Wednesday, October 31, 2012

भारतीयों को क्यों हैं अमेरिकन बनने की होड़ ?

पिछले कुछ वर्षो में ये गौर किया है मैंने की देश का अमेरिकाकरण बड़े ही तेज़ी से हो रहा है। और इस अमेरिककरण होने का सबसे बड़ा कारण और माध्यम हम भारतीय स्वयं ही हैं।हमारे अन्दर ही प्रतिश्पर्धा मची है की कौन कितनी जल्दी स्वयं को ज्यादा अमेरिकन और कम भारतीय बना पाता है। इस परिवर्तन की शुरुआत नब्बे के दशक के शुरुआती सालों से ही हो चुकी थी जब विभिन्न भारतीय कंपनियों ने मार्किट में ग्रीटिंग्स कार्ड्स की शुरुआत की थी। शुरुआत में बर्थडे , नए साल इत्यादि के ही कार्ड्स बाज़ार में उपलब्ध थे।लेकिन इन कुछ गिने चुने अवसरों से इन कार्ड्स कम्पनियों को उतना लाभ नहीं हो पा रहा था जितना इनको अपेक्षा थी। तब इन कार्ड कंपनियों ने अमेरिकन मार्किट में जा कर अपना रिसर्च किया तो पाया की वह पर तो अनेको अवसर हैं कार्ड्स लेने देने की।यही से इन कार्ड कम्पनियों को अल्लादीन का चिराग हाथ लग गया। इन कंपनियों ने नब्बे के दशक के अंत आते आते भारत में ब्रदर्स डे , सिस्टर्स डे, वैलेंटाइन्स डे , फ्रेंडशिप डे और न जाने कैसे कैसे डेज की मार्केटिंग शुरू की और अपने इस लक्ष्य में वो काफी सफल भी हो चुके हैं।
हम भारतीयों में एक आदत होती है भेंड़ चाल की , अर्थात हमने अगर किसी दुसरे को कुछ करते देख लिया तो हम भी उसी का अनुसरण बिना कुछ जाने बुझे करने लगते हैं।एक किसी ने फ्रेंडशिप डे विश किया तो हमे लगता है की अरे वो तो कितना मॉडर्न हो गया है , अब मुझे भी लोगो को फ्रेंडशिप डे की बधाइयाँ देनी चाहिए तभी तो लोगो को पता चलेगा की मैं कितना मॉडर्न हूँ। और इसी मॉडर्न बनने  की होड़ में हम सभी आगे बढ़ते जाते हैं। हम भूल जाते हैं की हमारा देश वो देश है जहा पर दोस्ती की मिसाल देनी हो तो कृष्णा और सुदामा की दोस्ती का वर्णन किया जाता है , हमे अपनी दोस्ती की प्रगाढ़ता सिद्ध करने के लिए फ्रेंडशिप डे के कार्ड के सहायता की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए। लेकीन कौन समझाए अमेरिकन बनने  की होड़ में पड़े हमारे देश के युवा पीढ़ी को, और इन्हें समझाने को कोई फायदा भी नहीं है। इनमे तो एक रेस सी लगी है की स्वयं को ज्यादा अमेरिकन सिद्ध करने की और इसके लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसा ही एक और उदाहरन वैलेंटाइन डे का है, ये भी एक अमेरिकन कल्चर है, वहां प्रेमी प्रेमिका अपने प्रेम को दर्शाने के लिए वैलेंटाइन डे का दिन प्रयोग में लाते हैं,तो हमारे यहाँ के ड्यूड कैसे पीछे रहते। वैलेंटाइन डे ने हमारे देश की युवा पीढ़ी में ऐसे जड़ें जमा ली हैं , जैसे ये हमारे यहाँ युगों युगांतर से मनाया जाता हो। प्रेम के इजहार के लिए कोई एक खास दिन ही क्यों ?अगर आप सच में प्रेम करते हैं तो आपके लिए तो हर दिन वैलेंटाइन डे होना चाहिए। आपको अपने प्रेम का इजहार करने के लिए किसी खास दिन का गुलाम बनने  को किसने कहा है। लेकिन अमेरिकाकरण की और अग्रसर भारतवर्ष में अगर आप किसी को ये समझाने जायेंगे तो उनके लिए आप रुढ़िवादी,पुराने ख़यालात रखने वाले और आधुनिकता के दुश्मन हैं। अरे किसने रोका है खुद को आधुनिक बनाने से लेकिन सिर्फ इन चंद दिनों को सेलिब्रेट  कर अगर हम आधुनिक हो जाते हैं तो सेलिब्रेट कर लो इन दिनों को , लेकिन सिर्फ यूँ ही आधुनिक नहीं बना जा सकता।
कभी हमने ये गौर किया की अमेरिका में लोगो को क्यों ज़रूरत पड़ती हैं फ्रेंडशिप डे , सिस्टर्स डे , हालोवीन और थैंक्सगिविंग इत्यादि मानाने की ? नहीं हमने इस और कभी गौर नहीं किया क्यूंकि हमारे अन्दर तो होड़ सी मची है की कैसे हम जल्दी से अमेरिकन बन जाएँ। अमेरिका मूलतः एक ईसाई देश है, वह पर त्यौहार कम होते हैं तो उन्हें मिलने जुलने , सेलिब्रेट करने , छुट्टियों के लिए खास दिनों की ज़रूरत पड़ती है , इसलिए समय समय पर विभिन्न अंतराल पर उन्होंने स्वयं ही कुछ दिनों को मानाने की प्रथा की शुरुआत की , लेकिन हमारे हिन्दू धर्मं में विभिन्न समय अंतराल पर कई सारे पर्व और त्यौहार आते रहते हैं ,तो हमे किसी खास दिन की आवश्यकता क्यूँ पड़ने लगेगी। इसके अलावा अमेरिका में एकाकी परिवार होते हैं , एक खास उम्र के बाद बच्चे माँ बाप से अलग रहने लगते हैं , सो उन्हें अपने परिवार वालो से मिलने के लिए किसी खास दिन की ज़रूरत होती , तो वहां पर सिस्टर्स डे , मदर्स डे इत्यादि मनाये जाने लगे। इसके ठीक विपरीत हमारे यहाँ संयुक्त परिवार की संरचना होती है , हम बचपन से ही संयुक्त परिवार में पले बढे होते हैं तो हमे किसी खास दिन की आवश्यकता क्यों पड़ने लगी अपने भाई बहन,माता पिता के प्रति अपना प्रेम दर्शाने की। वहां पर साल के आखिरी महीनो में बर्फबारी हुआ करती है , लोग घरो से बाहर कम ही निकलते हैं , सो इन दिनों में उन्होंने मिलने जुलने के लिए थैंक्सगिविंग और भी कई सारे अवसर शुरू किये , किन्तु हमारे देश के वातावरण को ध्यान में रखते हुए हमें तो ऐसे किसी दिन की ज़रूरत नहीं होने चाहिए। लेकिन बचपन से एक कहावत सुनी थी, "भैंस के आगे बीन बजाये , भैंस खड़ी पगुराए" , लोगो को समझाने का कोई फायदा नहीं है। यहाँ लोगो को जल्दी से जल्दी अमेरिकन बनना है। और इसके लिए हम भारतीय कुछ भी करने को राजी हैं। जब विश्व के अनेको देश अपनी धरोहर और संस्कृति को संभाल रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को सँभालने की शिक्षा दे रहे हैं ,हमारे नौनिहालों को अपने देश की संस्कृति और धरोहर की ज़रूरत ही नहीं और महत्ता का ज्ञान भी नहीं है।







Thursday, October 25, 2012

दशहरा का रावण तो जला दिया,अपने अन्दर का रावण कब जलाएंगे हम

दशहरा का पर्व असत्य पर सत्य , अन्याय पर न्याय , बुराई पर अच्छाई के जीत के प्रतीक के रूप में हम हर साल मानते हैं, आज भी मनाया । जबसे मैंने होश संभाला है , अपने बड़ो बुजुर्गों से ये सुनते आ रहे हैं की दशहरा का पर्व एक प्रतीकात्मक रूप है ये समझने का कि किस तरह हम अच्छाई के द्वारा बुराई का नाश करते हैं । हर साल दशहरे के दिन रावण का दहन तो हम सब बड़े ही उत्साह एवं आनंद के साथ देखते हैं लेकिन क्या हमने कभी इस बात पर गौर किया है की ये पर्व किस तरफ इशारा करता है । शायद हमने कभी इस तरफ सोचा ही नहीं ,इसे एक पर्व की तरह मनाया और भूल गए । लेकिन एक बात जो हम भूल रहे है वो ये है की सिर्फ दशहरे के दिन रावण दहन कर देने से अन्याय , असत्य की हार नहीं होगी। और सिर्फ मैदान में खड़े होकर जलते रावन को देख लेने भर से हम अपने कर्मो का पालन नहीं कर सकते ।
रावण के जिस पुतले को हम जलाते हैं वो तो सिर्फ एक प्रतीकत्मक स्वरुप है ये दर्शाने का की असत्य हार गया और सत्य की विजय हुयी। हम अगर सच में असत्य पर सत्य की विजय चाहते हैं तो शुरुआत कही और से नहीं अपने अन्दर से ही करनी होगी।हम दुसरो की बुराई के बारे में बोलने में तनिक देर नही लगते लेकिन क्या कभी हमने खुद के अन्दर झाँक कर देखा है की हमारे अन्दर कितनी बुराईयाँ हैं। इस बारे में कबीर जी ने भी बहुत ही सही कहा है की "बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिल्यो कोय , जो दिल खोजा आपने मुझसे बुरा न कोय"। इसलिए दुसरो की बुराईयाँ उजागर करने से पहले हमे अपने अन्दर की बुराई को ही आत्म मंथन से जानना होगा और उससे निजात पाना होगा , तभी जाकर सही मायनो में असत्य पर सत्य की विजय होगी और रावण का दहन सही मायनो में होगा।
उम्मीद है हम सभी अगले दशहरे तक अपने अन्दर की कुछ बुराईयों की पहचान कर के उसका नाश स्वयं करेंगे और जब अपने अन्दर के बुराई से निजात पा लेंगे तभी किसी और की बुराई को जाहिर करेंगे। रावण दहन के प्रतीक को एक नए अध्याय की तरह समझेंगे और अपने अन्दर के रावण का दहन करने की एक सच्ची कोशिश करेंगे।और अगर हर व्यक्ति अपने अन्दर के रावण का स्वयं दहन करने लगे तो हमे किसी और की बुराई के ऊपर ध्यान देने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी।और ये धरती स्वयं ही असत्य,अन्याय रुपी रावण से आजाद हो जाएगी , लेकिन इसके लिए प्रयास हमे स्वयं करना पड़ेगा और ये अवश्य ध्यान देना होगा की ये प्रयास जायज हो , तभी जाकर हम सही मायनों में दशहरा पर्व की सार्थकता को कायम रख पाएंगे ।



Tuesday, October 23, 2012

हल्की फुहार के साथ मौसम ने बदला रंग , शीत ऋतू की दस्तक

जैसा की मौसम विभाग ने जानकारी दी थी की राजधानी दिल्ली और आस पास के क्षेत्रो में कम दबाव का क्षेत्र बन जाने के कारन आज दोपहर पश्चात धुल भरी आंधी और हलकी बूंदा बांदी की सम्भावना है , हुआ भी ठीक वैसा ही। दोपहर भोजन करने के बाद मैं न्यूज़ देख रहा था तभी अचानक धुल भरी तेज़ आंधी चली ,आसमान धुल के रंग में सराबोर हो कर धुंधला हो चला था। धुल का बादल ऐसा छाया हुआ था की सामने 5 फीट की दुरी पर भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। और फिर आयी बारिश की वो नन्ही और कोमल बुँदे , बारिश की उन बूंदों ने देखते ही देखते आसमान को धुल की गुबार से आज़ाद करते हुए शीशे जैसा चमकदार और साफ़ कर दिया । यकीन ही नहीं हो रहा था चाँद मिनटों में ही माहौल कितना साफ़ ,सुहाना  और हसीन हो चूका था।
बारिश के बाद सिर्फ दृश्य ही मनोरम नहीं हुआ , बल्कि मौसम में भी भीनी भीनी खुशबु और हलकी सी ठंढ का अहसास प्रतीत हुआ। ब्लॉग में प्रदर्शित दोनों फोटो को देख कर स्वयं ही आपको ये अहसास हो जायेगा की महज एक घंटे में मौसम में और वातावरण में कितना बदलाव आ गया था। धुल भरे माहौल का स्थान चमकदार माहौल ने ले लिया था।
वैसे अक्टूबर का महीना ख़त्म होने को ही है और चंद दिनों में नवम्बर का महिना आ जायेगा और  मौसम भी सर्दी की चादर ओढने लगेगा ,और सर्दी का मौसम वो भी दिल्ली की सर्दी तो आप सभी जानते ही हो। उस फिल्म का गाना भी सुना होगा आप लोगो ने जिसके बोल हैं-तडपाये तरसाए रे दिल्ली की सर्दी। दिल्ली की सर्दी तो वैसे ही मशहूर है । सर्दी के दिनों में दिल्ली और उसके आस पास कुहरे का भी आप सभी को अंदाज़ा होगा ही और सिर्फ दिल्ली ही नहीं सम्पूर्ण उत्तर भारत में कड़ाके ठंडी और कुहरे का माहौल रहता है ।
वैसे सभी भारतीयों की तरह मुझे भी सर्दियों का इंतज़ार रहता है ,इसके कई कारण हैं। एक तो ये है की मुझे सर्दी की सुबहो का आलस्य बहुत ही पसंद है जब आपको कम्बल और रजाई के आगोश से निकलना अच्छा नहीं लगता और दूसरा ये की मुझे सर्दी की शामो में 'ओल्ड मोंक' का चस्का है। सर्दी की ठण्ड शामो में ओल्ड मोंक पीने में जो आनंद है वो शायद ही किसी और चीज़ में हो । तो इसी उम्मीद के साथ इस पोस्ट को समाप्त करता हु की जल्दी ही मौसम थोड़े और बदलाव लेगा और जल्द ही गुलाबी गुलाबी ठंडक की चादर वातावरण को अपने आगोश में ले लेगी।





He is a different kind of salesman

Standing against a pillar, his head lowered, he slips the pink duck-faced puppets into his hands and waves weakly. The passers-by don’t notice. We meet PM Sahay one evening in B Block, Inner Circle, Connaught Place, Delhi’s Colonial-era commercial district. A pavement hawker, he is 74.
“At this age shouldn’t you stay home?” I ask him.“I can’t.”He said.
Mr Sahay is a saritorialist’s man. His ironed bluish-white full-sleeved shirt is tucked into his pleated light-brown trouser that has a black leather belt. His brown shoes are polished. With his white hair and brown-rimmed glasses, he looks like a retired bureaucrat.
Mr Sahay walks towards the next block. Taking each step is an effort. “My legs ache,” he says. “The doctor says that tests are needed but that’s expensive.”

The Inner Circle corridor is lined with thick round pillars. Mr Sahay draws energy by supporting himself against these columns, as he walks past them one by one.
“I come everyday from Rohtak,” he says in his frail voice, referring to a town 50km from Delhi. “I’ve a wife, a married daughter and her children to support.” Mr Sahay has a rail pass that enables him to commute daily to Delhi for a monthly sum of Rs 160. He leaves home at 2.30 pm and returns by 11 in the night. At (old) Delhi railway station, a wholesale trader gives him 20 pairs of puppets, which he hawks in Connaught Place, where he reaches by the metro. Each pair is priced at Rs 40.

“I retired as a bank manager. We had a son. He had done chartered accountancy. A few years ago I spent all my savings for him to start his office in Delhi. But he moved to Bahrain without informing us. Two years ago, we heard that he had died in an accident. We could not even see his body. Now, there’s nobody to earn so I must work.”
Mr Sahay dips a biscuit into the chai and looks at the shopping crowd. After emptying the plastic glass, he gets up. “My train will leave in another hour. Goodbye.”


Monday, October 15, 2012

विकलांगों एवं शारीरीक रूप से अक्षम लोगों तक को नहीं बख्शा

सरकार और सरकार से जुड़े मंत्रियो पर तो पिछले दिनों में कई सारे घोटालों में सिलसिलेवार खुलासे हुए हैं लेकिन अभी पिछले दिनों सरकार से जुड़े एक खास मंत्री साहब का एक मामला उजागर हुआ है । ये मंत्री साहब देश के पूर्व राष्ट्रपति श्रीमान जाकिर हुसैन साहब के रिश्तेदार हैं और उनके नाम पर एक ट्रस्ट चलते हैं जिसे सरकार की तरफ से समय समय पर वित्तीय अनुदान एवम सहायता मिलती रही है । हाल ही में एक न्यूज़ चैनेल ने खुलासा किया की मंत्री साहब के ट्रस्ट ने फर्जी दस्तखतो एवम हलफनामे के बल पर तकरीबन 71 लाख रुपयों का वारा न्यारा किया है । जिन पैसो को सरकार ने ये सोच कर अनुदान में दिया था कि इन पैसों से विकलांगो एवं शारीरीक रूप से अक्षम लोगो को ट्राई साईकील ,सुनने की मशीन इत्यादि प्रदान की जाएगी उन्ही पैसो को मंत्री जी एवम उनकी पत्नी ने हड़प लिया और जम के बिरयानी खाई ।
हालाँकि जब इस मामले का खुलासा हुआ तो मंत्री साहब तो विदेश में थे लेकिन उनकी पत्नी जो इस ट्रस्ट की प्रोजेक्ट मेनेजर भी हैं ,उन्होंने चैनेल के सारे आरोपों को नकारते हुए कहा की ये उनको बदनाम करने की साजिश है । उन्होंने ये भी तर्क दिया की हम जिस लोक सभा क्षेत्र से चुनाव जीतते हैं क्या उसी क्षेत्र के लोगो से धोखा कर सकते हैं , तो इस पर मैं ये कहूँगा की मैडम पिछले 60 सालों से तो आप और आपकी पार्टी इस पुरे देश को धोखा दे रहे हैं तो अपने चुनाव क्षेत्र के लोगो को धोखा देने में क्या परेशानी हो सकती है । मामले का खुलासा होने के बाद मंत्री साहब के वापस भारत लौटने पर देश भर में इनके खिलाफ जम कर प्रदर्शन हुए और इन्होने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के सरे आरोपों को नकारते हुए कहा की वो उन पत्रकारों के ऊपर 100 करोड़ के मानहानि का दावा ठोकेंगे । मंत्री साहब ने कॉन्फरेंस में अपने ट्रस्ट के द्वारा लगाये गए शिविरों का विवरण पेश किया और ट्रस्ट द्वारा दान पाने वाले लाभार्थियों की सूचि जारी की ।
लेकिन इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ताओं ने जब लाभार्थियों से संपर्क करने की कोशिश की तो पता चला की फर्जी लोगों के नाम पर ट्राई साईकिल एवम अन्य उपकरण बांटे जाने का ट्रस्ट द्वारा दावा किया गया है । जिन लोगो के नाम लिस्ट में दर्शाए गए हैं या तो वो हैं ही नहीं या फिर हैं तो उन्हें उपकरण मिले नही हैं । और जैसा की पहले भी वाड्रा साहब के समय देखा गया था की पूरी कांग्रेस पार्टी उनके बचाव में सामने आ गयी थी ठीक उसी तरह सारी कांग्रेस पार्टी इस बार भी इस ट्रस्ट के बचाव में सामने आ गए है ,जबकि ये ट्रस्ट सरकारी तंत्र का हिसा भी नहीं है ।
घोटाले और इस सरकार तो जैसे एक दुसरे के पूरक बन गए हैं । सरकार और इसके मंत्री अपनी प्रमाणिकता खो चुके हैं लेकिन इसके मंत्रियो और नेताओं की अकड़ एवम घमंड में किसी प्रकार की कमी नहीं आयी है । लेकिन जिस तरह से पिछले दिनों में घोटालो के आरोप इस सर्कार पर लगते रहे हैं उससे ये बात तो साफ़ है की सरकार की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है । आने वाले लोक सभा के चुनाव में सरकार को जनता करारा जवाब देगी ।





Wednesday, October 10, 2012

अगले जनम मुझे "राष्ट्रीय दामाद" ही कीजौ

कुछ दिन पहले किसी टी वी चैनल पे एक धारावाहिक आया करता था "अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजौ " , कुछ दिन पहले किसी एक राष्ट्रीय दैनिक में मैंने एक लेख पढ़ा था "अगले जनम मोहे सरकारी कर्मचारी ही कीजौ " , लेकिन आज कल तो सबके जुबान पर एक ही बात है "अगले जनम मोहे राष्ट्रीय दामाद ही कीजौ" , और हो भी क्यों न राष्ट्रीय दामाद होने के फायदे भी अपने आप में अतिविशिष्ट हैं ।
राष्ट्रीय दामाद होने का सबसे बड़ा फायदा ये है की आप पर अगर किसी तरह के इल्जाम लगते हैं तो आपको उसका जवाब देने की कोई ज़रूरत नहीं है , चूँकि आप राष्ट्रीय दामाद की पदवी संभल रहे हैं इस नाते से देश के सारे मंत्रिगन, पार्टी के सारे कार्यकर्ता और समय पड़ने पर हो सकता है स्वयं प्रधान मंत्री भी आपकी पैरवी करने जनता और मीडिया के सामने आ सकते हैं ।
आपको देश की कोई भी निजी कंपनी आपकी मर्ज़ी के हिसाब से आप जितना चाहे उतनी राशी का लोन दे सकती है वो भी बिना किसी सिक्युरिटी के और आप उसी लोन की सहायता से उसी कंपनी में अपनी हिस्सेदारी मार्केट रेट के 10 प्रतिशत के रेट से खरीद सकते हैं ।
अभी हाल ही में हमारे देश के लॉ मिनिस्टर राष्ट्रीय दामाद साहब के पक्ष में ऐसे बल रहे थे की मुझे तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे की ये लॉ मिनिस्टर नहीं सन इन लॉ मिनिस्टर हैं । और तो और इन्हें इस बात का गर्व भी महसूस हो रहा था । सो राष्ट्रीय दामाद बन जाने के बाद स्वयं देश के लॉ मिनिस्टर आपको कानूनी सहायता देंगे और वो भी मुफ्त मुफ्त मुफ्त ।
राष्ट्रीय दामाद होने का एक फायदा ये भी है की आप देश के किसी भी एअरपोर्ट पर अति विशिष्ट व्यक्ति की सूचि में आते हैं , भले ही आपकी योग्यता उस लायक हो या न हो । आपको एअरपोर्ट  पर सुरक्षा जांच की ज़रूरत नहीं है , आप चाहे तो विमान के उड़ने के 10 मिनट पहले पहुचे और अगर आप घंटे दो घंटे विलम्ब से आयेंगे तो स्वयं नागरिक उड्डयन मंत्री ये सुनिश्चित करेंगे की विमान आपका इंतज़ार करे और अगर विमान कम्पनी ने ऐसा नहीं किया तो हो सकता है की उसका लाइसेन्स भी निरुद्ध हो जाये ।
तो इतने फायदे और इसके अलावा  अनगिनत और फायदे जिनको गिनाने लगु तो शायद मेरा ये पोस्ट कभी ख़तम ही न हो , इसलिए समझदार को तो इशारा काफी होता है । आप सभी को राष्ट्रीय दामाद बन जाने के बाद के फायदों का एक अंदाजा मिल ही गया होगा तो आप खुद ब खुद ही और ढेर सारे फायदों के बारे में जान सकते हैं । अब इसी उम्मीद में ये पोस्ट समाप्त करता हु की शायद अगले जनम में हम सभी आम जनता में से कोई राष्ट्रीय दामाद की ख्याति प्राप्त करेगा ।


Monday, October 8, 2012

खेलें हम जी जान से , पार्टी करे और भी शान से .....

इस पोस्ट का शीर्षक पढ़ कर आपको कही ऐसा तो नहीं लगा की मैं अभिषेक बच्चन की फिल्म के बारे में लिखने जा रहा हु जिसका शीर्षक भी 'खेलें हम जी जान से' था । खैर ऐसा कुछ नहीं है ,ये पोस्ट भी मेरे पिछले कुछ पोस्ट की तरह टी 20 विश्व कप से ही सम्बंधित है । पुरे टूर्नामेंट के दौरान इंडिया के बाद मेरी पसंद वेस्ट इंडीज़ की टीम ही थी और जब इंडिया की टीम का सफ़र सुपर ऐट के बाद समाप्त हो गया था तो मेरी ख्वाहिश यही थी की ' बेस्ट ' इंडीज़ की टीम ही फ़ाइनल को जीत कर टी 20 की विश्व विजेता बने ।  सेमी फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया को धुल चटाने बाद फ़ाइनल में सामना श्री लंका से था जो की पाकिस्तान को हरा के फ़ाइनल तक पहुची थी , और एक मजबूत प्रतिद्वंदी थी । और श्री लंका की टीम के साथ सबसे बड़ी फायदेमंद बात ये थी की वो अपने देश में अपने प्रशंषको के बीच खेल रहे थे , और मैच के लिए पिच भी उन्होंने अपने हिसाब से काफी सोच समझ के ही बनाई थी ।
खैर श्री लंका की टीम को होम ग्राऊंड का फायदा मिला भी और गेल, जो की टी 20 फॉर्मेट के काफी खतरनाक खिलाडी हैं , मैच के शुरुआती ओवेर्स में संघर्ष करते नज़र आये और ज्यादा योगदान दिए बगैर पवेलियन लौट गए। लेकिन वेस्ट इंडीज़ की टीम ने ख़राब शुरुआत के बाद सम्भलते हुए एक सम्मानजनक  एवम  प्रतिस्पर्धात्मक स्कोर  बनाया और श्री लंका की टीम को 37 रनों से हराते हुए टी 20 विश्व कप का ख़िताब अपने नाम कर लिया l विश्व विजेता बनने  के लिए वेस्ट इंडीज़ टीम को तकरीबन 33 सालों तक इंतज़ार करना पड़ा और इस इन्तेजार के बाद जब टीम विजेता बनी तो टीम ने इस जीत का पूरा लुत्फ़ उठाया और उनके जीत के जश्न का अंदाज़ बेशक काबिल-ए -तारीफ था l पूरी टीम ने एक जुटता दिखाते हुए पहले तो मैच का पलड़ा अपनी तरफ किया और मैच  जीतने के बाद उसी एक जुटता से टीम ने पुरे ग्राऊंड पर घूम कर 'गंगनम ' स्टाइल से डांस करते हुए स्टेडियम में मौजूद और टेलीविजन पर प्रसारण देख रहे दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया ।
मेरा हमेशा से मानना रहा है की कैरिबियन टीम जितने मजे से खेल का आनंद उठती है उसके ज्यादा मजे से पार्टी भी करती है । कल की जीत के बाद का टीम वेस्ट इंडीज़ का अंदाज़ देखने लायक था जो इस बात की तरफ इशारा ज़रुर करती है की 'वर्क हार्ड पार्टी हार्डर' । टीम वेस्ट इंडीज़ के लिए ये जीत जश्न का माहौल तो ले के आयी ही साथ ही  ये जीत उनके लिए एक नए उर्जा की तरह भी है । क्यूंकि इस तरह की विश्व स्तरीय जीत टीम को काफी उत्साह से भर देती है और उम्मीद है टीम इस जीत के बाद  आगे भी अच्छा प्रदर्शन ज़ारी रखेगी
 टीम वेस्ट इंडीज़ की इस जीत के बारे और उस जीत के बाद के जश्न के लिए  'खेले वो जी जान  से ,और पार्टी करे और भी शान से' , इससे अच्छा शीर्षक मुझे तो कोई और समझ नहीं आता । इसीलिए मैंने अपने पोस्ट के लिए इसी शीर्षक को चुना । खेल भावना से खेले गए मैचेस में मिली जीत का एक अलग ही अनुभव होता है जो की टीम वेस्ट इंडीज़ महसूस कर रही होगी । आगे भी इसी तरह के मैचेस और उसके बाद के जश्न का इंतज़ार रहेगा ।

मुझे वस्ल की ख्वाहिश नही ...



हर एक पल तेरी ज़िंदगी का अपने ही रंग मे चाहता हूँ  ,
मुझे वस्ल की ख्वाहिश नही तेरा साथ पाना चाहता
हूँ ,
तेरे साथ की खुशी मे मैं खाक भी बन जाऊं  अगर ,
बन खाक भी तेरी डगर पे ही बिखरना चाहता
हूँ ,
मुझे मौत भी मंजूर है तेरे हाथो से गर मिले ,
मेरे कब्र पे हो फूल भी जो तेरे गुलशन मे खिले ,
हो जाऊ मैं रुखसत जहा से तुझसे बिखर जाने के बाद ,
एक नाम बन कर ही सही तुझे याद आना चाहता
हूँ ,
मुझे वस्ल की ख्वाहिश नही तेरा साथ पाना चाहता
हूँ l 

सौजन्य- तन्मय सिंह 'नवल'

Saturday, October 6, 2012

जब बबूल का पेड़ लगाया था तो आम कैसे मिलेगा ऑस्ट्रेलिया वालो

हा हा  हा हा हा l l l l  हसी रुकने का नाम नहीं ले रही l  सही बताऊ तो लगातार दो दिनों में इतनी ख़ुशी मुझे कभी नहीं मिली थी , शायद किसी भारतीय को नहीं मिली होगी l अब तक तो आप सभी लोग ये समझ ही गए होंगे की मैं इतना क्यों हस रहा हु, आप सभी भी मेरे तरह हस हस के पागल हो रहे होगे l  सच बात तो ये है की मौका भी है और दस्तूर भी l
जब पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया ने भारत को सेमी फ़ाइनल से बहार रखने के लिए 2 अक्टूबर को मैच खेला था , तो उन्हें तो यही लग रहा था की वो दोनों ही फ़ाइनल में फिर से खेलेंगे और फ़ाइनल मैच में ही मैच का फैसला करेंगे l लेकिन वो कहते हैं न बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से खायेगा l  कल के मैच में लंका ने पाकिस्तान की बजाई और आज वाले मैच में तो वेस्ट इंडीज ने सीधे साधे शब्दों में ऑस्ट्रेलिया का बलात्कार ही कर दिया l  और बलात्कार भी ऐसा वैसा नहीं पूरा का पूरा सामूहिक बलात्कार कर दिया l और इस बात की जितनी ख़ुशी वेस्ट इंडीज  में हुई होगी की वेस्ट इंडीज फ़ाइनल में पहुच गया है उससे ज्यादा हम भारतीयों को हुई है l
अब फ़ाइनल कोई भी जीत जाये हमारे लिए तो दोनों ही बराबर हैं अब तो l एक ने पाकिस्तान की बजाई और दुसरे ने ऑस्ट्रेलिया की लगाई l आज पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया को ये बात तो समझ में आ ही गयी होगी की अगर ईमानदारी से मैच खेलते तो शायद इनमे से कोई न कोई तो फ़ाइनल में खेलता l  खैर देर से ही भी अगर इनके दिमाग में ये बात आ जाये तो अगले विश्व कप के लिए इनके खुद के लिए ही अच्छा साबित होगा l खेल को खेल की तरह खेलो तो ज्यादा मज़ा आता है l शायद ये मैच इन दोनों देश के टीम्स के लिए एक सही सबक की तरह प्रतीत होगा और आगे से ये गेम को गेम की तरह खेलेंगे l वैसे कुत्ते की टेढ़ी पूंछ को 18 साल के लिए सीधे पाईप में रख के जब वापस निकाला था तब भी वो टेढ़ी की टेढ़ी ही निकली थी , इसीलिए इन दोनों टीम्स से शराफत की उम्मीद करना नामुमकिन के बराबर है l  फिर भी इन्ही शब्दों के साथ ये पोस्ट समाप्त करता हु की शायद इन दोनों टीम्स को अपना सबक  मिल गया हो l

                                             II जय हिंद जय भारत II 

Friday, October 5, 2012

कुछ नया हो जाये...ब्लॉग्गिंग की नयी शुरुआत पाकिस्तान की करारी हार के साथ

काफी दिनों से ब्लॉग्गिंग की दुनिया में कुछ नया लिख नहीं पा  रहा था , कारण ये था की जब से कॉलेज छुटा  था तब से ही कोई ऐसा विषय मिला नहीं था कि जिसके बारे में कुछ लिखा जाए l  कॉलेज में जो भी लिखता था वो तो हास्य और उपहास के लिए ही लिखा करता था l परन्तु आज ऐसे ही फेसबुक पर किये गए एक पोस्ट पर हमारे एक मित्र ने हमें सुझाव दिया की मेरी बाते वास्तविकता से रूबरू कराती हैं और उन्होंने ये भी कहा की मै अपनी बाते और सशक्त माध्यम के द्वारा लोगो तक पहुचाया करू l खैर इन्टरनेट के इस माध्यम से और सशक्त माध्यम मुझे और कोई समझ नहीं आता ,तो मैंने सोचा की क्यों न सोये पड़े अपने इस ब्लॉग को ही आज पुनः जगा  दिया जाये l
ब्लॉग का माध्यम तो मिल गया था अपनी बाते लोगो तक पहुचने के लिए परन्तु आज इसकी शुरुआत किस टॉपिक के द्वारा की जाये ये भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न था l तभी अकस्मात् आज के हुए टी 20 विश्व कप के मैच का ध्यान आया l ये मैच वैसे तो हमारे देश का नहीं था परन्तु बहुत हद्द तक महत्वपूर्ण था , कारण ये था की मैच था हमारे चिर परिचित प्रतिद्वंदी पाकिस्तान का ,जो की ऑस्ट्रेलिया की भीख से सेमी फ़ाइनल तक पहुच पाया था l  मुझे 2 अक्टूबर का मैच के बाद का वो दृश्य याद था जब भारत के साउथ अफ्रीका से जीतने के बाद भी हम सेमी फ़ाइनल तक नहीं पहुच पाए थे और वो पाकिस्तान जिसे हमने अपने पिछले ही  मैच में धुल चटाई थी ऑस्ट्रेलिया की धूर्तता के कारन सेमी फ़ाइनल तक पहुचने में सफल रहा था l पाकिस्तान के प्रशंशक हमारी हार को और भीख  में मिली अपनी जीत से  ये समझ बैठे की अब तो वो विश्व कप जीत के ही रहेंगे l  लेकिन वो ये भूल गए थे कि दान में मिले देश और भीख में मिले जिस जीत की वजह से जो वो इतना फुदक रहे थे वो ज्यादा समय की मेहमान है नहीं l  आज श्रीलंका के रावण के चेलों ने इन कमबख्त पाकिस्तानियों को वो धुल चटाई की वो ही प्रशंशक जो परसों तक पुरे स्टेडियम में घूम घूम कर पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगा रहे थे आज खोजते भी नहीं मिले l शायद सारे जितनी जल्दी हो सके लाहोर वापसी की टिकट करने निकल पड़े थे l  काफी ख़ुशी का दिन है दो दिन से ठीक से सो नहीं पा रहा था परन्तु आज मजे की नींद आएगी l इसीलिए आज इन्ही शब्दों के साथ ये ब्लॉग समाप्त करता हु की चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाये  "बेटा तो बेटा ही रहता है और बाप हमेशा बाप ही रहता  है  l "