो मिट्टी कि भराई के कारण ज़मीन के अंदर समा चुके हैं। सीवर की गैर मौजूदगी मे लोगों ने अपने अपने घरो के सामने पानी सोखने के सोखते बना रखे हैं, इन सोखतों से गंदा पानी ज़मीन के अंदर जाता है और चंद मीटर कि ही दूरी पर लगे हैंड पंप से वापस ऊपर जब आता है तो वो पीने लायक तो कतयी नहीं रहता।
खोड़ा मे तकरीबन दो हज़ार से ज्यादा गलियाँ हैं लेकिन सरकारी नंबर मिलने का सुख इनमे से किसी भी गली को प्राप्त नहीं हुआ है। न गलियों का कोई नंबर है और न ही यहा के घरों का कोई भी पता। खोड़ा मे रहने वाले बताते हैं कि खोड़ा मे कम से कम 50 कालोनियां हैं, खोड़ा के विस्तार का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं। पहले कभी ट्रांसफरमर खंभों के ऊपर हुआ करते थे लेकिन जैसे जैसे गलियों मे मिट्टी भरता गया वैसे वैसे अब ट्रांसफारमर भी आसमानी सुख छोड़ कर ज़मीन पर आने को मजबूर हो गये हैं। इन्ही ट्रांसफारमर के नंगे तारों से सट कर आए दिन बेजुबान जानवर और बच्चे इसका शिकार होते रहते हैं। ऐसे ट्रांसफरमरों ने कइयों की जान ली और कइयो को अपाहिज बना दिया, लेकिन बिजली विभाग को इसकी कोई सुध नहीं है।
खोड़ा मे आपको कही भी कूड़ेदान और सफाई कर्मचारी नहीं दिखेगा, दिखेगा तो सिर्फ सड़को पर बेतरतीब तरीके से पसरा हुआ कूड़ा और उनही कूड़े मे खाने की तलाश मे बेजुबान जानवर। अगर आपको कोई खाली प्लॉट दिखता है तो आप मान के चलिये की वो खाली प्लॉट अगर बगल के पड़ोसी घरो के लिए एक कूड़ेदान बन चुका है और कूड़े के अंबार से भर चुका है। खोड़ा के बारे मे एक बात सटीक रूप से कही जा सकती है की खोड़ा का कूड़ा और यहाँ का सीवर का पानी भी यहाँ से बाहर नहीं जा पता और इसी नरक मे ही रह जाता है।खोड़ा मे दस लाख की आबादी मे कोई भी सरकारी अस्पताल नहीं है और शायद यही कारण है की इन गलियो मे झोलछाप डाक्टरों की भरमार है। सरकारी स्कूल है या नहीं ये तो मुझे नहीं पता लेकिन हिन्दी मे पढाने वाले कई अंगरेजी मीडियम के प्राइवेट स्कूल आपको यहाँ दिख जाएंगे।
खोड़ा यूं तो नोएडा से सटा एक गाँव है लेकिन सरकारी नक्शों मे शायद गाज़ियाबाद का हिस्सा है।लेकिन मूलभूत सुविधाए देने मे शायद दोनों मे से कोई भी सक्षम नहीं है। खोड़ा से सटे नोएडा के सेक्टरों और इन्दिरापुरम मे तो तमाम विश्वस्तरीय सुविधाए दी गई हैं, लेकिन खोड़ा अभी भी मूलभूत सुविधाओं के लिए ललच रहा है।वैश्वीकरण की अंधी दौड़ ने हमे कई अत्याधुनिक शहर दिये है लेकिन खोड़ा जैसे कई गाँव भी हैं जो मामूली सुविधाओं से भी वंचित हैं और यहां के लोग ऐसी ही नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। ये तो देश के राजधानी से सटे एक गाँव का हाल है तो उन गांवों का तो भगवान ही मालिक है जो यहां से सैकड़ों, हजारों किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। मेरा ये लेख कई लोगो को ये सोचने पर मजबूर कर सकता है की मैं वैश्वीकरण का खिलाफत कर रहा हु लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है, मैं तो बस इतना ही चाहता हूँ कि पाँच सितारा सुविधाओ वाले इन शहरों के साथ साथ खोड़ा जैसे इन गांवो तक भी विकास और सुविधा पहुंचे।भारत उदय और भारत निर्माण को ऐसे गांवों के लोग भी महसूस कर के देखें। लेकिन फिर एक बात जेहन मे आती है कि शहरों मे दो तरह की बस्तियाँ होती हैं -एक जहां विकास होता है और एक जहां वोट बैंक रहता है और खोड़ा तो शायद इन दोनों मे से किसी मे भी नहीं आता।