Monday, October 8, 2012

मुझे वस्ल की ख्वाहिश नही ...



हर एक पल तेरी ज़िंदगी का अपने ही रंग मे चाहता हूँ  ,
मुझे वस्ल की ख्वाहिश नही तेरा साथ पाना चाहता
हूँ ,
तेरे साथ की खुशी मे मैं खाक भी बन जाऊं  अगर ,
बन खाक भी तेरी डगर पे ही बिखरना चाहता
हूँ ,
मुझे मौत भी मंजूर है तेरे हाथो से गर मिले ,
मेरे कब्र पे हो फूल भी जो तेरे गुलशन मे खिले ,
हो जाऊ मैं रुखसत जहा से तुझसे बिखर जाने के बाद ,
एक नाम बन कर ही सही तुझे याद आना चाहता
हूँ ,
मुझे वस्ल की ख्वाहिश नही तेरा साथ पाना चाहता
हूँ l 

सौजन्य- तन्मय सिंह 'नवल'

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