Thursday, October 25, 2012

दशहरा का रावण तो जला दिया,अपने अन्दर का रावण कब जलाएंगे हम

दशहरा का पर्व असत्य पर सत्य , अन्याय पर न्याय , बुराई पर अच्छाई के जीत के प्रतीक के रूप में हम हर साल मानते हैं, आज भी मनाया । जबसे मैंने होश संभाला है , अपने बड़ो बुजुर्गों से ये सुनते आ रहे हैं की दशहरा का पर्व एक प्रतीकात्मक रूप है ये समझने का कि किस तरह हम अच्छाई के द्वारा बुराई का नाश करते हैं । हर साल दशहरे के दिन रावण का दहन तो हम सब बड़े ही उत्साह एवं आनंद के साथ देखते हैं लेकिन क्या हमने कभी इस बात पर गौर किया है की ये पर्व किस तरफ इशारा करता है । शायद हमने कभी इस तरफ सोचा ही नहीं ,इसे एक पर्व की तरह मनाया और भूल गए । लेकिन एक बात जो हम भूल रहे है वो ये है की सिर्फ दशहरे के दिन रावण दहन कर देने से अन्याय , असत्य की हार नहीं होगी। और सिर्फ मैदान में खड़े होकर जलते रावन को देख लेने भर से हम अपने कर्मो का पालन नहीं कर सकते ।
रावण के जिस पुतले को हम जलाते हैं वो तो सिर्फ एक प्रतीकत्मक स्वरुप है ये दर्शाने का की असत्य हार गया और सत्य की विजय हुयी। हम अगर सच में असत्य पर सत्य की विजय चाहते हैं तो शुरुआत कही और से नहीं अपने अन्दर से ही करनी होगी।हम दुसरो की बुराई के बारे में बोलने में तनिक देर नही लगते लेकिन क्या कभी हमने खुद के अन्दर झाँक कर देखा है की हमारे अन्दर कितनी बुराईयाँ हैं। इस बारे में कबीर जी ने भी बहुत ही सही कहा है की "बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिल्यो कोय , जो दिल खोजा आपने मुझसे बुरा न कोय"। इसलिए दुसरो की बुराईयाँ उजागर करने से पहले हमे अपने अन्दर की बुराई को ही आत्म मंथन से जानना होगा और उससे निजात पाना होगा , तभी जाकर सही मायनो में असत्य पर सत्य की विजय होगी और रावण का दहन सही मायनो में होगा।
उम्मीद है हम सभी अगले दशहरे तक अपने अन्दर की कुछ बुराईयों की पहचान कर के उसका नाश स्वयं करेंगे और जब अपने अन्दर के बुराई से निजात पा लेंगे तभी किसी और की बुराई को जाहिर करेंगे। रावण दहन के प्रतीक को एक नए अध्याय की तरह समझेंगे और अपने अन्दर के रावण का दहन करने की एक सच्ची कोशिश करेंगे।और अगर हर व्यक्ति अपने अन्दर के रावण का स्वयं दहन करने लगे तो हमे किसी और की बुराई के ऊपर ध्यान देने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी।और ये धरती स्वयं ही असत्य,अन्याय रुपी रावण से आजाद हो जाएगी , लेकिन इसके लिए प्रयास हमे स्वयं करना पड़ेगा और ये अवश्य ध्यान देना होगा की ये प्रयास जायज हो , तभी जाकर हम सही मायनों में दशहरा पर्व की सार्थकता को कायम रख पाएंगे ।



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