पिछले कुछ वर्षो में ये गौर किया है मैंने की देश का अमेरिकाकरण बड़े ही तेज़ी से हो रहा है। और इस अमेरिककरण होने का सबसे बड़ा कारण और माध्यम हम भारतीय स्वयं ही हैं।हमारे अन्दर ही प्रतिश्पर्धा मची है की कौन कितनी जल्दी स्वयं को ज्यादा अमेरिकन और कम भारतीय बना पाता है। इस परिवर्तन की शुरुआत नब्बे के दशक के शुरुआती सालों से ही हो चुकी थी जब विभिन्न भारतीय कंपनियों ने मार्किट में ग्रीटिंग्स कार्ड्स की शुरुआत की थी। शुरुआत में बर्थडे , नए साल इत्यादि के ही कार्ड्स बाज़ार में उपलब्ध थे।लेकिन इन कुछ गिने चुने अवसरों से इन कार्ड्स कम्पनियों को उतना लाभ नहीं हो पा रहा था जितना इनको अपेक्षा थी। तब इन कार्ड कंपनियों ने अमेरिकन मार्किट में जा कर अपना रिसर्च किया तो पाया की वह पर तो अनेको अवसर हैं कार्ड्स लेने देने की।यही से इन कार्ड कम्पनियों को अल्लादीन का चिराग हाथ लग गया। इन कंपनियों ने नब्बे के दशक के अंत आते आते भारत में ब्रदर्स डे , सिस्टर्स डे, वैलेंटाइन्स डे , फ्रेंडशिप डे और न जाने कैसे कैसे डेज की मार्केटिंग शुरू की और अपने इस लक्ष्य में वो काफी सफल भी हो चुके हैं।
हम भारतीयों में एक आदत होती है भेंड़ चाल की , अर्थात हमने अगर किसी दुसरे को कुछ करते देख लिया तो हम भी उसी का अनुसरण बिना कुछ जाने बुझे करने लगते हैं।एक किसी ने फ्रेंडशिप डे विश किया तो हमे लगता है की अरे वो तो कितना मॉडर्न हो गया है , अब मुझे भी लोगो को फ्रेंडशिप डे की बधाइयाँ देनी चाहिए तभी तो लोगो को पता चलेगा की मैं कितना मॉडर्न हूँ। और इसी मॉडर्न बनने की होड़ में हम सभी आगे बढ़ते जाते हैं। हम भूल जाते हैं की हमारा देश वो देश है जहा पर दोस्ती की मिसाल देनी हो तो कृष्णा और सुदामा की दोस्ती का वर्णन किया जाता है , हमे अपनी दोस्ती की प्रगाढ़ता सिद्ध करने के लिए फ्रेंडशिप डे के कार्ड के सहायता की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए। लेकीन कौन समझाए अमेरिकन बनने की होड़ में पड़े हमारे देश के युवा पीढ़ी को, और इन्हें समझाने को कोई फायदा भी नहीं है। इनमे तो एक रेस सी लगी है की स्वयं को ज्यादा अमेरिकन सिद्ध करने की और इसके लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसा ही एक और उदाहरन वैलेंटाइन डे का है, ये भी एक अमेरिकन कल्चर है, वहां प्रेमी प्रेमिका अपने प्रेम को दर्शाने के लिए वैलेंटाइन डे का दिन प्रयोग में लाते हैं,तो हमारे यहाँ के ड्यूड कैसे पीछे रहते। वैलेंटाइन डे ने हमारे देश की युवा पीढ़ी में ऐसे जड़ें जमा ली हैं , जैसे ये हमारे यहाँ युगों युगांतर से मनाया जाता हो। प्रेम के इजहार के लिए कोई एक खास दिन ही क्यों ?अगर आप सच में प्रेम करते हैं तो आपके लिए तो हर दिन वैलेंटाइन डे होना चाहिए। आपको अपने प्रेम का इजहार करने के लिए किसी खास दिन का गुलाम बनने को किसने कहा है। लेकिन अमेरिकाकरण की और अग्रसर भारतवर्ष में अगर आप किसी को ये समझाने जायेंगे तो उनके लिए आप रुढ़िवादी,पुराने ख़यालात रखने वाले और आधुनिकता के दुश्मन हैं। अरे किसने रोका है खुद को आधुनिक बनाने से लेकिन सिर्फ इन चंद दिनों को सेलिब्रेट कर अगर हम आधुनिक हो जाते हैं तो सेलिब्रेट कर लो इन दिनों को , लेकिन सिर्फ यूँ ही आधुनिक नहीं बना जा सकता।
कभी हमने ये गौर किया की अमेरिका में लोगो को क्यों ज़रूरत पड़ती हैं फ्रेंडशिप डे , सिस्टर्स डे , हालोवीन और थैंक्सगिविंग इत्यादि मानाने की ? नहीं हमने इस और कभी गौर नहीं किया क्यूंकि हमारे अन्दर तो होड़ सी मची है की कैसे हम जल्दी से अमेरिकन बन जाएँ। अमेरिका मूलतः एक ईसाई देश है, वह पर त्यौहार कम होते हैं तो उन्हें मिलने जुलने , सेलिब्रेट करने , छुट्टियों के लिए खास दिनों की ज़रूरत पड़ती है , इसलिए समय समय पर विभिन्न अंतराल पर उन्होंने स्वयं ही कुछ दिनों को मानाने की प्रथा की शुरुआत की , लेकिन हमारे हिन्दू धर्मं में विभिन्न समय अंतराल पर कई सारे पर्व और त्यौहार आते रहते हैं ,तो हमे किसी खास दिन की आवश्यकता क्यूँ पड़ने लगेगी। इसके अलावा अमेरिका में एकाकी परिवार होते हैं , एक खास उम्र के बाद बच्चे माँ बाप से अलग रहने लगते हैं , सो उन्हें अपने परिवार वालो से मिलने के लिए किसी खास दिन की ज़रूरत होती , तो वहां पर सिस्टर्स डे , मदर्स डे इत्यादि मनाये जाने लगे। इसके ठीक विपरीत हमारे यहाँ संयुक्त परिवार की संरचना होती है , हम बचपन से ही संयुक्त परिवार में पले बढे होते हैं तो हमे किसी खास दिन की आवश्यकता क्यों पड़ने लगी अपने भाई बहन,माता पिता के प्रति अपना प्रेम दर्शाने की। वहां पर साल के आखिरी महीनो में बर्फबारी हुआ करती है , लोग घरो से बाहर कम ही निकलते हैं , सो इन दिनों में उन्होंने मिलने जुलने के लिए थैंक्सगिविंग और भी कई सारे अवसर शुरू किये , किन्तु हमारे देश के वातावरण को ध्यान में रखते हुए हमें तो ऐसे किसी दिन की ज़रूरत नहीं होने चाहिए। लेकिन बचपन से एक कहावत सुनी थी, "भैंस के आगे बीन बजाये , भैंस खड़ी पगुराए" , लोगो को समझाने का कोई फायदा नहीं है। यहाँ लोगो को जल्दी से जल्दी अमेरिकन बनना है। और इसके लिए हम भारतीय कुछ भी करने को राजी हैं। जब विश्व के अनेको देश अपनी धरोहर और संस्कृति को संभाल रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को सँभालने की शिक्षा दे रहे हैं ,हमारे नौनिहालों को अपने देश की संस्कृति और धरोहर की ज़रूरत ही नहीं और महत्ता का ज्ञान भी नहीं है।
हम भारतीयों में एक आदत होती है भेंड़ चाल की , अर्थात हमने अगर किसी दुसरे को कुछ करते देख लिया तो हम भी उसी का अनुसरण बिना कुछ जाने बुझे करने लगते हैं।एक किसी ने फ्रेंडशिप डे विश किया तो हमे लगता है की अरे वो तो कितना मॉडर्न हो गया है , अब मुझे भी लोगो को फ्रेंडशिप डे की बधाइयाँ देनी चाहिए तभी तो लोगो को पता चलेगा की मैं कितना मॉडर्न हूँ। और इसी मॉडर्न बनने की होड़ में हम सभी आगे बढ़ते जाते हैं। हम भूल जाते हैं की हमारा देश वो देश है जहा पर दोस्ती की मिसाल देनी हो तो कृष्णा और सुदामा की दोस्ती का वर्णन किया जाता है , हमे अपनी दोस्ती की प्रगाढ़ता सिद्ध करने के लिए फ्रेंडशिप डे के कार्ड के सहायता की ज़रूरत नहीं पड़नी चाहिए। लेकीन कौन समझाए अमेरिकन बनने की होड़ में पड़े हमारे देश के युवा पीढ़ी को, और इन्हें समझाने को कोई फायदा भी नहीं है। इनमे तो एक रेस सी लगी है की स्वयं को ज्यादा अमेरिकन सिद्ध करने की और इसके लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसा ही एक और उदाहरन वैलेंटाइन डे का है, ये भी एक अमेरिकन कल्चर है, वहां प्रेमी प्रेमिका अपने प्रेम को दर्शाने के लिए वैलेंटाइन डे का दिन प्रयोग में लाते हैं,तो हमारे यहाँ के ड्यूड कैसे पीछे रहते। वैलेंटाइन डे ने हमारे देश की युवा पीढ़ी में ऐसे जड़ें जमा ली हैं , जैसे ये हमारे यहाँ युगों युगांतर से मनाया जाता हो। प्रेम के इजहार के लिए कोई एक खास दिन ही क्यों ?अगर आप सच में प्रेम करते हैं तो आपके लिए तो हर दिन वैलेंटाइन डे होना चाहिए। आपको अपने प्रेम का इजहार करने के लिए किसी खास दिन का गुलाम बनने को किसने कहा है। लेकिन अमेरिकाकरण की और अग्रसर भारतवर्ष में अगर आप किसी को ये समझाने जायेंगे तो उनके लिए आप रुढ़िवादी,पुराने ख़यालात रखने वाले और आधुनिकता के दुश्मन हैं। अरे किसने रोका है खुद को आधुनिक बनाने से लेकिन सिर्फ इन चंद दिनों को सेलिब्रेट कर अगर हम आधुनिक हो जाते हैं तो सेलिब्रेट कर लो इन दिनों को , लेकिन सिर्फ यूँ ही आधुनिक नहीं बना जा सकता।
कभी हमने ये गौर किया की अमेरिका में लोगो को क्यों ज़रूरत पड़ती हैं फ्रेंडशिप डे , सिस्टर्स डे , हालोवीन और थैंक्सगिविंग इत्यादि मानाने की ? नहीं हमने इस और कभी गौर नहीं किया क्यूंकि हमारे अन्दर तो होड़ सी मची है की कैसे हम जल्दी से अमेरिकन बन जाएँ। अमेरिका मूलतः एक ईसाई देश है, वह पर त्यौहार कम होते हैं तो उन्हें मिलने जुलने , सेलिब्रेट करने , छुट्टियों के लिए खास दिनों की ज़रूरत पड़ती है , इसलिए समय समय पर विभिन्न अंतराल पर उन्होंने स्वयं ही कुछ दिनों को मानाने की प्रथा की शुरुआत की , लेकिन हमारे हिन्दू धर्मं में विभिन्न समय अंतराल पर कई सारे पर्व और त्यौहार आते रहते हैं ,तो हमे किसी खास दिन की आवश्यकता क्यूँ पड़ने लगेगी। इसके अलावा अमेरिका में एकाकी परिवार होते हैं , एक खास उम्र के बाद बच्चे माँ बाप से अलग रहने लगते हैं , सो उन्हें अपने परिवार वालो से मिलने के लिए किसी खास दिन की ज़रूरत होती , तो वहां पर सिस्टर्स डे , मदर्स डे इत्यादि मनाये जाने लगे। इसके ठीक विपरीत हमारे यहाँ संयुक्त परिवार की संरचना होती है , हम बचपन से ही संयुक्त परिवार में पले बढे होते हैं तो हमे किसी खास दिन की आवश्यकता क्यों पड़ने लगी अपने भाई बहन,माता पिता के प्रति अपना प्रेम दर्शाने की। वहां पर साल के आखिरी महीनो में बर्फबारी हुआ करती है , लोग घरो से बाहर कम ही निकलते हैं , सो इन दिनों में उन्होंने मिलने जुलने के लिए थैंक्सगिविंग और भी कई सारे अवसर शुरू किये , किन्तु हमारे देश के वातावरण को ध्यान में रखते हुए हमें तो ऐसे किसी दिन की ज़रूरत नहीं होने चाहिए। लेकिन बचपन से एक कहावत सुनी थी, "भैंस के आगे बीन बजाये , भैंस खड़ी पगुराए" , लोगो को समझाने का कोई फायदा नहीं है। यहाँ लोगो को जल्दी से जल्दी अमेरिकन बनना है। और इसके लिए हम भारतीय कुछ भी करने को राजी हैं। जब विश्व के अनेको देश अपनी धरोहर और संस्कृति को संभाल रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों को सँभालने की शिक्षा दे रहे हैं ,हमारे नौनिहालों को अपने देश की संस्कृति और धरोहर की ज़रूरत ही नहीं और महत्ता का ज्ञान भी नहीं है।